नरेंद्र देवांगन। विद्युत चालित उपकरणों, विशेषकर इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों ने दुनिया का स्वरूप बदल दिया है। इनके कारण लोगों की जीवन शैली और कल-कारखानों की कार्यशैली बदलने के साथ ही बढ़ी है दुनिया की जगमगाहट पर इस जगमगाहट के पीछे एक अंधकार भी है जो अत्यंत खतरनाक है। एक अवधि तक उपयोग के पश्चात ये उपकरण खराब या अनुपयोगी (Electronic Waste) हो जाते हैं। उसके बाद इन्हें कचरे के साथ फैंक दिया जाता है। अनेक देशों में व्यवस्था के कारण या मजबूरी के कारण कुछ हद तक इन्हें अलग किया जाता है या रीसाइकिल करके उससे नए उत्पाद तैयार किए जाते हैं। बचा कचरा अन्य जैविक कूड़े के साथ पड़ा रहता है। इनमें मौजूद भारी धातुएं व जहरीले रसायन रिस-रिस कर बाहर आते हैं और भूमि व जल के साथ वायु को भी प्रदूषित करते हैं।
खतरनाक इलेक्ट्रॉनिक कचरा || Electronic Waste
विभिन्न प्रकार के विद्युत व इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में प्रयुक्त होने वाला पारा यानी मरकरी सबसे खतरनाक तत्व है। मिसाल के तौर पर, लैपटॉप, कंप्यूटर, टेलीफोन, डीवीडी प्लेयर, फैक्स मशीन, फोटो कॉपियर और एलसीडी युक्त उपकरणों में पारे का उपयोग किया जाता है। वैसे तो इनमें मात्र 2 से 10 मिलीग्राम तक ही पारे का उपयोग होता है पर यदि इसे जोड़ा जाए तो विश्व में पारे की कुल खपत का 30 प्रतिशत इन उपकरणों में प्रयुक्त होता है। प्राकृतिक रूप से पाया जाने वाला पारा व उसके यौगिक जहां विभिन्न रसायनिक उद्योगों में उत्प्रेरक व अन्य रूपों में प्रयुक्त होते हैं वहीं विद्युत व इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में भी प्रयोग किए जाते हैं।
फ्लोरोसेंट लैंप:-
पिछले कुछ समय से फ्लोरोसेंट लैंप का उपयोग बेहताशा बढ़ रहा है क्योंकि इनसे मिलने वाली रोशनी खूबसूरत लगती है, साथ ही बिजली और पैसे की बचत भी होती है पर इस रोशनी के पीछे छिपे अंधेरे को हम नहीं देख पाते हैं यानी किसी कारणवश फ्लोरोसेंट लैंप टूटता है या खराब होने के बाद इसे फैंक दिया जाता है तो उसके अंदर स्थित पारे की कुल मात्रा का 6 से 8 प्रतिशत तत्काल वायु में मिल जाता है।
पारे के यौगिक:-
पारा वायु के अन्य अवयवों के साथ मिलकर पारे के यौगिक बनाता है जो वातावरण के लिए बहुत खतरनाक होते हैं। इस तरह भूमि पर फैलने वाला पारा वायु में भी मिल जाता है और भिन्न-भिन्न माध्यमों से होता हुआ जल स्रोतों में भी मिल जाता है। जल में रहने वाले जीव पारे को ग्रहण कर विषैले हो जाते हैं।
हानिकारक है पारा:-
पारा सामान्य तापमान और दाब पर तरल रूप में रहता है लेकिन 0.3 वायुमंडल दाब व 25 डिग्री सेल्सियस तापमान पर ही भाप में परिवर्तित हो जाता है। यह वाष्पशील होता है। यह गैस रूप में रंगहीन व गंधहीन होता है, जिससे इसका पता कठिनाई से चल पाता है। यदि पारे की भाप सांस के जरिए शरीर में प्रवेश करती है तो भाप का 80 प्रतिशत शरीर की ऊपरी परत को पार कर जाता है और यह रक्त में मिल जाता है। यह मस्तिष्क को भी प्रभावित करता है। पारे की भाप बच्चों के मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र के लिए भी हानिकारक होता है।
बचने के उपाय || Electronic Waste
- पारे युक्त पदार्थों का उपयोग करते समय कर्मियों को बचाव जैसे मास्क, दस्तानों, गॉगल्स, सुरक्षात्मक कपड़े (एप्रन) आदि का प्रयोग करना चाहिए।
- वायु प्रवाह तंत्र को सुरक्षित तथा प्रभावी बनाना चाहिए। पारेयुक्त वायु को सीधे बाहर छोड़ने के स्थान पर फिल्टर के माध्यम से छोड़ा जाना चाहिए।
- अवैध रूप से चल रहे पारायुक्त उपकरणों की मरम्मत और रिसाइक्लिंग उद्योग को वैधानिक दायरे में लाना चाहिए तथा शिक्षा और नियमों के माध्यम से उन्हें इस बात के लिए बाध्य किया जाना चाहिए कि वे सुरक्षित तरीकों को ही अपनाएं।