दूल्हों के मामा ने ‘भात’ में नींबू के 300 पौधे दिए/ Environment protection
बीकानेर की छत्तरगढ़ तहसील में जिला मुख्यालय से लगभग 125 किलोमीटर दूर (Environment protection) स्थित रामनगर गांव में गत सप्ताह दो युगल दाम्पत्य सूत्र में बंधे। यह अवसर आम वैवाहिक समारोहों से अलग था।इस मौके, परम्पराओं को पर्यावरण संरक्षण से जोड़ा गया। रातीजोगे में मंगल गीत गाने वाली महिलाओं को गुड़ के साथ अनार व नींबू के दो-दो पौधे बांटे गए। ननिहाल पक्ष की परम्परा का निर्वहन करते हुए दूल्हों के मामा ने ‘भात’ में नींबू के 300 पौधे दिए। वर पक्ष की पहल पर बारात में पटाखे नहीं फोड़े गए, बल्कि इसके स्थान पर प्रीतिभोज में आने वाले प्रत्येक अतिथि को जामुन के पौधे देकर विदाई दी गई।
वर पक्ष की ओर से वधू के सम्मान में उसके गांव के सरकारी स्कूल में 101 पौधे लगाए गए। फेरों में सात वचन के साथ आठवां ‘हरित वचन’ लिया गया। इसमें वर-वधू ने हर साल कम से कम एक पौधा लगाने और एक दम्पति को इसके लिए प्रेरित करने का संकल्प लिया। वधू ने परम्परागत ‘कांकड़ पूजा’ के साथ मंदिर में रूद्राक्ष और विल्वपत्र का पौधा लगाने के बाद गृह प्रवेश किया। कुल मिलाकर तीन दिवसीय समारोह में 21 सौ फलदार पौधे लगाए अथवा वितरित किए गए। विजयपाल और रोहिताश नाम के दो युवाओं के विवाह समारोह में इस पहल के सूत्रधार बने बीकानेर के राजकीय महाविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर श्याम सुंदर ज्याणी।
हर एक परम्परा को पर्यावरण संरक्षण और पौधोरोपण से जोड़ा गया/ Environment protection
जब दूल्हा विजयपाल, श्याम सुंदर ज्याणी को विवाह के लिए आमंत्रित करने गया तो ज्याणी ने युवाओं को परिवर्तन का संवाहक बताते हुए विवाह समारोह में यह पहल करने की अपील की। दूल्हे ने दुल्हन को इससे अवगत करवाया और दोनों की रजामंदी के बाद इस नवाचार का खाका तैयार हो गया। बस फिर क्या था, हर एक परम्परा को पर्यावरण संरक्षण और पौधोरोपण से जोड़ा गया। इसने नि:संदेह सैकड़ों लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक किया।
ज्याणी ने गत वर्ष भी नोहर के फेफाना में भी एक दम्पति को ऐसे प्रयासों के लिए प्रेरित किया था, लेकिन इस बार और भी कई नवाचार हुए। बारात में पटाखे जलाने के स्थान पर पौधे बांटना एक अभिनव पहल थी। पटाखों से पैसों की बबार्दी होती है, वहीं यह ध्वनि और वायु प्रदूषण के कारक बनते हैं।
समाज को एक संदेश दिया/ Environment protection
बकौल ज्याणी नि:संदेह पटाखे तो कुछ मिनटों का शौक है, जबकि यह पौधे और इनसे उगने वाले बीज और बीजों से बनने वाले पौधे सैकड़ों वर्षों तक न सिर्फ पर्यावरण की सुरक्षा करेंगे बल्कि इस कड़ी को अनवरत जोड़े रखने से आय के साधन भी बढ़ सकेंगे। इस समारोह में एक ओर नवाचार हुआ ‘हरित फेरा’ और ‘हरित महावचन’। ज्याणी चाहते हैं कि युवा इस पहल का नेतृत्व करें।
वक्त की मांग के अनुरूप सदियों से चली आ रही परम्परा में सकारात्मक बदलाव करते हुए यदि देश की बहुसंख्यक आबादी के प्रतिनिधि युवा इस बदलाव का नेतृत्व करेंगे, तो बदलाव आना भी लाजमी है।यहां ज्याणी तो बधाई के पात्र हैं कि लेकिन उनसे बड़ा साधुवाद विजयपाल और उसके परिजनों को दिया जाना चाहिए। एक ओर जहां विजयपाल ने अपने जीवन के सबसे महत्त्वपूर्ण संस्कार को हमेशा के लिए यादगार बना लिया, वहीं परम्पराओं में पॉजीटिव बदलाव की पहल करते हुए इनके परिजनों ने भी समाज को एक संदेश दिया और प्रकृति के संरक्षण में अपने प्रयास किए। इस पहल में वर-वधू, उनके माता-पिता, मामा और आने वाले अतिथियों की कड़ियां जुड़ती रहीं और एक सार्थक प्रयास हुआ। नि:संदेह यह प्रयास दूसरों को भी प्रेरित करेगा।
तो इस ‘संडे’ का ‘फंडा’ यह है कि पर्यावरण की सुरक्षा करने के लिए इसे परम्पराओं से जोड़ना एक सकारात्मक पहल है। समय-समय पर ऐसे प्रयास होना चाहिए, जो प्राकृतिक संतुलन बनाए रखने में सहायक हो सकें। इन प्रयासों की निरंतरता व्यक्ति, परिवार, समाज और देश के लिए लाभदायक सिद्ध होती है, इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं है।
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