पंजाब का युवा आज चौराहे पर है। उनमें व्याप्त बड़े पैमाने की बेरोजगारी, विदेशों को होता पलायन, नशे की लत का बढ़ना और आंदोलनों में शिरकत बताती है (Unemployment) कि सब कुछ ठीक नहीं है। वक्त की दरकार है कि युवाओं को विकास गतिविधियों में शामिल होने के मौके मिलें। राज्य सरकार ने एक साल में 26,797 नौकरियां प्रदान करके अच्छी शुरूआत की है, तथापि राज्य में बेरोजगारी दर 8.2 प्रतिशत है, जो कि राष्ट्रीय औसत 7.45 फीसदी से कुछ अधिक है।
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सूत्रों के अनुसार सूबे में लगभग 25 लाख बेरोजगार लोग हैं, इसलिए बड़े पैमाने पर गुणवत्तापूर्ण रोजगार सृजन करना सबसे बड़ा चुनौतीपूर्ण कार्य है। पंजाबी युवाओं की रोजगार संभावना भी कम है। आम शिक्षा प्राप्त युवाओं में दर 10 प्रतिशत है तो तकनीकी पढ़ाई कर चुके युवाओं में 25 फीसदी है। अतएव, रोजगार की संभावना में सुधार करने को तरजीह मिलनी चाहिए। कृषि, उद्योग और सेवा क्षेत्र में निकलने वाली नौकरियों से सूबे के युवाओं को ज्यादा विकल्प नहीं मिल पाते।
राज्य के विकास मॉडल का ज्यादा ध्यान कृषि पर रहा है। खेत संचालन का काम युवाओं की आकांक्षाओं के अनुरूप नहीं है। राज्य की स्थिति विडंबनापूर्ण है, प्रगति प्रवासियों के लिए नौकरियां तो स्थानीयों के लिए बेरोजगारी पैदा कर रही हैं। तेजी से हो रहे यांत्रिकीकरण के कारण भी यह विषम स्थिति बनी है, जिसे नतीजे में संभवत: प्रवासियों की नौकरियां भी छिन जाएं। कुछेक को छोड़कर, मौजूदा उद्योगों में स्थानीय युवाओं के लिए सम्माननीय नौकरियां शायद ही निकलती हों। औद्योगिक क्षेत्र में लघु उद्यमी ज्यादा है, जो पुरानी तकनीकें इस्तेमाल करते हैं, इनमें भी अधिकांश श्रमिक प्रवास हैं।
हालांकि कुल नौकरियों का 40 फीसदी हिस्सा सेवा क्षेत्र से मिलता है। लेकिन, तकनीकी ज्ञान का आधुनिकीकरण नहीं हो पाने से युवाओं को नौकरी की गुणवत्ता से समझौता करना पड़ रहा है। (Unemployment) राज्य सरकार को बेरोजगारी कम करने के दृष्टिगत, तीन-आयामी नीति अपनाने की सलाह है। प्रथम, पिछला संकट दूर किया जाए, दूसरा, युवाओं को भविष्य की नौकरियों के लिए तैयार करें और तीसरी, अर्थव्यवस्था में ढांचागत बदलाव करना।
सूबे के विश्वविद्यालयों को इस क्षेत्र से हाथ मिलाकर युवाओं को भविष्य की नौकरियों के लिए तैयार करना चाहिए। विश्वविद्यालय को अपनी क्षमता के अनुसार, सर्वव्यापी तकनीक चालित कोर्स, अनुसंधान एवं नूतन-खोजों की शिनाख्त करनी चाहिए। उन्हें अपने मौजूदा पाठ्यक्रम में ढांचागत बदलाव लाकर नए रोजगार से तालमेल करना बनाना होगा। इसके लिए उद्योग और समाज के साथ संस्थानों की साझेदारी को अनिवार्य किया जाए।
राज्य सरकार के लिए एक अन्य चुनौती है, श्रमिकों में नई तकनीकी बदलावों के बरअक्स पुराने जमाने का कौशल बने रहना। विश्व आर्थिक मंच ने ह्यपुनर्कौशल क्रांति की ओरह्ण नामक अपनी रिपोर्ट में कहा है कि जो श्रमिक तकनीकी रूप से पिछड़ गए हैं, उनके लिए व्यवहार्य रोजगार कौशल रूपांतर के नये तरीकों की शिनाख्त की जाए। सूबा सरकार को विश्वव्यापी अनुभव से सीखकर, नियोक्ताओं को (Unemployment) प्रोत्साहन देना और शिक्षण संस्थानों को श्रमिकों के लिए पुनर्कौशल कार्यक्रम शुरू करने को कहना होगा।
खेती क्षेत्र में भी, ह्यडिजिटल कृषि 4.0ह्ण को बढ़ावा देकर गुणवत्तापूर्ण रोजगार सृजित किए जा सकते हैं, जिसके अंतर्गत समूची कृषि-खाद्य मूल्य संवर्धन शृंखला में विकास नई तकनीकें जैसे कि रिमोट सेंसिंग, एआई, मोबाइल फोन, ई-एक्सटेंशन सर्विस, पोजिशनिंग टेक्नोलॉजी, ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म और बिग डाटा का उपयोग करके हो सकता है।
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