फेक न्यूज V/s बियोंड फेक न्यूज

Fake News

माइक्रोसॉफ्ट की सर्वेक्षण रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में इंटरनेट उपभोक्ताओं को फर्जी खबरों का सबसे अधिक सामना करना पड़ता है। देश में फर्जी खबरों का प्रसार वैश्विक औसत से कहीं ज्यादा है। कंपनी की ओर से दुनिया के 22 देशों में किए गए सर्वेक्षण के बाद तैयार रिपोर्ट में कहा गया है कि 64 फीसदी भारतीयों को फर्जी खबरों का सामना करना पड़ रहा है। वैश्विक स्तर पर यह आंकड़ा 57 फीसदी का है। माइक्रोसॉफ्ट ने एक बयान में कहा है कि भारत इंटरनेट पर फेक न्यूज के मामले में वैश्विक औसत से कहीं आगे है। सर्वे में शामिल 54 फीसदी लोगों ने इसकी सूचना दी। इसके अलावा 42 फीसदी ने कहा कि उन्हें फिशिंग जैसी वारदातों से भी जूझना पड़ा है।

दो बरस के बाद फेक न्यूज को लेकर देश में एक बार फिर जिरह जारी है। सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावेड़कर के हालिया इस बयान ने फेक न्यूज को आम और खास की जुबां पर ला दिया है, फेक न्यूज पेड न्यूज की तुलना में ज्यादा खतरनाक है। फेक न्यूज को लेकर पूरी दुनिया में त्राहिमाम-त्राहिमाम है। फेक शब्द हमेशा सवाल-दर-सवाल और शक-दर-शक के दायरे में रहता है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प से लेकर दक्षिण एशिया में बीबीसी के प्रमुख रहे सर विलियम मार्क टुली इसके शिकार हो चुके हैं। पदमश्री/पदम विभूषण मार्क टुली से मैंने दिल्ली में बीबीसी के बियोंड फेक न्यूज प्रोग्राम के बाद सवाल किया, फेक न्यूज और रियल न्यूज में अंतर कैसे किया जाए? चलते -चलते वह बोले, जिस खबर की पुष्टि न हो, वह फेक न्यूज है। फोर्थ पिलर की छवि को पेड न्यूज भी बट्टा लगा रही है। फेक न्यूज के संग-संग पेड न्यूज भी सवालों के घेरे में है।

चुनाव आयोग 2011 में यूपी की बिसौली विधान सभा सीट से विजयी प्रत्याशी की सदस्यता रद्द करके पेड न्यूज को परिभाषित कर चुका है। बावजूद इसके फेक न्यूज और पेड न्यूज की रफ़्तार थमने का नाम नहीं ले रही है। फेक न्यूज और पेड न्यूज राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक परिवेश में कैंसर के मानिंद ही हैं। दोनों तरह की न्यूज चौथे स्तम्भ की सेहत के लिए बेहद खतरनाक हैं। हालाँकि सूचना एवं प्रसारण मंत्री मानते हैं, सरकार और मीडिया को साथ मिलकर इससे लड़ने की जरुरत है। सवाल यह है, आखिर यह लड़ाई कब और कैसे लड़ी जाएगी? फेक न्यूज को लेकर बीबीसी 2018 से वैश्विक मंचों पर शिद्दत से जुटी है। बीबीसी देश और दुनिया के शैक्षिणक संस्थानों में रियल न्यूज को लेकर जबर्दस्त कैंपेन चला रही है। क्या भारत सरकार या कोई न्यूज एजेंसी या न्यूज पेपर या चैनल ऐसा कोई आॅपरेशन चलाएंगे ताकि दूध का दूध और पानी का पानी हो सके।अंतत: हमें भी बीबीसी जैसी विल पॉवर और फेक न्यूज के खिलाफ कड़े कानून बनाने की दरकार है।

