पूरी दुनिया में समय पूर्व होने वाली एक चौथाई मौतों के लिए प्रदूषण से पर्यावरण को होने वाला नुकसान जिम्मेदार है। खाद्य पदार्थ, पानी और हवा इस कदर दूषित हो रहे है कि आने वाली पीढ़ी के अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा है। यह बात हाल ही में आई एक रिपोर्ट से सामने आई है। 70 देशों के 250 वैज्ञानिकों द्वारा 6 साल में तैयार की गई एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई है। इस रिपोर्ट के अनुसार जलवायु परिवर्तन और कार्बन डाइआॅक्साइड जैसी ग्रीन हाउस गैसों के पढ़ने से पूरी धरती का अस्तित्व खतरे में है। अकेले वायु प्रदूषण से फैली जहरीली गैसे दुनिया भर में करोड़ों लोगों को मौत की नींद सुला रही हैं। इस रिपोर्ट में पेरिस समझौते के लक्ष्य को पूरा करने के लिए कोई रूपरेखा तैयार नहीं होने पर भी चिंता जाहिर की गई है। इसके साथ ही एक ओर चिंताजनक रिपोर्ट है, वह रिपोर्ट विश्व मौसम विज्ञान संगठन ने जारी की। इस रिपोर्ट ने भी पूरी दुनिया को चिंता में डाल दिया। संयुक्त राष्ट्र संघ के अन्तर्गत जलवायु से सम्बन्धित 191 देशों की सदस्यों वाली आधिकारिक संस्था विश्व मौसम विज्ञान संगठन(डब्ल्यूएमओ) ने ग्रीन हाउस गैसों को लेकर ‘ग्रीन हाउस गैस बुलेटिन’ नाम से वार्षिक रिपोर्ट जारी की, जो वर्ष 2018 की प्रतिबद्धताओं पर आधारित है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि इस समय धरती के वायुमंडल में कार्बन डाइआॅक्साइड, मीथेन और नाइट्रस आॅक्साइड जैसी ग्रीन हाउस गैसों की मात्रा रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई है। इस रपट में विश्व के विभिन्न देशों के द्वारा ग्रीन हाउस गैसों को लेकर उठाए गए कदमों, आवश्यताओं, कमजोरियों और आंकड़ों को सम्मिलित किया गया है।
रिपोर्ट पर नजर डालने पर आंकड़े सामने आते हैं कि वायुमंडल में कार्बन डाइआॅक्साइड की मात्रा 2015 और 2016 की तुलना में 2017 में अधिक हुई है। जहां 2015 में कार्बन डाइआॅक्साइड का वायुमंडल में स्तर 400.1 पीपीएम (पार्ट्स पर मिलियन) था वहीं साल 2016 में यह 403.3 पीपीएम था जबकि वर्ष 2017 में यह स्तर बढ़कर 405.5 पीपीएम के वैश्विक स्तर तक पहुंच गया है जो ओद्यौगिक क्रांति से पूर्व की बनिस्पत ढाई गुणा अधिक है। इसी तरह मीथेन गैस की वर्ष 2017 में वायुमंडल में मात्रा 1859 पिपीबी (पार्ट्स पर बिलियन)के नए उच्च स्तर तक पहुंच गयी है। जोकि ओद्यौगिक क्रांति से पूर्व की तुलना में 257 फीसदी अधिक है वहीं वर्ष 2017 में नाइट्रस आॅक्साइड की वायुमंडल में मात्रा 329.9 पीपीबी (पार्ट्स पर बिलियन) दर्ज की गई जो पूर्ण ओद्यौगिक स्तर से 122 फीसदी ज्यादा है। जहां तक ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जक देशों का सवाल है तो संयुक्त राज्य अमेरिका सबसे ज्यादा ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन करता है जिसने ही क्योटो प्रोटोकॉल मानने से इन्कार कर दिया है। संयुक्त राज्य अमेरिका में 20 टन से अधिक प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन किया जाता है इसके बाद रूस, जापान, यूरोपियन देशों और चीन का नंबर आता है। भारत में वैश्विक स्तर पर ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन मात्र 1.2 टन प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष है। फिर भी हमें भविष्य में पृथ्वी के वजूद के लिए सावधान रहने की जरुरत है। इस रिपोर्ट में यह चिंता जाहिर की गई है कि कार्बन डाइआॅक्साइड और अन्य ग्रीन हाउस गैसों में कटौती किए बिना जलवायु परिवर्तन का खतरा बहुत तेजी के साथ बढ़ता जाएगा और धरती पर इसका अपरिवर्तनीय असर पड़ेगा जिससे पृथ्वी के जीवजगत पर विनाशकारी प्रभाव पड़ेगा।
