मतदाता सोच रहा है कि मेरे मत से ही होगा निर्णय /Election Enthusiast
जैसे-जैसे 2019 में होने वाले आम चुनाव नजदीक आते जा रहे हैं वैसे-वैसे राजनीतिक सरगर्मियां तेज होती जा रही है। (Election Enthusiast) संभवत: आजादी के बाद यह पहला आम चुनाव होगा, जिसके लिये इतनी अग्रिम चुनावी सरगर्मियां देखने को मिल रही है। न केवल भाजपा बल्कि सभी राजनीतिक दलों में आम चुनाव का माहौल गरमा रहा है। अपने-अपने प्रान्तों में लोग वर्तमान नेतृत्व का विकल्प खोज रहे हंै जो सुशासन दे सके। सभी पार्टियां सरकार बनाने का दावा पेश कर रही हैं और अपने को ही विकल्प बता रही हैं तथा मतदाता सोच रहा है कि देश हो या राज्य-नेतृत्व का निर्णय मेरे मत से ही होगा।
साल 2019 के आम चुनाव में अमित शाह और नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली ताकतवर बीजेपी का सामना करने के लिए कांग्रेस समेत विपक्ष के कई दलों ने एक साथ आने के लिए तैयारियां शुरू कर दी हैं। देश के तमाम विपक्षी दल इस समय ‘फासीवाद’ से लेकर सांप्रदायिकता से लड़ने की बात कह रहे हैं। इस मुद्दे पर सभी दलों में आपसी सहमति दिखाई भी दे रही है। लेकिन क्या इस सहमति के साथ विपक्ष पूरी ताकत के साथ बीजेपी का सामना करने में सक्षम होगा?
नोटबंदी से लेकर जीएसटी पर सरकार की फजीहत /Election Enthusiast
बीजेपी के खिलाफ जिस विपक्ष को बनाने की कोशिशें हो रही हैं उसकी सबसे बड़ी कमजोरी है एक ऐसे नेता की कमी जिसे पूरा विपक्ष अपना नेता मानने के लिए तैयार हो और जिसे देश भी स्वीकार करे। एक बड़ी कमजोरी यह भी है कि विपक्ष के पास कोई कार्यक्रम नहीं है जिसे वह देश के सामने पेश कर सके। नोटबंदी से लेकर जीएसटी पर सरकार की फजीहत होने के बाद भी विपक्ष देश के सामने कोई सार्थक भूमिका पेश नहीं कर सका। सीएसडीएस की सर्वे में एक्जिट पोल के आधार पर राष्ट्रीय राजनीति में व्यापक बदलाव होने के संकेत मिलते हैं। अखिलेश यादव द्वारा बीबीसी को दिया गया इंटरव्यू यह दर्शाता कि 2019 के लोकसभा चुनाव की रणनीति अभी से तैयार हो रही है। तैयारी अच्छी बात है लेकिन किस चीज की? जीतना बड़ी बात नहीं है, लेकिन उद्देश्यों के साथ जीतना बड़ी बात है।
गैर एनडीए मोदी के बढ़ते हुए ग्राफ को लेकर चिंतित /Election Enthusiast
दरअसल समाजवादी पार्टी, कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी जैसे गैर एनडीए राजनीतिक दल नरेन्द्र मोदी के बढ़ते हुए ग्राफ को लेकर चिंतित हैं और साल 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए चक्रव्यूह तैयार करना चाहते हैं। राष्ट्रीय स्तर पर मोदी के खिलाफ लामबंद होना आसान काम नहीं है। मायावती, अखिलेश यादव, नीतीश कुमार, ममता बनर्जी और कांग्रेस के बीच विरोधाभास बहुत ज्यादा है। व्यक्तित्व में असमानता, अपने आप पर शक्तिशाली होने का अहंकार, कार्यकतार्ओं को इकठ्ठा न कर पाना और जातीय समीकरण कुछ ऐसे बिंदु हैं जहां मोदी विरोधी लाख कोशिश करने के बाबजूद भी लामबंद नहीं हो पार रहे हैं।सम्पूर्ण राष्ट्र के राजनीतिक परिवेश एवं विभिन्न राजनीतिक दलों की वर्तमान स्थितियों को देखते हुए बड़ा दुखद अहसास होता है कि किसी भी राजनीतिक दल में कोई अर्जुन नजर नहीं आ रहा जो मछली की आंख पर निशाना लगा सके।
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