फेक न्यूज पर पत्रकारों के ऊपर कार्रवाई को लेकर 2018 में तत्कालीन सूचना एवं प्रसारण मंत्री स्मृति ईरानी के फैसलों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पलट दिया था। पीएम ने सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के फैसले पर कहा था, फर्जी खबर पर कोई भी फैसला प्रेस काउंसिल आॅफ इंडिया या एनबीए ही लेगा। इसमें सरकार की कोई दखलअंदाजी नहीं होगी। फैसला पलट जाने के बाद केंद्रीय मंत्री श्रीमती ईरानी ने ट्वीट कर कहा है कि हम पत्रकार संगठनों या फिर प्रेस काउंसिल जैसी संस्थाओं के साथ मिलकर फेक न्यूज के खिलाफ लड़ेंगे। इससे पहले सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने एक विज्ञप्ति जारी की थी, जिसमें पत्रकारों की मान्यता के लिए संशोधित दिशा-निर्देश दिए गए थे। नए दिशा-निदेर्शों में कहा गया था कि अगर पहली बार फर्जी खबर के प्रकाशन या प्रसारण की पुष्टि होती है तो पत्रकार की मान्यता छह महीने तक रद्द कर दी जाएगी।

अगर दूसरी बार फर्जी खबर की पु्ष्टि होती है तो एक साल के लिए पत्रकार की मान्यता रद्द कर जाएगी। वहीं तीसरी बार किसी फर्जी खबर के प्रकाशन या प्रसारण का दोषी पाए जाने पर पत्रकार की मान्यता स्थाई रूप से रद्द कर दी जाएगी। पीएम के हस्तक्षेप करने के बाद सूचना प्रसारण मंत्रालय ने अपनी नई गाइडलाइन्स में कहा था कि यदि प्रिंट मीडिया में फेक न्यूज की शिकायत मिलती है तो उसे प्रेस काउंसिल आॅफ इंडिया को भेजा जाएगा। वहीं अगर फर्जी खबर का मामला इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से आता है तो उसे न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन को भेजा जाएगा। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के इस नए दिशा-निर्देश के बाद विपक्ष के नेताओं ने जहां एक तरफ केंद्र सरकार पर निशाना साधा था तो वहीं कुछ पत्रकारों ने सरकार से इस निर्णय पर फिर से विचार करने का आग्रह किया था, जिसके बाद प्रधानमंत्री ने 04 मार्च, 2018 को सूचना प्रसारण मंत्रालय के नए गाइडलाइन्स को रद्द कर दिया।

सरकार मानती है, फेक न्यूज पेड न्यूज से ज्यादा खतरनाक हैं। फर्जी खबरों को रोकना होगा, यह हम सबका काम है। यह सिर्फ सरकार का काम नहीं है, यह सभी का काम है। जो सचमुच खबरों की दुनिया में हैं, उन्हें इससे लड़ना होगा। कई समाचार चैनल ‘वायरल सच’ जैसे कार्यक्रमों की मदद से इससे निपटने का प्रयास कर रहे हैं। बकौल केंद्रीय मंत्री, प्रिंट मीडिया को भी फर्जी और सही खबरों के लिए ऐसा ही एक कॉलम (स्तंभ) रखना चाहिए। सूचना-प्रसारण मंत्रालय राज्य सरकारों से भी फर्जी खबरों से निपटने को कह रहा है। पेड न्यूज भी अनैतिक है। मीडिया को इसे भी सख्ती से रोकना चाहिए। मीडिया को सरकार को सलाह देनी होगी, ताकि हम साथ मिलकर काम कर सकें और फर्जी खबरों में शामिल मीडिया के छोटे से धड़े को दंडित कर सकें और यह खत्म हो सके। एक प्रतिष्ठित न्यूज एजेंसी फेक न्यूज को लेकर सवालों के घेरे में आ गई।