यह भी ज्ञात है कि ग्रीन हाउस गैसों में बेतहाशा बढ़ोतरी और धरती के तापमान में वृद्धि के मुख्य कारण मानव द्वारा निर्मित किए हुए है। एक तरफ तमाम देशों के द्वारा जीवाश्म ईंधन का अंधाधुंध उपयोग किया जा रहा है, तेजी से नगरीकरण बढ़ने लगा है, ओद्यौगीकरण तीव्र गति से चल रहा है, उपभोक्तावादी संस्कृति का फैलाव और वन विनाश ये सभी कारण ग्रीन हाउस गैसों में वृद्धि के लिए जिम्मेदार है। और इन सब कारणों के परिणामस्वरूप जलवायु में परिवर्तन हो रहा है, पारिस्थितिक तंत्र का संतुलन डगमगा रहा है, तापमान बढ़ रहा है जिससे धरती को बुखार चढ़ रहा है, कृषि पर विपरीत असर देखने में आ रहे हंै, ओजोन परत का क्षरण हो रहा है।
विगत तीस वर्षों से पृथ्वी की सतह का तापमान हर दशक में औसतन 0.2 डिग्री सेल्सियस की दर से बढ़ा है। उत्तरी गोलार्ध के ऊंचे भागों में तापमान विशेष रूप से अधिक बढ़ा है। जिससे ग्लेशियर पिघल रहे हैं। वहीं पिछले 25 वर्षों से उपग्रहों से प्राप्त आंकड़े बताते हैं कि दुनिया के उपोष्ण भागों में तापमान तेजी से बढ़ रहा है। अगर अब भी इसी तरह ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन का अनवरत रूप से बढ़ना जारी रहा तो वह दिन दूर नहीं जब पृथ्वी अपने विनाश की ओर अग्रसर हो जाएगी। ऐसे हालात में एक समय ऐसा आ जाएगा जब गर्म हवाओं के तूफान उठेंगे, कहीं समुद्र का जल स्तर बढ़ जाएगा जिससे निचले हिस्सों में बसे देश जलमग्न हो जाएंगे, कहीं सूखे की मार से पीने और सिंचाई का पानी नहीं मिलेगा, वन नष्ट हो जाएंगे। इसलिए दुनिया के तमाम देशों की जरूरत है कि वो बढ़ते प्रदूषण को नियंत्रित करने के पुख्ता इंतजाम करें और पृथ्वी के अस्तित्व को खोने से बचाए। बीते वक्त में आईपीसीसी ने ही अपनी रिपोर्ट में बताया था कि विश्व के सभी देश बिना समय बर्बाद किए ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन पर अंकुश लगाएं। दुनिया जब विकास के पथ पर चलनी शुरू हुई तभी से ही विश्व को पृथ्वी के वातावरण के प्रति आगाह करने के उद्देश्य के लिए ही संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 23 मार्च 1950 को जिनेवा में विश्व मौसम विज्ञान संगठन की स्थापना की गई थी।
यह संगठन पृथ्वी के वायुमंडल की परिस्थिति और व्यवहार, महासागरों के साथ इसके सम्बन्ध, मौसम और इसके परिणास्वरूप जल संसाधनों के वितरण के बारे में जानकारी देने के लिए स्थापित किया गया लेकिन आज इसकी बातों के प्रति सदस्य देशों में प्रतिबद्धता की कमी है। अपने अस्तित्व को कायम रखने के लिए जरूरी है कि पूरे विश्व द्वारा नवीकरणीय और न्यून प्रदूषण वाली ऊर्जा स्रोतों का अधिक प्रयोग किया जाना चाहीए। टेलीविजन, रेफ्रिजरेटर, एयर कंडीशनर आदि ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जक उपभोक्ता वस्तुओं का कम से कम उपयोग किया जाना चाहिए। ईंधन वाहनों के उपयोग पर नियंत्रण लगाकर इलेक्ट्रिक वाहनों पर निर्भरता को बढ़ाना होगा। वनीकरण को बढ़ावा देने के साथ ही ऊर्जा का विवेकपूर्ण एवं सतत प्रयोग किया जाना सुनिश्चित किया जाना चाहिए। अन्यथा मानव का अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाएगा।
नरपत दान चारण
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