शिक्षा क्षेत्र में प्रेरणा स्त्रोत अध्यापकों का हो सम्मान

Empowerment Teachers, Education

सरकारी स्कूलों की बदहाल ईमारतें, स्टाफ की कमी व बुरे वार्षिक परीक्षा परिणामों का जिक्र तो आम ही रहता है। बड़ी संख्या में स्कूलों की दुर्दशा है लेकिन आशा की किरण अभी भी बाकी है जो प्रेरणादायक भी है। ‘सच-कहूँ’ ने अपने कुछ कॉलमों के तहत सरकारी स्कूलों की नुहार बदल देने वाले अध्यापकों, स्टाफ की रिर्पोटें प्रकाशित की हैं व यह सिलसिला लगातार जारी है।

इस खबर से खुशी भी हुई और हैरानी भी कि पंजाब में मानसा में जिले का एक अध्यापक एक स्कूल का सुधार करने के बाद दूसरे स्कूल में अपना तबादला करवा लेता है, ऐसे में वह आगे से आगे सुधार करता चला जाता है। इसी तरह एक अध्यापक दिव्यांग होने के बावजूद अपनी व्हील चेयर पर स्कूल की बेहतरी के लिए भाग दौड़ करता है। कुछ स्कूलों को देख तो लगता ही नहीं कि वह सरकारी स्कूल हैं या फिर निजी स्कूल। जिम्मेवारी व जमीर बड़ी वस्तु है अगर हर विभाग में ही ऐसा माहौल बन जाए तो देश की दशा की बदल जाएगी।

इन स्कूलों के बदले हुए माहौल के साथ अभिभावकों में बच्चों के दाखिले के लिए भी भारी उत्साह है। दूसरी तरफ सरकार व अध्यापकों के बीच टकराव चल रहा है। कहीं धरना देने वाले अध्यापकों को निलंबित किया जाता है तो कहीं चेतावनियां दी जाती हैं। विरोध का अध्यापकों को अधिकार है लेकिन चैकिंग के नाम पर अध्यापकों को भड़कना भी जायज नहीं। बिहार का हाल देख ही चुके हैं जहां विद्यार्थी ही नहीं बल्कि अध्यापक भी ज्ञान से कोरे थे(चाहे यह बात सभी अध्यापकों पर लागू नहंी होती)।

फिर भी अगर शिक्षा विभाग के अधिकारी चैंकिग करें तो कोई गलत नहीं। ऐसा नहीं हो सकता कि स्कूलों में बच्चों के ज्ञान में कोई परख ही न हो। परख बिना शिक्षण की प्रक्रिया पूरी नहीं होती। सरकारी स्कूलों के ही कुछ अध्यापकों ने स्कूलों की नुहार बदली है तो टकराव जायज नहीं। लेकिन यह चीज भी गायब है कि अच्छा कार्य करने वाले अध्यापकों का जिक्र करने संबंधी विभाग चुप ही रहता है।

सरकार अच्छा कार्य करने वाले अध्यापकों का मान-सम्मान करे व इसे एक लहर भी बनाया जा सकता है। चैकिंग दहशत न बनाई जाए बल्कि यह एक प्रक्रिया का हिस्सा हो। चैकिंग मौके चार्जशीट, निलंबन का नाम ही शिक्षा सुधार नहीं। स्कूलों में प्रबंधकीय कमियों को भी तुरंत दूर करने की जरूरत है।

 

 

 

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