देश में कोरोना की दूसरी लहर थमती दिखाई दे रही है। पिछले कुछ दिनों से राष्ट्रीय स्तर पर संक्रमितों का आंकड़ा एक और सवा लाख के आस-पास है। रिकवरी रेट बढ़ रहा है। कोरोना का प्रभाव कम होते ही विभिन्न प्रदेशों में लॉकडाउन और आंशिक कर्फ्यू में ढील देनी शुरू कर दी है। अर्थव्यवस्था को गति देने और जनजीवन को सामान्य करने के लिए ये ढील जरूरी है। लेकिन ढील मिलने के साथ ही नागरिकों की जिम्मेदारी बढ़ गई है। ये खुला तथ्य है कि देश में कोरोना की दूसरी लहर का ज्यादा घातक होना हम सबकी लापरवाही और कोविड प्रोटोकाल की अनदेखी का ही नतीजा था। अच्छी बात है कि देश के कई राज्यों में अनलॉक की प्रक्रिया शुरू हो गई है। मगर इसके साथ हमारी जिम्मेदारी बढ़ गई है। इसी बीच सबसे चिंता की खबर वीरवार को सुनने को मिली, जहां देश भर में पिछले 24 घंटों में 6168 लोगों की मौत हुई।
राजधानी दिल्ली, उप्र, महाराष्ट्र समेत कई दूसरे राज्यों में लॉकडाउन कुछ शर्तों के साथ और सीमित आधार पर खोलने की प्रक्रिया शुरू की गई है। यह बेहद जरूरी है, क्योंकि कोरोना वायरस हमारी जिंदगी का हिस्सा पिछले दो साल से बना हुआ है। और ये कब तक जिंदा रहेगा इसका जवाब फिलवक्त किसी के पास नहीं है। यह वायरस दुनियाभर में फैला हुआ है। जब तक उसका पूरी दुनिया में अंत नहीं होगा, तब तक कोरोना समाप्त होने के मुगालते पालना फिजूल है। हालांकि कुछ विशेषज्ञ मान रहे हैं कि अनलॉक करना जल्दबाजी है। चीन, मलेशिया, सिंगापुर, ब्रिटेन, जर्मनी, इटली आदि देशों में वायरस नए सिरे से फैला है, लिहाजा वहां दोबारा लॉकडाउन लगाने की नौबत आ गई है।
याद करिए जब पिछले साल कोरोना वायरस ने भारत में ताला लगा दिया था। प्रधानमंत्री की घोषणा के बाद देश भर में काम बंद हो गया। लोग अपने घरों में कैद हो गए. हजारों मजदूरों ने पैदल ही अपने घरों की तरफ लौटना शुरू कर दिया। कुछ तो हजारों किलोमीटर पैदल चलकर अपने घर पहुंचे। पहली लहर शांत होने के बाद सरकार और प्रशासन का ध्यान सर्तकता से हट गया। देशवासियों ने स्वदेशी वैक्सीन के बनने और टीकाकरण के बाद ये मान लिया कि अब कोरोना वायरस उनका कुछ बिगाड़ नहीं सकता। लेकिन नतीजा सबके सामने है।
बीते अप्रैल में कोरोना की दूसरी लहर ने जितना जान-माल का नुकसान किया है, उसका निश्चित आंकड़ा किसी के पास नहीं है। घर के घर बर्बाद हो गये हैं। स्वास्थ्य सेवाओं की हालत भी फिलहाल किसी से छिपी नहीं रही। ऐसे में हमारा खुद का अनुशासन और संयम ही हमें बचा सकता है। विशेषज्ञों का एक तबका ऐसा है, जो आर्थिक स्थितियों को बेहद गंभीर मानता रहा है और लगातार लॉकडाउन के पक्ष में नहीं है। वह लॉकडाउन को कोरोना का उपचार मानता ही नहीं। केवल व्यापक टीकाकरण ही कोविड का इलाज है। उस तबके का सवाल है कि कोरोना की मौजूदगी के मद्देनजर कब तक तालाबंदी जारी रखी जा सकती है? जीवन के साथ-साथ जीविका भी बेहद महत्त्वपूर्ण है। लॉकडाउन के बजाय कंटेनमेंट इलाकों पर फोकस होना चाहिए, ताकि वायरस का प्रसार सीमित रखा जा सके।
