‘स्टेट्समैन’ राजनीतिज्ञ हमेशा अगली पीढ़ी के बारे में सोचता है
एक बहुत अच्छी कहावत है कि नेता हमेशा अगला चुनाव के बारे में सोचता है मगर एक ‘स्टेट्समैन’ राजनीतिज्ञ हमेशा अगली पीढ़ी के बारे में सोचता है। दरअसल यह कहावत आने वाले वक्त में देश की जरूरत बनने वाली है क्योंकि नए साल का इंतजार तो सब को होता है मगर चुनावी साल के इंतजार विपक्षी पार्टियाँ पिछले 5 सालों से करती आ रही होती हैं। देश की राजनीति धीरे-धीरे खुद को आम चुनाव के लिए तैयार करने में जुट गई है। जहाँ सभी राजनीतिक पार्टियाँ अपने खेमे को मजबूत बनाने में कोई कसर छोड़ना नहीं चाहती है।
यूपीए गठबंधन के अलावा तीसरा महागठबंधन भी खुद को जनता का प्रतिनिधि बनने को तैयार
दरअसल चुनाव हमेशा विकल्प का खेल होता है जिसमें जिस राजनीतिक पार्टी का ज्यादा बेहतर विकल्प जनता को बेहतर लगती है जनता भी उसी को चुनाव मेंं चुनने का काम करती है। मगर कभी-कभी ज्यादा विकल्प का खामियाजा भी जनता के लिए मुसीबत का सबब बन जाता है जैसा कि मौजूदा वक्त के अंदर देश की राजनीति में दिखाई दे रहा है। जहँ एनडीए और यूपीए गठबंधन के अलावा तीसरा महागठबंधन भी खुद को जनता का प्रतिनिधि बनने को तैयार करता नजर आ रहा है। इस तीसरे खेमे का प्रतिनिधित्व करने का काम दूसरी बार तेलंगाना से जीतने वाले मुख्यमंत्री ‘केसीआर’ कर रहे हैं। जिनका मानना है कि तीसरा दल देशवासियों को मोदी-राहुल सरकार से बेहतर विकल्प देने का काम करेगी’।
जिसका खामियाजा मोदी सरकार को आने वाले आम चुनाव में उठाना पड़ सकता है। लोकतंत्र में ज्यादा विकल्प भले ही अच्छे संकेत हैं मगर मौजूदा समय में यह विकल्प देश और देशवासियों की चिंंताओं को प्राथमिकता ना देते हुए ‘मोदी हटाओ या देश बचाओ और 70 साल देश बेहाल’ जैसे नारों पर ज्यादा केंद्रित है। जहाँ ना तो जनता की समस्या के कोई मायने हैं और ना ही कोई देश के विकास का कोई रोडमैप किसी राजनीतिक पार्टी के पास नजर आ रहा है।मौजूदा राजनीति में तीसरा मोर्चा कितना सफल हो पाएगा वह तो आने वाले वक्त ही बताएगा। मगर सबसे ज्यादा जरूरी है कि विपक्ष अपने एजेंडे को देश के सामने रखे जिससे देश की जनता को लगे कि विपक्षी दल सिर्फ मौजूदा सरकार को हटाने के लिए नहीं बल्कि देश के भविष्य को लेकर भी सोच रही है।
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