आपदा प्रबंधन में कमी व पर्यावरण प्रदूषण बन रहे महामारी

environmental pollution

देश में आपदा प्रबंधन की हालत बहुत ही खराब है। बड़ी तो बड़ी छोटी-छोटी घटनाओं में दर्जन भर लोगों की जान पलक झपकते ही चली जाती है जबकि तब तक राहत कार्य शुरू भी नहीं हो पाते। सूरत में घटित एक कोचिंग संटर में आग की दुर्घटना में करीब डेढ़ दर्जन छात्र मौत के आगोश में समा गए, जबकि उनको पूरी तरह से बचाया जा सकता था। मानव जनित दुर्घटनाओं से प्रति वर्ष हजारों लोग देश में काल कवलित हो रहे हैं लेकिन प्रशासन व सरकार है कि जरा सी भी सीख नहीं ले रहे। देश के शहरी क्षेत्रों में एक बहुत बड़ी आबादी तंग कॉलोनियों व असुरक्षित बिल्डिंगस में रहने का मजबूर है, जिन्हें आग, बाढ़, भूकंप के वक्त आपात सहायता पहुंचा पाना बहुत ही मुश्किल है। इस पूरी अव्यवस्था के लिए भ्रष्ट राजनेता व अधिकारी-कर्मचारी जिम्मेवार हैं।

अवैध नगरीकरण, उस पर अवैध भवनों का निर्माण आज देश के जी का जंजाल बन चुका है। सरकारी स्तर पर आपदा राहत संसाधनों जिसमें फायर ब्रिगेड, ग्रांउड फोर्स यूनिटस की बेहद कमी है। सूरत में घटित घटना में तीन मंजिला कोचिंग कम्पलेक्स सुरक्षा मानकों पर खरा नहीं था, भीड़भाड़ के चलते फायर ब्रिगेड वहां तक नहीं पहुंच सकी। फिर आग से बचने के लिए जो छात्र कूद रहे थे उन्हें बचाने के लिए ग्राउंड फोर्स, जाल आदि कुछ भी उपलब्ध नहीं था। शहरी क्षेत्रों में आगजनी की हर दुर्घटना में बार-बार यही खामियां सामने आती हं वह उपहार सिनेमा अग्निकांड हो या डबवाली हरियाणा के स्कूल में लगी आग हो या कलकत्ता के अस्पताल में लगी आग हो, कई घटनाओं को घटित हुए दशकों हो गए परन्तु नगरपालिका, नगर निगम, राज्य सरकार या केन्द्र सरकार इन समस्याओं का स्थाई हल करने में अभी भी नाकाम हैं। राजनेता सरकारें बनाने के लिए मुफ्त सामान बांटने की करोड़ों अरबों रूपयों की लुभावनी घोषणाएं करते हैं, सरकार बनने पर बेमतलब की लुभावनी वायदापूर्ति योजनाओं एवं उनके प्रचार पर अरबों रूपया बर्बाद भी कर रहे हैं, परन्तु आमजन की समस्याएं जस की तस हैं।

अभी देश को पर्यावरण प्रदूषण से लड़ने एवं आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में निवेश की बहुत ज्यादा जरूरत है परन्तु घिसेपिटे तौर तरीकों से आगे कोई भी नहीं सोच रहा। यदि ज्यादा कुछ नहीं किया गया तो आने वाले वक्त में पर्यावरण प्रदूषण महाआपदा के रूप में भारत जैसे देशों पर टूटने वाला है, लोग बीमारियों, भूख-प्यास, तूफान, कटाव, धुएं से मरेंगे लेकिन सरकार मुआवजे व लीपापोती के प्रबंधों में वक्त व पैसा बर्बाद करने तक ही सीमित रहने वाली है। आपदा प्रबंधन में नगरीकरण में सुधार हो, पुरानी बसावट में सुविधाएं जोड़ी जाएं, प्लास्टिक का प्रयोग कम हो, अवैध खनन, जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण को रोका जाए ताकि आपदा में जन-धन की हानि कम से कम हो।

 

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