अनिवार्य है धरती के स्वास्थ्य को नष्ट होने से बचाना

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जिस प्रकार जन्मदात्री माता हमारा पालन-पोषण करती है, उसी प्रकार से पृथ्वी भी प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से हमारा पालन-पोषण करती है। उसमें उत्पन्न अन्न, फल-फूल व मेवे हमारा आहार बनते हैं। उसमें प्रवाहित होने वाली नदियों के जल से हमारी प्यास बुझती है। पृथ्वी के वायुमंडल में उपस्थित आॅक्सीजन हमारे जीवित रहने के लिए अनिवार्य है जो पृथ्वी पर उगने वाले पेड़-पौधों व वनस्पतियों के द्वारा ही प्रदान की जाती है। उसकी धूल में ही हम बड़े होते हैं। पृथ्वी की ऊपरी सतह अर्थात् मिट्टी स्वयं उपचारक शक्ति से युक्त होती है लेकिन आज यह रिश्ता लगातार कमजोर पड़ता जा रहा है। इसमें अनेक दरारें पड़ चुकी हैं। इसका सीधा असर मनुष्य के पोषण व परिवेश पर पड़ रहा है। जिस प्रकार से एक माँं के स्वास्थ्य का सीधा संबंध उसके नन्हे शिशु के स्वास्थ्य से है उसी प्रकार से धरती माँं के स्वास्थ्य का संबंध भी उसकी संतानों अथवा मनुष्यों से है।

यदि धरती माँं का स्वास्थ्य भी पूरी तरह से बिगड़ गया तो उसकी संतानों अर्थात् मनुष्य का न केवल भौतिक स्वास्थ्य बिगड़ जाएगा अपितु उसका जीवित रहना ही असंभव हो जाएगा। धरती माँ के स्वास्थ्य से क्या तात्पर्य है? धरती मां के स्वास्थ्य से तात्पर्य है उसकी ऊपरी सतह व वायुमंडल के स्वास्थ्य अथवा शुद्धता से। आज हमारे भूमंडल के पांचों तत्व धरती, जल, अग्नि, वायु व आकाश पूरी तरह से प्रदूषित हो चुके हैं। पृथ्वी की ऊपरी सतह अर्थात् भूमि पर अनेक प्रकार के प्रदूषित पदार्थों व कूड़े-कचरे के ढेर लगे हैं। मानव द्वारा उत्पन्न कूड़े का प्रबंधन एक बड़ी समस्या बन गई है। वनों की बेतहाशा कटाई व खनन के कारण पारिस्थितिकी बुरी तरह से प्रभावित हुई है। जैव विविधता नष्ट हो रही है। उद्योगों से निकला कचरा व रासायनिक पदार्थ भूमि की उपजाऊ परत, नदियों व भूमिगत जल को बुरी तरह से प्रभावित कर रहे हैं।

ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण समुद्रों का जल स्तर निरंतर बढ़ता जा रहा है जिसके कारण दुनिया के कई ख़ूबसूरत शहरों को समुद्र में डूब जाने से कोई नहीं बचा पाएगा। उद्योगों व वाहनों के जÞहरीले धुएं से आज दिल्ली, मुंबई ही नहीं देश व दुनिया के सभी बड़े शहरों की हवा इस कदर ख़राब हो चुकी है कि इन शहरों में लोगों का साँस लेना भी मुश्किल होता जा रहा है। आॅक्सीजन के साथ-साथ अन्य जÞहरीली गैसें भी मनुष्य के शरीर में प्रविष्ट होकर अनेक विकारों को जन्म दे रही हैं। कार्बनडाईआॅक्साइड जैसी गैसें अधिक मात्रा में हमारे रक्त में मिल जाने के कारण हमारी कार्य क्षमता में निरंतर कमी आती जा रही है। इस जÞहरीली हवा में साँस लेने के कारण बच्चे, बूढ़े और बीमार ही नहीं, स्वस्थ नवयुवक भी थके-थके से लगते हैं। इसके साथ अनेक अन्य रोग भी हम पर आक्र मण कर रहे हैं और प्रदूषण के कारण रोगों के ठीक होने की संभावनाएँ भी लगातार कम होती जा रही हैं।

वो दिन दूर नहीं दिखता जब हर समय मास्क लगाकर रहना पड़ेगा लेकिन पृथ्वी के वायुमंडल की ओजÞोन परत का क्या करेंगे? पृथ्वी के वायुमंडल में आजÞोन की जो परत है, वह सूर्य से आने वाली घातक पराबैंगनी किरणों व अन्य हानिकारक गैसों को पृथ्वी पर आने से रोक कर हमारी रक्षा करती है। उसमें भी छेद हो चुका है। जीवनदायिनी धरती माँं और उसकी संतानों को स्वस्थ बनाए रखने और रोगों से बचाए रखने के लिए धरती माँं का स्वास्थ्य ठीक करना अनिवार्य है। इसके लिए हमें अपने निरंकुश उपभोग पर लगाम लगाकर पृथ्वी व उसके परिवेश को नष्ट होने से बचाना होगा। साथ ही वाहनों की संख्या को एकदम से नियंत्रित करना भी अनिवार्य है अन्यथा वाहन तो होंगे लेकिन वाहनों को चलाने वाले नहीं रहेंगे।

-आशा