पति और बेटी की मृत्यु के बाद भी नहीं टूटा पढ़ने का हौंसला, अब बनी राजस्थान में अध्यापक….
चौपटा (सच कहूँ/भगत सिंह)। गाँव तरकांवाली (Tarkanwali) के हरिसिंह नंबरदार की पोत्री और घनीराम नंबरदार की बेटी सरोज ने अपने गाँव व क्षेत्र का मान सम्मान बढ़ाकर बेटियों एवं महिलाओं के लिए रॉल मॉडल बनी हैे 2002 में मैट्रिक करने के पश्चात सरोज की शादी वर्ष 2003 में भादरा क्षेत्र के गाँव जनाना निवासी भूपसिंह गढ़वाल के बेटे भगतसिंह गढ़वाल के साथ हुई थीे। Sirsa News
2009 में सरोज के पति भगतसिंह गढ़वाल की मृत्यु हो गईे सरोज के उम्र उस समय महज 23 वर्ष थीे सरोज के लिए ये बहुत ही कठिन दौर थो एक 2 वर्ष का बेटा और एक 5 वर्ष की बेटी के सहारे सरोज के लिए जी पाना बहुत मुश्किल थो किसी ने ठीक कहा है कि जीवन आगे बढ़ने का नाम हैे सरोज को पढ़ने के लिए बार बार प्रेरित किया गया लेकिन सरोज के लिए ये बहुत कठिन दौर थो पति कि मृत्यु के चार साल बाद 2013 में सरोज ने 12 वीं कक्षा अच्छे नंबरों से उत्तीर्ण कीे खुशी का माहौल थो 12वीं करने के एक सप्ताह बाद ही उनकी बेटी भी एक बड़े हादसे का शिकार हो गई और अब सरोज की सारी जिंदगी नरक की तरह बन गईे सरोज के लिए अब सारी उम्मीदें टूटती जा रही थीे। Sirsa News
2002 में मैट्रिक करने वाली सरोज 2013 में 12 वीं पास करती है यानी 11 साल के लम्बे अंतराल बाद, बुद्धिजीवी लोग अक्सर कहते हैं पढ़ाई की कोई समय सीमा या उम्र नहीं होतीे सरोज के घर उनके एक रिश्तेदार आया जो खुद टीचर थे उन्होंने बीएसटीसी की पुस्तक सरोज को लाकर दीे अब सरोज ने हौसला दिखाया और उस पुस्तक को पढ़ने लगीे अब 5 साल के बाद सरोज ने बीएसटीसी परी का पेपर क्लियर कर दिया और सलेक्शन हो गयो वर्ष 2021 में मैंने पात्रता का पेपर क्लियर कियो सरोज की इस उपलब्धि को लेकर के पूरे गांव और पूरे क्षेत्र में खुशी का माहौल यह प्रतीत कर रहा है
कि आप में अगर कुछ कर गुजरने का मादा है तो आप उन तमाम बुलंदियों को छू सकते होे अपने सपने साकार कर सकते होे इस अवसर पर पहुंचे विक्रम इंदौरा ने सरोज को डॉ अम्बेडकर की फोटो देकर सम्मानित किया और कहा कि बाबा साहब डॉ अम्बेडकर ने कहा था की शिक्षा शेरनी का वो दूध है जो पिएगा वही दहाड़ेगा, बेटियां आज बेटों से आगे बढ़कर अपने देश प्रदेश और क्षेत्र गांव का नाम रोशन कर रही हैे सरोज उन तमाम बेटियों और महिलाओं के लिए प्रेरणादायक है, रोल मॉडल है, जो विपरीत परिस्थितियां होने के बावजूद समय को और परिस्थितियों को कोसते रहते हैें
सरोज के जीवन में बार-बार विपरीत समय आया, कठिन दौर आया लेकिन सरोज ने हार नहीं मानीे अपने हौसले और जज्बे के साथ सरोज निरंतर आगे बढ़ती चली गई आखिर में अध्यापिका बनकर समाज में नया उदाहरण पेश किया हैे सबसे बड़ी बात की सरोज अपने पिता घनीराम नंबरदार की इकलौती पुत्री हैे इस प्रेरणादायक खबर ने जहां उनके माता-पिता गांव क्षेत्र का नाम रोशन किया है वहीं उनके ससुराल भादरा क्षेत्र के गांव जनाणा में भी खूब खुशी का माहौल हैे सरोज की मां ने कहा कि हर मां बाप जैसे हमने सरोज को पढ़ाया है वैसे ही उन तमाम लड़कियों को अवसर प्रदान करें, बेटियां बोझ नहीं हैे। Sirsa News
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