प्रधानमंत्री नरिन्द्र मोदी के आह्वान पर कोरोना वायरस के खिलाफ देशवासियों ने रात 9 बजकर 9 मिनट पर अपने-अपने घरों में दीये, मोमबत्तियां जलाकर एकजुटता का संदेश दिया। प्रधानमंत्री का उद्देश्य स्पष्ट है कि वे देशवासियों को हौसला, उत्साह व उम्मीदें कायम रखने की प्रेरणा दे रहे हैं। भारतीय पुरात्तन संस्कृति के अनुसार दीये जलाने से वायरस खत्म होते हैं। पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने भी सरसों व तिलों के तेल के दीये जलाने को तंदरुस्ती का स्त्रोत बताया है।
जहां तक प्रधानमंत्री के संदेश का सवाल है जब करोड़ों लोग संकट में हों तब उन्हें हौसला देने के लिए प्रेरणादायक कार्य करना पड़ता है। आज बेशक देश में मरीजों की गिनती यूरोपीय देशों से कम है लेकिन जिस प्रकार मरीजों की गिनती बढ़ रही है वह एक चुनौती है। दूसरी तरफ व्यापार बंद होने के कारण भी लोग बुरी तरह से त्रस्त हैं। इन हालातों में लोगों को हौसला व हालातों से लड़ने के लिए आत्मविश्वास को बढ़ाना जरूरी है। देश के बड़े नेता इस कार्य को पूरा कर सकते हैं। संस्कृति की ताकत को समझना व उसका प्रयोग इस महामारी के खिलाफ लड़ने में कारगर साबित हो सकता है। जो दिल से कमजोर होते हैं, वे हार जाता है और मजबूत दिल वाले हार को जीत में बदल देते हैं।
कुछ राजनेता इस मनोवैज्ञानिक सिद्धांत को अनजान समझकर सकारात्मक विचारधारा की भी आलोचना करने से गुरेज नहीं करते। समूह देशवासियों को संयम व जिम्मेवारी से ही बोलना चाहिए। जहां तक हो सके नेक कार्यों में सहयोग करना चाहिए। ताकत व एकता के बिना कोई भी लड़ाई नहीं लड़ी जा सकती। दरअसल एकता में ही ताकत होती है। हमें उन देशों की तरफ देखना चाहिए है जहां नेता कह रहे हैं लॉकडाउन में कोई घर से बाहर निकला तो गोली मार दी जाएगी या दफना दिया जाएगा। इसीलिए हमारे देश के प्रधानमंत्री ने तो सहयोग करने की अपील की है व हौसला देने की कोशिश की है, ऐसे मामलों में राजनीति करने से गुरेज ही करना चाहिए। जहां जनता का हित हो, वहां एकजुट होने से दूसरों के उचित विचार को स्वीकार करने से पीछे नहीं हटना चाहिए। यूं भी जब कोई नेता किसी संकट के वक्त जनता के साथ संवाद या संबोधन करता है, जो जनता के प्रति लगाव व हमदर्दी को दर्शाता है।
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