बुजुर्ग शिक्षिका को 28 साल से ‘हक’ का इंतजार

Elderly Teacher

सरकारी उदासीनता का शिकार न सिर्फ आमजन बल्कि उसके कर्मचारी भी इससे अछूते नहीं (Elderly Teacher)

  •  शिक्षा विभाग में सेवाओं के बाद सेवानिवृत्त हो चुकी हैं शकुंतला कुमारी
  •  हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में केस हारी सरकार, फिर भी नहीं मान रही

सच कहूँ/संजय मेहरा गुरुग्राम। उसने पूरी शिद्दत के साथ अपने सेवाकाल में बच्चों को स्कूल में पढ़ाया। अपनी ड्यूटी को अपना फर्ज समझकर पूरा किया, लेकिन सरकार ने उनके इन सब कार्यों पर पानी फेर दिया। अपना सेवाकाल पूरा करके सेवानिवृत्त हुई शिक्षिका शकुंतला कुमारी को सरकार ने उसके भत्ते आज 28 साल बाद भी नहीं दिए हैं। यह हाल तो तब है जब सरकार हाई कोर्ट व सुप्रीम कोर्ट तक में केस हार चुकी है। जीवन के अंतिम पड़ाव में शकुंतला कुमारी का कहना है कि अदालत ने उन्हें न्याय मिला, लेकिन सरकार न्याय नहीं दे रही।

जेबीटी टीचर के रूप में हुई थी नियुक्ति

70 वर्षीय सेवानिवृत्त एसएस मिस्टेÑस शकुंतला देवी के मुताबिक वर्ष 1972 में उनकी नियुक्ति जेबीटी टीचर के रूप में हरियाणा शिक्षा विभाग में हुई थी। अपना 58 साल का सेवाकाल पूरा करके वे 30 अप्रैल 2008 को सेवानिवृत्त हो गई। हरियाणा सरकार के सर्विस रूल के मुताबिक ही उन्हें वर्ष 1992 में एडिशनल इंक्रीमेंट मिली थी। सेवानिवृत्ति के समय सरकार ने उनकी इस इंक्रीमेंट को वापस ले लिया और उनकी सेवानिवृत्ति पर मिलने वाले बेनिफिट्स से पैसा रिकवर कर लिया। अपना हक पाने को शकुंतला कुमारी ने पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में याचिका दायर की। जिस पर कोर्ट ने 25 जुलाई 2008 को उनके पक्ष में निर्णय दिया।

शीर्ष न्यायालय के आदेश की भी अवमानना

इस निर्णय पर एसएस मिस्ट्रेस शकुंतला कुमारी को लगा कि अब उन्हें न्याय मिल गया है। लेकिन सरकार ने इस निर्णय की परवाह नहीं की और उन्हें उनका हक देने में दिलचस्पी नहीं दिखाई। 2008 के निर्णय के बाद सरकार ने 6 साल बाद वर्ष 2014 में सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले के खिलाफ याचिका दायर की। पीड़ित शकुंतला कुमारी व उनके पति सतीश कुमार के मुताबिक याचिका दायर करने के चार साल बाद वर्ष 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने भी निचली अदालत यानी हाई कोर्ट के 2008 में उनके हक में आए निर्णय को ही सही ठहराते हुए मौलिक शिक्षा निदेशक हरियाणा को आदेश दिए कि उनका हक उन्हें बिना देरी के दिया जाए।

  • इसके बाद भी विभाग ने निष्क्रियता ही दिखाई। कई बार वे अधिकारियों से मिलने चंडीगढ़ भी गए।
  • कोरोना का बहाना बनाकर अधिकारियों ने उनसे मिलने तक मना कर दिया।
  • उनका हक न देकर सीधे तौर पर सरकार के अधिकारियों ने अदालत की अवमानना की है।

अब सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के दो साल बाद 2 मार्च 2020 को विभाग की ओर से जिला मौलिक शिक्षा अधिकारी गुरुग्राम को उनका केस भेजा। उन्होंने कई बार पत्राचार विभाग से किया है, लेकिन उनका हक उन्हें अब तक नहीं मिला है। सतीश कुमार की एक बार फिर से मांग है कि उनकी पत्नी का हक उन्हें दिया जाए। वे दोनों बुजुर्ग हो चुके हैं। जीवन के अंतिम पड़ाव पर हैं।

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