Election Manifesto
लोकसभा चुनाव के प्रचार के साथ ही चुनावी घोषणा-पत्र (Election Manifesto) जारी होने का सिलसिला भी शुरू हो गया है। वास्तव में घोषणा-पत्र देरी से जारी किए जा रहे हैं, फिर भी पार्टी की राजनीति, आर्थिक, सामाजिक व सांस्कृतिक मामलों के प्रति समझ व कार्यक्रम इन पत्रों से ही सामने आते हैं। अच्छा होगा यदि घोषणा-पत्र चुनाव की घोषणा से कुछ महीने पूर्व जारी हों। वास्तव में, देरी करना एक रणनीति है। पार्टियां अपना चुनाव घोषणा-पत्र एक दूसरे के बाद जारी करने के प्रयास में रहती हैं ताकि दूसरी पार्टी के दावों का तोड़ निकाला जा सके या उससे ज्यादा वायदे किए जा सकें।
चुनावी घोषणा-पत्र की एक बड़ी कमजोरी यह है कि पार्टियां बड़े-बड़े वायदे करती हैं, विशेष तौर पर लुभावने वायदे, जिन्हें वास्तविक्ता में बदलना बेहद मुश्किल होता है। पार्टियां सरकार में आने के बाद चुनावी घोषणा पत्र में किए अधिकतर वायदे ही भूल जाती है। कई वायदे ऐसे भी हैं जिन्हें पूरा करना मतलब अर्थव्यवस्था को बर्बाद करना है। ऐसे लुभावने वायदों के कारण ही कई राज्य कंगाल हो गए हैं, इसलिए चर्चा होती रही है कि चुनावी घोषणा-पत्र पर कानून बनना चाहिए, ताकि इसे तर्कसंगत बनाया जा सके। इसलिए पार्टियों के पदाधिकारियों की यह नैतिक जिम्मेदारी है कि वे जीतने की चाहत में आर्थिक नियमों की अनदेखी न करें।