एजेंसी ने 28 अप्रैल, 2019 को एक स्टोरी की थी, जिसमें दावा किया गया कि विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े कई क्रिएटिव आर्टिस्टों ने लोगों से इन लोकसभा चुनावों में गैर-राष्ट्रवादियों के खिलाफ मतदान की अपील की है, लेकिन यह स्टोरी सच्चाई की कसौटी पर खरी नहीं उतरी। 2020 में नेस्ले कंपनी के नूडल्स ब्रांड मैगी को लेकर एक फेक न्यूज वायरल हुई। वायरल पोस्ट में मैगी के बीफ फ्लेवर वाले पैकेट की फोटो शेयर की गई। इसमें दावा किया गया, इस बीफ फ्लेवर वाले प्रोडक्ट को भारत में बेचा जा रहा है, लेकिन पड़ताल में पता चला, बीफ फ्लेवर वाली मैगी का पैकेट भारत का नहीं, आस्ट्रेलिया का है। कोरोना महामारी के दौरान भी फेक न्यूज खूब चली हैं। महाराष्ट्र के वजीर श्री जितेंद्र आव्हाड की बेटी स्पेन से लौटी तो एक चैनल ने कोरोना वायरस से संक्रमित होने की कथित तौर पर झूठी खबर चला दी। इस समाचार चैनल के संवाददाता और एंकर के खिलाफ सख्त एक्शन लेने का आदेश दिया गया। अंतत: ये सभी खबरें फेक न्यूज की श्रेणी में आईं। दक्षिण एशिया में लंबे समय तक बीबीसी की पहचान रहे अंग्रेजी के वरिष्ठ पत्रकार लेखक श्री मार्क टुली ने माना, देश में फेक न्यूज तेजी से चल रही हैं। यह बहुत ही चिंताजनक है।

सूचना और प्रसारण मंत्री ने फोर्थ पिलर को आश्वस्त किया, समाचारों पर रोक लगाने से प्रेस की स्वतंत्रता पर कोई आंच नहीं आएगी। अफवाहें बड़ी तेजी से फैलती हैं। उनके दुष्परिणाम भी बहुत घातक होते हैं। सरकार फेक न्यूज से निपटने के लिए कृत संकल्प है। सूचना और प्रसारण मंत्री ने कहा कि इस बात को लेकर देश में हमेशा बहस होती रही है कि प्रेस को कितनी आजादी मिलनी चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत में प्रेस की आजादी के हनन का एकमात्र उदाहरण आपात काल के दौरान देखने को मिला था। उन्होंने कहा कि फेक न्यूज मीडिया की स्वतंत्रता के लिए बहुत बड़ा खतरा है। देश में लॉकडाउन के दौरान प्रिंट, इलैक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया, खासतौर पर ट्विटर, फेसबुक और वाट्स-एप पर फेक न्यूज का फैलाव बढ़ा है। इस चुनौती से निपटने के लिए सरकार ने पत्र सूचना कार्यालय में तथ्यों की जांच के लिए फेक्ट चैक एकांश गठित किया है, जो ऐसी खबरों का तत्काल संज्ञान ले रहा है।

हकीकत यह है, प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और फिल्मों की भांति वेब स्ट्रीमिंग साइटों (ओटीटी) के लिए भी नियमन का होना आवश्यक है। ओटीटी मंचों में समाचार पोर्टल, वेबस्ट्रिमिंग साइट’ जैसे हॉटस्टार, नेटफ्लिक्स और आमेजन प्राइम वीडियो आते हैं। मुख्य धारा मीडिया के कई संस्थानों ने सरकार से कहा है कि ओटीटी के साथ समान स्तर का मुकाबला नहीं है क्योंकि उनका कोई नियमन नहीं होता है। केंद्रीय मंत्री ने खुद सलाह मांगी है कि इससे कैसे निपटा जाएं क्योंकि ओटीटी पर लगातार सिनेमा आ रहा है, जिसमें अच्छा, बुरा और बहुत बुरा भी है। ऐसे में इससे कैसे निपटें, निगरानी कौन करे, किसे नियमन करना चाहिए? ओटीटी मंचों के लिए कोई प्रमाणन संस्था नहीं है। समाचार पोर्टल के लिए भी यही स्थिति है। सरकार मानती है, इस संबंध में अभी तक कोई फैसला नहीं लिया गया है। प्रिंट मीडिया की जवाबदेही भारतीय प्रेस परिषद, समाचार चैनलों की जवाबदेही न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन (एनबीए), विज्ञापनों के लिए भारतीय विज्ञापन मानदंड परिषद और फिल्मों के लिए सेंसर बोर्ड है, लेकिन ओटीटी मंचों के लिए कुछ भी नहीं है। कड़वा सच यह है, तीनों सेंसर बोर्ड टीथलैस ही हैं।

                                                                                                            -श्याम सुंदर भाटिया

 

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