प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने केंद्र सरकार के सभी विभागों और मंत्रालयों में मानव संसाधन की स्थिति की समीक्षा के बाद यह जो निर्देश दिया कि अगले डेढ़ वर्ष में एक अभियान के तहत दस लाख लोगों की भर्तियां की जाएं, उसकी आवश्यकता लंबे समय से महसूस की जा रही थी। ऐसा लगता है कि कोरोना संकट के कारण रिक्त पदों को भरने में देरी हुई। जो भी हो, कम से कम अब तो यह सुनिश्चित किया ही जाना चाहिए कि केंद्र सरकार के विभिन्न विभागों में जो भी रिक्त पद हैं, उन्हें तय समय में भरा जाए।
इस ऐलान के चंद घंटों के भीतर ही रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने अग्निपथ योजना के तहत सेना में हजारों जवानों की भर्ती का प्रारूप भी पेश कर दिया। रक्षा मंत्री की यह घोषणा पीएमओ के ऐलान को विश्वसनीय आधार तो देती ही है, यह संकेत भी देती है कि आगामी दिनों में तमाम केंद्रीय मंत्री व निगमों के प्रमुख अपने यहां से जुड़ी ऐसी घोषणाएं करेंगे। बेकारी की मार झेल रहे करोड़ों नौजवानों के हित में यह एक सुखद पहल है और इसका स्वागत किया जाना चाहिए। यह एक तथ्य है कि कई राज्यों में बड़ी संख्या में पुलिस, शिक्षकों, चिकित्सकों आदि के भी पद रिक्त हैं।
वास्तव में यह नीतिगत स्तर पर तय होना चाहिए कि आवश्यक सेवाओं में रिक्त पदों को भरने का काम लंबित न रहे, क्योंकि जब ऐसा होता है तो सुशासन का उद्देश्य तो बाधित होता ही है, आम लोगों की परेशानी भी बढ़ती है। यह सही है कि प्रधानमंत्री की ओर से की गई घोषणा नौकरियां तलाश रहे युवाओं को उत्साहित करने वाली हैं, लेकिन सरकारी नौकरियों की एक सीमा है। विशेषज्ञ पहले से इस खतरे की तरफ ध्यान दिलाते रहे हैं कि सेना के अनुशासन, समर्पण और क्षमता पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। अभी सेना में सालाना औसतन 65 हजार भर्तियां होती हैं। माना जा रहा है कि इस मॉडल के अपनाए जाने के बाद औसतन भर्तियां लगभग दोगुनी करनी होंगी।
हरियाणा, राजस्थान, बिहार, झारखंड और त्रिपुरा जैसे उच्च बेरोजगारी दर वाले राज्यों की सरकारों को भी इस मामले में केंद्र से प्रेरित होने की आवश्यकता है। यह भी ध्यान में रखना जरूरी है कि नौजवानों को सिर्फ काम नहीं चाहिए, बल्कि उन्हें गुणवत्तापूर्ण नौकरी चाहिए। चूंकि हमारे यहां सामाजिक सुरक्षा के दूसरे उपायों की नितांत कमी है, ऐसे में गुणवत्तापूर्ण रोजगार की अनिवार्यता स्वत:स्पष्ट है। सेना की नई रोजगार योजना के बाद हुए प्रदर्शन संकेत हैं कि युवाओं को बेहतर रोजगार चाहिए। निजी क्षेत्र या असंगठित क्षेत्र की अनिश्चितता अपनी जगह है और हमेशा रहेगी, पर सरकारी नौकरियों के प्रति लोगों की एक धारणा है। अत: शासन-प्रशासन को जन-भावनाओं के अनुरूप रोजगार सुधार के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए।
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