विश्व की महाशक्ति सबसे मजबूत देश अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव संबंधी प्रचार जोरों पर है। डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन पार्टियां आमने-सामने हैं। वर्तमान राष्ट्रपति डोनाल्ड निरंतर दूसरी बार चुनाव जीतने के लिए जोर अजमाईश कर रहे हैं, दूसरी तरफ डेमोके्रट के जो बाईडेन ट्रम्प को पछाड़ते हुए नजर आ रहे हैं। चुनाव की सबसे बड़ी बात यह है कि यह पहली बार हो रहा है कि चुनाव में भारत-चीन के बीच तनाव चुनाव का मुद्दा बना हुआ है। समाचारों की शब्दावली इस प्रकार का माहौल बना रही है जैसे यह चुनाव भारत में संपन्न हो रहे हों। ट्रम्प अपनी पार्टी के साथ-साथ निजी तौर पर भी भारत के साथ अपनी नजदीकियां होने का भी एहसास करवाने का प्रयास कर रहे हैं। डेमोक्रेट पार्टी की कमला हेरिस भी भारत के साथ अपने सुदृढ़ संबंध होने की बात कह रही हैं।
दरअसल दोनों पार्टियां प्रवासी भारतीयों के वोट पर नजर टिकाए बैठीं हैं और दोनों तरफ से भारत-चीन विवाद में भारत का समर्थन किया जा रहा है। जहां डोनाल्ड ट्रम्प कोविड-19 और ट्रेड वार में चीन के साथ अपनी दुश्मनी निकाल रहे हैं वहीं भारत के साथ विवाद में चीन को निशाने पर लिया जा रहा है। उधर, डेमोक्रेटिक नरम सुर में चीन का विरोध कर अप्रत्यक्ष रूप से भारत का समर्थन कर रहे हैं। भारतीय वोटरों का लाभ किस पार्टी को मिलेगा यह तो चुनाव के परिणाम ही बताएंगे लेकिन सत्ता प्राप्त करने के लिए दोनों पार्टियां हर तरीके को अपना रही हैं। नि:संदेह इस वक्त भारत के पक्ष की महत्वता बढ़ी है, फिर भी इस मामले में भारत को सावधान रहना होगा। भारत को कूटनीतिक लड़ाई मजबूती से लड़नी होगी। इस मामले में अंतरराष्ट्रीय समुदाय का समर्थन लाभदायक होता है लेकिन इस लड़ाई को विश्व के दो गुटों की लड़ाई बनने से भी रोकना होगा। यूं भी भारत-चीन के साथ अपने विवादों को द्विपक्षीय विवाद के रूप में निपट रहा है फिर भी अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के कारण इसकी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा छिड़ गई है और इससे चीन का पक्ष कमजोर होने की संभावना है। अपने दायरे में रहकर भारत को अपना पक्ष और मजबूत करना चाहिए। चीन को गलवान घाटी के मामले में दोहरी नीति अपनाने की बजाय स्पष्टता और ईमानदारी से मामला सुलझाना चाहिए। यदि ईमानदारी से चला जाए तब टेबल-टॉक बेहतर परिणाम ला सकती है।
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