मिलावटखोरी का काला व्यापार रूकने का नाम नहीं ले रहा। बिहार में नकली बासमती चावल बनाने का पर्दाफाश हुआ है। यह मिलावटखोर 30 रुपए वाले चावलों में एक पाऊडर मिलाकर उसे 100 रुपए प्रति किलो के हिसाब से बेच रहे थे। यह धंधा इतने बड़े स्तर पर हो रहा था कि मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ व गुजरात तक इन चावलों की सप्लाई हो रही थी।
दरअसल मिलावटखोरी भी हाईटैक हो रहे हैं, जो वैज्ञाानिक खोजों को गलत तरीके से प्रयोग कर रहे हैं। इस साल खपतकारों (उपभोक्ताओं) की केवल जेब ही नहीं बल्कि स्वास्थ्य पर भी गलत असर पड़ रहा है। अब यह सवाल भी उठता है कि आखिर स्वास्थ्य विभाग और खाद्य व आपूर्ति क्या कर रहा है? हजारों की संख्या में इन विभागों के कर्मचारी मिलावटखोरी को रोकने के लिए क्यों कुंभकर्णी नींद सोए हुए हैं? आखिर इतने बड़े व्यापार का पर्दाफाश करने में इतनी देरी क्यों हुई? मिलावटखोरों पर मुकदमें तो होते हैं पर सजा हुई तो ऐसा बहुत कम है। आखिर दोषी किसी वजह से सजा से बच जाते है। ऊपर से सिर पर त्यौहारों का सीजन हो।
हर साल नकली खोए की बड़ी खेपें बरामद होती है लेकिन इस पर पूरी तरह से रोक नहीं लग सकी। मिलावटखोरी भी नशा तस्करी से कम खतरनाक नहीं। चावलों में प्रयोग होने वाला खुशबूदार पाऊडर रसायनयुक्त होता है जो बीमारियों का कारण बनता है। मिलावटखोरी का नैटवर्क इतना बड़ा कारोबार बन गया है कि मिलावटखोर लोगों के स्वास्थ्य को खतरे में डालकर अरबों रुपए कमा रहे हैं। हालात यह है कि त्यौहारी सीजन के दौरान जब भी सैंपल भरे जाते है उनमें अधिकतर फेल हो रहे हैं। उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में खाद्य व आपूर्ति विभाग द्वारा विभिन्न दुकानों से भरे 167 सैंपलों में से सभी फेल साबित हुए। इसी तरह दूध की कमी के कारण दूध से दूध बनने वाले पदार्थों में मिलावट जोरों पर है। पनीर खरीदने वाले लोग काफी दुविधा में नजर आते है।
मिलावटखोरी केवल छोटे-मोटे दुकानदारों तक सीमित नहीुं रही। बल्कि यह बड़े नैटवर्क का रुप धारण कर चुकी है व इसका दायरा लगतार बढ़ता जा रहा है। मिलावटखोरी रोकने के लिए भ्रष्टाचार का रोकना अति जरूरी है। जनता को इस बारे में जागरुक करने की भी जरुरत है कि वह खाने-पीने की वस्तुओं की गुणवत्ता की जांच करवाएं। अधिकारी इस बात पर जरुर ध्यान दें यदि वह मिलावट प्रति गंभीर न हुए तो इसके दुष्प्रभाव से वे खुद व उनके परिवारिक सदस्य भी नहीं बच सकेंगे। मिलावटखोरी रोकना, देश को मजबूत करना है।