मद्रास उच्च न्यायालय के एक न्यायधीश ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि विधायी निकायों में जन प्रतिनिधियों के लिए योग्यताएं निर्धारित करने की आवश्यकता है। उच्च न्यायालय की इस महतवपूर्ण सिफारिश की ओर लोगों का ध्यान उतना नहीं गया जितना जाना चाहिए क्योंकि इस विषय को उतना महत्व नहीं दिया जाता है जितना दिया जाना चाहिए। यह निर्णय प्रत्याशी की स्वास्थ्य दशा के बारे में प्रमाणिक सूचना देने के बारे में दिया गया था। याचिका में राज्य निर्वाचन आयोग को यह निर्देश देने का अनुरोध किया गया था कि वह तमिलनाडू में स्थानीय निकायों के चुनाव लड रहे प्रत्याशियों को चिकित्सा प्रमाण पत्र सहित स्वास्थ्य का ब्यौरा देने पर बल दें।
इस याचिका पर निर्णय को लोक सभा और विधान सभा चुनावों में भी लागू किया जा सकता है। न्यायलाय ने केन्द्र सरकार निर्वाचन आयोग, विधि आयोग, राज्य सरकार और राज्य विधि आयोग को इस मामले में पक्षकार बनाया और इस पर उनका उत्तर मांगा। प्रत्याशियों की स्वास्थ्य दशा के बारे में घोषणा उतनी ही महत्वपूर्ण घोषणा है जितनी की उनकी संपत्ति और अपाराधिक पृृष्ठभूमि के बारे में घोषणा है।इस याचिका को दायर करने की प्रेरणा तमिलनाडू की पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता की मत्यु से मिली जिनकी मृत्यु पद धारण करने के सात माह के भीतर हो गयी थी। न्यायधीश की राय थी कि यदि उनके नामांकन पत्र में उनकी स्वास्थ्य की दशा के बारे में घोषणा की जाती तो उनकी मृत्यु और उपचार के बारे में जांच के लिए आयोग के गठन की आवश्यकता नहीं पड़ती।
न्यायधीश का मत था कि अनेक बार मतदाता नेतृत्व के लिए मतदान करते हैं इसलिए मतदाताओं को यह जानने का हक है कि क्या वह व्यक्ति पांच वर्ष तक के लिए नेतृत्व करने के योग्य है। राजनीतिक पदों पर कार्य का दबाव अत्यधिक होता है और इन पदों पर नियुक्तियां निर्वाचित व्यक्तियों को दबाव और तनाव सहने के लिए असाधारण क्षमता की आवश्यकता होती है। इस बारे में निर्वाचन आयोग का कहना था कि यह व्यक्ति की निजता से जुड़ा मामला है इसलिए यह एक बहुत संवेदनशील विषय है। निर्वाचन आयोग के अनुसार उसे संविधान के अनुचछेद 324 के अंतर्गत चुनाव के अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण की शक्तियां प्राप्त हैं और वह चिकित्सा प्रमाण पत्र की अपेक्षा पर बल नहीं दे सकता है।
चुनाव लड़ रहे प्रत्याशियों की स्वास्थ्य दशा का मुददा पहली बार उठाया गया है। किसी भी देश में इस आधार पर किसी उम्मीदवार के नामांकन पत्रों को रद्द नहीं किया गया है। स्वास्थ्य के बारे में घोषणा एक निजी मामला है किंतु जब सत्ता से जुड़े सार्वजनिक व्यक्तियों के मामले में स्वास्थ्य घोषणा की बात आती है तो यह सार्वजनिक विषय बन जाता है और उसे सार्वजनिक विनिमयों के अंतर्गत आना चाहिए। इसलिए कहा जा सकता है कि लोक हित में मतदाताओं को प्रत्याशियों की चिकित्सा दशा के बारे में जानने का अधिकार है।
