नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट का वोटर वैरीफिकेशन पेपर आॅडिट ट्रेल (वीवीपीएटी) के साथ ईवीएम का उपयोग करके डाले गए वोटों के पूर्ण क्रॉस-वैरीफिकेशन की मांग करने वाली याचिकाओं पर फैसला आ सकता है। न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ उस याचिका पर निर्देश सुना सकती है, जिस पर शीर्ष अदालत ने 18 अप्रैल को आदेश सुरक्षित रख लिया था। उल्लेखनीय है कि वीवीपीएटी एक स्वतंत्र वोट वैरीफिकेशन प्रणाली है जो मतदाताओं को यह देखने में सक्षम बनाती है कि उनका वोट सही तरीके से डाला गया है या नहीं। EVM-VVPAT Verification Case
एक मतदाता केवल रोशनी होने पर ही 7 सेकंड के लिए पर्ची देख सकता है
एनजीओ ‘एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) उन याचिकाकर्ताओं में से एक है, जिन्होंने वीवीपैट मशीनों पर पारदर्शी ग्लास को अपारदर्शी ग्लास से बदलने के चुनाव आयोग के 2017 के फैसले को उलटने की मांग की है, जिसके माध्यम से एक मतदाता केवल रोशनी होने पर ही 7 सेकंड के लिए पर्ची देख सकता है। एडीआर ने ईवीएम में गिनती का मिलान उन वोटों से करने की मांग की है जिन्हें सत्यापित रूप से डालने के रूप में दर्ज किया गया है और यह सुनिश्चित करने के लिए कि मतदाता वीवीपैट पर्ची के माध्यम से यह सत्यापित करने में सक्षम है कि उसका वोट, जैसा कि कागजी पर्ची पर दर्ज किया गया है, उसे गिना गया है, रिकॉर्ड किया गया है।
कोर्ट की पिछली सुनवाई में चुनाव आयोग की ओर से पेश वरिष्ठ वकील मनिंदर सिंह ने दलील दी थी कि ईवीएम स्टैंडअलोन मशीनें हैं और उनके साथ छेड़छाड़ नहीं की जा सकती, लेकिन मानवीय त्रुटि की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है। 16 अप्रैल को, शीर्ष अदालत ने ईवीएम की आलोचना और मतपत्रों को वापस लाने की मांग की निंदा करते हुए कहा था कि भारत में चुनावी प्रक्रिया एक बहुत बड़ा काम है और सिस्टम को गिराने का प्रयास नहीं किया जाना चाहिए। EVM-VVPAT Verification Case
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