जम्मू कश्मीर के युवा आईएएस अधिकारी शाह फैसल ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है, वह जम्मू कश्मीर (Faisal Should Stand Against Terrorism) के 2010 की आईएएस परीक्षा में अव्वल रहने वाले पहले कश्मीरी हैं। उनके इस्तीफे के बाद राजनीतिक गलियारों में दो बिंदुओं पर बहस शुरू हो गई है। पहली बात यह है कि शाह फैसल ने सुरक्षा बलों के साथ झड़प दौरान मृतक नागरिकों का मुद्दा उठाया है। इसके अलावा धार्मिक असहनशीलता को इस्तीफे का कारण बताया है, दूसरी तरफ विरोधियों को आपत्ति है कि वह आतंकवाद पर चुप क्यों हैं? नि:संदेह आम नागरिकों की मौत गंभीर विषय है, लेकिन फैसल के फैसले में भी राजनीति की बू आ रही है। फैसल नागरिकों की मौत के संदर्भ में कश्मीर के युवा के तौर पर कम और एक राजनेता के रूप में ज्यादा बोल रहे हैं। यह भी चर्चा है कि वह जल्द ही नेशनल कान्फ्रैंस पार्टी में शामिल हो जाएंगे।
फैसल की शब्दावली में केंद्र या भाजपा का विरोध स्पष्ट नजर आ रहा है। दरअसल कश्मीरी राजनीति की (Faisal Should Stand Against Terrorism) एक पहचान बन गई है जिसने राज्य की राजनीति में चमकना है, वह केंद्र सरकार के खिलाफ कोई न कोई धार्मिक व अलगाववादियों से सुहानूभूति का पैंतरा ईस्तेमाल करता है। जहां तक आम नागरिकों की मौत का सवाल है, यह बेहद चिंता व दुख का विषय है। लेकिन फैसल मुद्दों का हल निकालने की बजाय मुद्दे को इस्तेमाल करते नजर आ रहे हैं। वास्तव में कश्मीर को ऐसे युवा नेताओं की आवश्यकता है जो केंद्र व आम जनता में एक पुल बनने का काम करें। आम नागरिकों की मौत पर पत्थरबाजी की घटनाएं एक सिक्के के दो पहलू बन गए हैं।
पाकिस्तान में बैठे आतंकवादी संगठन पैसा भेजकर युवाओं से पत्थरबाजी करवा रहे हैं। पुलिस के पास इसके बकायदा प्रमाण है। बेरोजगार युवाओं को गुमराह कर पत्थर मरवाए जाते हैं। आवश्यकता यह थी कि युवाओं को गुमराह करने से बचाने के लिए मुहिम चलाई जाती दूसरी तरफ विदेशी आतंकवाद ही सभी समस्याओं की जड़ है। कश्मीर में आतंकवादियों को नायकों के रूप में पेश किया जा रहा है, जबकि बुरहान वाणी जैसे आतंकवादियों के पारिवारिक सदस्य भी आतंकवाद के खिलाफ हैं।
यदि फैसल को कश्मीर की नाजुक स्थिति की चिंता है तब वह सेना की कार्यवाईयों पर सवाल उठाने के साथ-साथ आतंकवाद के खिलाफ भी कोई मुहिम शुरू करें। फैसल को इस बात का भी इल्म होना चाहिए कि राज्य में यदि आम जनता के साथ सैनिक कर्मचारियों ने धक्केशाही की है तो उन्हें अदालत ने सजाएं भी सुनाई गई हैं। फैसल को कलम की ताकत का भी प्रयोग करना चाहिए। वह आम जनता के हक में आने की पहल करें और जनता की आवाज सरकार, मीडिया तक पहुंचाएं, लेकिन यह काम केवल लोगों को समर्पित नेता ही कर सकता है, किसी पार्टी विशेष के साथ जुड़ने का इच्छुक तो अपने मतलब की ही बात करेगा। यह प्रतीत होता है कि फैसल ने कश्मीर मामले में निष्पक्षता व ईमानदारी से फैसला नहीं लिया।
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