अब तक विधायी निकायों के सदस्यों की योग्यता के बारे में चिकित्सा प्रमाण के बारे में चर्चा नहीं हुई है। यह राजनीतिक दलों के अधिकार क्षेत्र में है कि वह शारीरिक रूप से सक्षम व्यक्तियों को टिकट दे। अनेक देशों में मानसिक और मनोचिकित्सा विकृतियों वाले लोगों को चुनाव लडने का अधिकार नहीं है। ब्रिटेन में संसद सदस्यों को मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम 1983 के अंतर्गत ऐसे सदस्यों को दो विशेषज्ञों की रिपोर्ट के बाद छह माह के भीतर अपना पद खाली करना पड़ता है। इस मामले में न्यायाधीश ने कानून निमार्ताओं की योग्यता और अयोग्यता के बारे में एक बड़े प्रश्न को उठा दिया है।
उन्होने कुछ सदस्यों की अंग्रेजी दक्षता पर भी प्रश्न उठाया है कि इसके कारण वे संसद में जनता के मुद्दे नहीं उठा पाते हैं और निर्वाचन आयोग से कहा है कि जन प्रतिनिधियों के लिए योग्यता के संबंध में व्यापक दिशा निर्देश बनाए। किंतु हमारे जैसे बहुभाषी राष्ट्र में भाषा का मुद्दा उठाना खतरनाक है। ज्ञान और क्षमता की बातें की जा सकती हैं ताकि सदस्य राजनीतिक आर्थिक और सामाजिक मामलों में अपने विचार व्यक्त कर सकें और कानून निर्माण में योगदान दे सकें। निर्वाचित प्रतिनिधियों के लिए शैक्षिक योग्यता निर्धारित करने का मुद्दा कुछ राज्यों में उठा है। राजस्थान और हरियणा में पंचायत चुनाव लड़ने के लिए न्यूनतम योग्यता 10वीं पास तथा महिलाओं और अनुसूचित जातियों के मामले में 8वीं पास निर्धारित की गई है। भूटान, लीबिया, केनिया, नाइजीरिया आदि कुछ विकासशील देशों में ऐसे प्रावधान पहले से हैं।
हरियाणा में पंचायत चुनाव लड़ने के लिए प्रत्याशी के घर में शौचालय का होना आवश्यक है। लोकतंत्र में राजनीतिक पद सबके लिए खुले हुए हैं, किंतु उसमें किसी तरह की योग्यता मानदंड निर्धारित नहीं किए गए हैं। योग्यताएं निर्धारित की गयी हैं, अयोग्यता सूचीबद्ध की गयी है और आवश्यक घोषणाओं का प्रावधान किया गया है। विश्व भर के लोकतंत्रिक देशों में चुनाव लड़ने के लिए आपराधिक पृष्ठभूमि को अयोग्यता बनाया गया है।
कुछ देशों में भ्रष्टाचार को भी चुनाव लड़ने के लिए अयोग्यता बनाया गया है। अमरीका और स्वीडन में केवल आयु निर्धारित की गयी है और अयोग्यता के मानदंड नहीं बनाए गए हैं। फिनलैंड में भी यही स्थिति है किंतु इस बारे में वहां की संसद निर्णय कर सकती है। आस्टेÑलिया, कनाडा, डेनमार्क, फ्रांस, जर्मनी, आयरलैंड, न्यूजीलैंड स्पेन और ब्रिटेन में आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोगों को चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य माना जाता है तथा कनाडा फ्रांस और ब्रिटेन में भ्रष्टाचार को भी अयोग्यता की सूची में शामिल किया गया है। अयोग्यता की अवधि कानून द्वारा प्रत्येक मामले के आधार पर निर्धारित की जाती है। कनाडा में भ्रष्टाचार के मामले में दोषसिद्ध होने पर सात साल तक चुनाव नहीं लड़ पाते हैं। स्पेन तथा आयरलैंड में दंड की अवधि तक चुनाव नहीं लड़ सकते हैं। ब्राजील में निर्वाचित प्रतिनिधि की योग्यता और अयोग्यता को गंभीरता से लिया गया है। राज्यों और नगर निकायों को सार्वजनिक पदों पर नियुक्ति तथा न्यासों में नियुक्ति के लिए अपने कानून बनाने की अनुमति दी गई है।
डॉॅ. एस सरस्वती
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