कर्नाटक विधानसभा चुनाव और जालंधर लोक सभा उपचुनाव में नेताओं ने जिस प्रकार से (Election) प्रचार किया गया, उसे यदि निंदा प्रचार कहा जाए तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। पंजाब में केवल एक ही लोकसभा सीट पर चुनाव संपन्न होंगे, लेकिन यहां जिस प्रकार से निम्न स्तरीय शब्दावली का प्रयोग किया, उससे स्पष्ट है कि राजनीति पतन की ओर अग्रसर है। नेताओं के बयान में सदाचार गायब हो गया है। एक पार्टी का नेता दूसरे के खिलाफ व्यक्तिगत लांछन लगा रहा है। नेता महंगाई और बेरोजगारी जैसी समस्याओं पर चर्चा करने की बजाए एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप करने में व्यस्त हैं। यहां तक कि मुख्यमंत्री को भी अपशब्द कहने में कोई शर्म महसूस नहीं करते। दरअसल, अधिकतर मीडिया संस्थान नेताओं के ऐसे घटिया भाषणों को ज्यादा महत्व दे रहे हैं।
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अमूमन मीडिया को ऐसी खबरें प्रकाशित करने से परहेज करना चाहिए। संवैधानिक पदों पर (Election) बिराजमान नेताओं को भी ऐसे दावे नहीं करने चाहिए, जिनका न कोई आधार व प्रमाण है। एक दूसरे पर लालच में पार्टी बदलने के आरोप लगाए जा रहे हैं, किसी को किसी मामले में सीधा दोषी ठहराया जा रहा है। अमूमन देखा जाता है कि ऐसे आरोप केवल चुनावों के समय में ही लगते हैं। जनता से जुड़े मुद्दों की बात न के बराबर ही होती है, पूरा भाषण आरोप-प्रत्यारोप तक ही सिमट कर रह जाता है। इस बार व्यक्तिगत आरोपों का दौर हावी रहा। कविता से व्यंग्य करने वाले नेताओं ने मर्यादा की सभी हदें पार कर दी। धर्मों से जुड़े गंभीर मुद्दों पर भी नेताओं ने गैर-जिम्मेवार वाले बयान दिए। कौन सी पार्टी जीतकर क्या-क्या विकास कार्य करेगी, जनता ऐसी बातों का इंतजार करती रही, जिससे स्पष्ट होता है कि नेताओं में आपसी तल्खियां खत्म नहीं हुई हैं।
यदि आरोप-प्रत्यारोप ही चुनाव प्रचार है तब चुनावों का कोई औचित्य नहीं रह जाता। (Election) इस माहौल में किसका फायदा होगा, यह तो चुनाव परिणामों से ही पता चलेगा। चुनाव प्रचार के तौर-तरीके व स्तर बेहद निराशाजनक रहा। उधर, राजस्थान के वर्तमान मुख्यमंत्री ने अपनी सरकार बनने का श्रेय दो विपक्षी दल के नेताओं को देकर सनसनी फैला दी। यह सब घटनाएं लोकतंत्र में विपक्षी की भूमिका व सार्थकता से जुड़ी हुई हैं। वास्तव में बहस तो विकास के मुद्दों पर होनी चाहिए, लेकिन अब ऐसा प्रतीत होता है कि नेता पांच साल तक विकास की बजाए राजनीति में ज्यादा व्यस्त रहने लगे हैं। हमारे देश के नेताओं को अमेरिका व अन्य यूरोपीय देशों के चुनाव प्रचार के तरीकों को अपनाना चाहिए, जहां रैलियां, रोड शो की बजाए सभी दलों के नेताओं को टीवी पर अपनी बात रखने का समय दिया जाता है। लोगों को चुटकुले सुनाने व घटिया शब्दावाली की बजाए अपनी बात को लोकतांत्रिक तर्क के साथ पेश करना चाहिए।