अनलॉक में कोविड प्रोटोकॉल का पालन कराने में दुकानदारों की प्रमुख भूमिका रहेगी। दुकानदारों को दुकान पर भीड़ लगने से रोकना होगा। कोरोना की रोकथाम के लिए बाकी प्रबंध भी करने होंगे। यह सभी की जिम्मेदारी है। वहीं ये भी मान लीजिए कि अनलॉक की प्रक्रिया शुरू होने का यह मतलब नहीं है कि हमें पूरी छूट मिल गई है। हमें सावधानी हर हाल में बरतनी होगी। अभी स्कूल बंद है लिहाजा बेहद जरूरी काम होने पर ही घर से बाहर निकलें। बाहर निकलते समय भी मास्क का प्रयोग जरूर करें। हो सके तो कुछ दिन कॉलोनियों के पार्क में भी न जाएं। सीनियर डाक्टर्स कहते हैं कि, अभी तक कोरोना वायरस के खिलाफ समाधान बायोसाइंस में देखे जा रहे हैं, बायोमेडिकल एप्रोच से सोचा जा रहा है। लेकिन लगता है कि हमें सामाजिक नजरिए से भी सोचना होगा। मास्क के प्रति नजरिया बदलने से भी वायरस के खिलाफ लड़ाई मजबूत हुई है। लोगों का व्यवहार बदलने पर भी जोर देना होगा। ये देखा गया है कि लोगों का व्यवहार बदलने से भी कोरोना के खिलाफ लड़ाई मजबूत हुई है।
भारत में जनभागीदारी कोरोना के खिलाफ लड़ाई में अहम साबित हुई है। अमेरिका जैसे देशों से तुलना की जाए तो भारत के लोगों की भागीदारी लड़ाई में बेहतर रही है। हमें ये भी कहना होगा कि जिम्मेदार लोगों ने इस लड़ाई में अहम भूमिका निभाई है। लेकिन इन सबके बावजूद अमेरिका के मिशिगन यूनिवर्सिटी में महामारी रोग विशेषज्ञ भ्रमर मुखर्जी के उस बयान को हमें याद रखना है जिसमें उन्होंने कहा था कि, इस वायरस के साथ खतरे की बात यही है कि शुरूआत में इसकी ज्यादा ग्रोथ होती नहीं दिखती। हर दिन थोड़ा फैलाव होता है। ये बहुत खामोशी से कदम आगे बढ़ता है। उसके बाद फट पड़ता है। आपको खामोशी से आगे बढ़ती पदचाप को सुनना और पहचानना होगा।
विशेषज्ञों के मुताबिक, यूरोपीय देशों और अमेरिका से हमें ये अनुभव मिला है कि ये वायरस खास पैटर्न पर चलता है और अगर इसके खिलाफ लड़ाई में जरा भी ढील दी जाए तो ये फिर से लौट आता है। अभी हम महामारी के बीच में हैं और जब तक आखिरी मामला समाप्त नहीं होगा तब तक हम ये नहीं कह सकते हैं कि हम जीत गए हैं। दूसरी लहर के कहर के बाद इस बार हमें छूट मिलनी शुरू हुई, ऐसे में हम सबकी जिम्मेदारी बनती है कि इस आजादी का प्रयोग अनुशासित तरीके से करेंगे। विशेषज्ञ तीसरी लहर की चेतावनी तो दे ही रहे हैं।
-आशीष वशिष्ठ
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