इस 15 अगस्त से पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के तंज मुफ्त की ‘रेवड़ी बांटने’ का कल्चर खत्म हो जाना चाहिए पर देश के एक वर्ग में अच्छी खासी बहस छिड़ गई है। दशकों हो गए देश में क्षेत्रीय व राष्टÑीय राजनीतिक पार्टियां चुनावों से पहले वायदों व घोषणाओं की आड़ में मुफ्त कपड़े, मुफ्त साइकिल, मुफ्त लेपटॉप, स्मॉर्टफोन, मुफ्त बिजली, मुफ्त सफर, महिलाओं, बेरोजगारों को नगद भत्तों की रेवड़ियां बांटते हैं। मुफ्त का माल बांटा सिर्फ इसीलिए जाता है कि पार्टी विशेष को सत्ता हासिल हो जाए। जब मुफ्त के उपहारों का जादू चल जाता है, वोटर ज्यादा उपहार बांटने वालों को सत्ता सौंप देते हैं तब शुरू होता है सरकारी खजाने का पानी की तरह लुटाया जाना।
कोई भी राजनेता, कोई भी राजनीतिक दल मुफ्त की घोषणाओं को पूरा करने के लिए निजी कोष से धन नहीं देते, सारा बोझ सरकारी खजाने पर डलता है और राजनेता सत्ता के मजे लेते हैं। आज इन मुफ्त की रेवड़ियों के चलते देश के सभी राज्य करीब 15 लाख करोड़ रूपये के कर्ज तले दबे हुए हैं। कर्ज भले किसी व्यक्ति पर हो या राज्य अथवा देश पर कर्ज अगर महज दिखावे के लिए लिया गया और अनुत्पादक कार्यों पर खर्च हो गया तब ऐसा कर्ज कर्जदार को बहुत महंगा पड़ता है। कर्ज की श्रृंखला बड़ी सीधी है। उपहार जनता लेती है, पैसे राज्य सरकार देती है, राज्य सरकार केन्द्र से या उद्योगपतियों से कर्ज लेती है, केन्द्र सरकार विदेशी संस्थानों या अन्य देशों से भी कर्ज लेती है। कर्ज किसी पर भी हो उसे आखिर में चुकाना जनता को ही पड़ता है। जिसे वह बढ़े हुए टैक्स, महंगी ब्याज दरों के द्वारा चुकाती है। इतना ही नहीं अगर जनता के पास कर देने या ब्याज चुकाने की आय नहीं है, तब स्थितियां बहुत ज्यादा खराब हो जाती हैं। तब देशों की आर्थिक बदहाली होती है ऐसे देशों को विदेशों से कोई धन या सहायता नहीं मिलती जिसका इन दिनों उदाहरण श्रीलंका बना हुआ है।
इससे पहले वेनेजुएला व कंबोडिया की हालत हम देख चुके हैं। अर्जेन्टीना भी ऐसी बदहाली से गुजर चुका है। अब वक्त आ गया है कि जनता समझदारी से काम ले। जब भी चुनाव आएं तब जनता देखे कि कौन नेता व राजनीतिक दल मुफ्त के उपहारों के ज्यादा लालच दे रहा है, ऐसे नेता व उसकी राजनीतिक पार्टी से जितनी जल्दी हो सके किनारा कर लिया जाए। नेता लोग मुफ्त की भांग खिलाकर जनता को मदहोश कर लेते हैं तब जनता को पता ही नहीं चलता कि उन पर कर्ज, महंगाई, टैक्स कितने बढ़ रहे हैं। महंगाई को काबू किया जा सकता है अगर ब्याज एवं टैक्स को काबू कर लिया जाए। ब्याज व टैक्स काबू करने के लिए धन का समझदारी से खर्च करना बेहद जरूरी है। धन वहां खर्च हो यहां से उससे अच्छी आय हो या उसकी पूरे प्रदेश या देश को सुविधा मिले।
अभी का दौर मुफ्त देने व इसका प्रचार करने का ज्यादा चल रहा है। पहले धन को मुफ्त में लुटा दो जो बचे उसे यह बताने में खर्च कर दो कि हमने इतना धन जनता पर लुटाया है। अभी हमारे देश के ज्यादातर राजनेता व राजनीतिक पार्टियां ऐसा ही कर रही हैं। भारत व इसके 130 करोड़ लोगों के लिए मुफ्त के उपहार लेना व फिर वोट देना बहुत ही महंगा पड़ने वाला सौदा है। जनता की मेहनत का कमाया पैसा, उसका दिया गया टैक्स देश के संस्थागत, विकास में खर्च होना चाहिए। देश के विकास में लगा पैसा कई गुणा होकर आखिर जनता के पास ही लौटता है जिससे देश व जन दोनों खुशहाल होते हैं। देश में एक बार फिर टीएन शेषन जैसे चुनाव आयुक्त की जरूरत है जो देश की चुनावी रीति-नीति में सुधार कर सके और देश के चुनावों को विकासोन्मुख सरकार देने के लायक बना सके।
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