देश के वैज्ञानिकों को यह श्रेय जाता है कि उन्होंने प्रदूषण के बुरे प्रभावों को रोकने के लिए पैट्रोलियम की खपत घटाने के लिए रतनजोत के र्इंधन का प्रयोग करना शुरु कर दिया है। बीते दिनों जैट जहाज जैविक र्इंधन के साथ ही देहरादून से दिल्ली तक उड़ाया गया। जिस तरह कहा जाता है कि जरूरत ही रिसर्च की मां होती है, उसी अनुसार रजनजोत से तैयार किया गया तेल आसमान के ऊपर के हिस्से में हवाई जहाजों द्वारा फैलाए जा रहे प्रदूषण को कम करेगा। भारतीय वैज्ञानिकों की यह भी बड़ी उपलब्धि है कि जहाज में 10 फीसदी जैविक र्इंधन मिलाने का लक्ष्य तय किया गया था लेकिन यहीं 25 फीसदी तक मिलाया जा रहा है। जैविक र्इंधन खतरनाक तत्व सल्फरडाई-आॅक्साईड से बिल्कुल रहित है। दरअसल वायु प्रदूषण पूरी दुनिया की एक बड़ी समस्या बन चुका है, जिसे रोकने के लिए विकसित देश भी कई चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। चीन में प्रदूषण इस हद तक फैल गया है कि वहां खासकर पेपर उद्योग पर पाबंदी लगाई गई है। ईंधन व विकास एक सिक्के के दो पहलू बन गए हैं। हमारे देश में महानगर रहने के ही काबिल नहीं रहे। दिल्ली तो रहने के काबिल ऊपर के 50 शहरों में भी नहीं आता। र्इंधन का कोई विकल्प नजर नहीं आ रहा। रतनजोत से तैयार ईंधन ने इस निराशा को दूर किया है। हाल-फिलहाल यह र्इंधन महंगा जरूर है लेकिन प्रदूषण की रोकथाम के लिए विकल्प ढूृंढ़ना बड़ी उपलब्धि है। जिंदगी व वातावरण से बढ़कर कुछ भी नहीं। अगर इस दिशा में तकनीक पर जोर दिया जाए तब जैविक र्इंधन सस्ता भी तैयार किया जा सकता है। जैविक र्इंधन के प्रयोग से जहां प्रदूषण कम होगा वहीं कृषि को बढ़ावा मिलेगा। हाल ही में छत्तीसगढ़ में रतनजोत की कृषि बड़े स्तर पर हो रही है। सरकार की जैविक र्इंधन की मांग बढ़ने के साथ ही रतनजोत की कृषि भी प्रफु ल्लित होगी। अगर जैविक र्इंधन के प्लांट स्थापित किए जाएं तब यह वातावरण के क्षेत्र में एक क्रान्ति साबित होगा। केन्द्र सरकार जैविक र्इंधन के प्रयोग व उत्पादन को एक मुहिम बना दे तो वातावरण में बड़ा परिवर्तन आ सकता है। इस दिशा में देरी नहीं होनी चाहिए।
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