संगत का असर

Educational Story

एक बार एक बौद्ध भिक्षु भिक्षा लेने एक नगर में गया हुआ था। और सारे नगर के लोग उसकी सेवा करना चाहते थे क्योंकि उस समय बौद्ध भिक्षुओं का बहुत सम्मान था। इसलिये जिसे भी पता चला दौड़ा-दौड़ा उस भिक्षु के पास पहुँचा। उन्हीं में से एक वेश्या भी थी जिसने उस भिक्षु के बारे में सुना तो उसे देखने चली गई। और जैसे ही उसने उस भिक्षु को देखा वह देखती ही रह गई। उसने उस भिक्षु के पैर पकड़ लिये और कहा कि मैं एक वेश्या हूँ और कोई भला आदमी मेरे द्वार तक नहीं आता। इसलिये मैं ये चाहती हूँ कि आप मेरे अतिथि बनकर मेरे साथ चलें ताकि कुछ दिन मैं भी आपकी सेवा कर लूँ। असल में वो वेश्या उस भिक्षु पर आसक्त थी। उसने आगे कहा कि हे महात्मा मैं भी कुछ धर्म कमाना चाहती हूँ। और ये भी हो सकता है कि मेरे भी मन में कुछ ऐसा भाव आ जाए कि मेरा भी उद्धार हो जाए।

सभी नगरवासी उस वेश्या की बात सुन रहे थे। और इससे पहले कि भिक्षु कुछ कह पाता वे बोल पड़ें कि तुम क्या कह रही हो? एक बौद्ध भिक्षु तुम्हारे कोठे पर कैसे जा सकता है? इससे तो भिक्षु को पाप लगेगा। नगरवासियों कि बात सुन वेश्या ने कहा कि मैं इन्हें अपने पाप को मिटाने के लिये ही अपने साथ चलने को कह रही हूँ। उनकी बातें सुनकर भिक्षु ने कहा कि मैं अपने गुरू बुद्ध से इसकी अनुमति लूँगा। यदि वे कहेंगे तो मैं आपके साथ चलूँगा। ये सुन वेश्या ने कहा कि मैं इंतजार करूँगी।

इतना सुनकर नगर के सेठ ने कहा कि हे महात्मा ये पापी है। आप मेरे साथ चलिये। इसका कोठा आपके जाने लायक नहीं है। इतना सुनते ही वो वेश्या बोल पड़ी कि तब तो इस नगर वाले सारे अमीर पापी हैं वे सभी मेरे पास आ चुके हैं। और सेठ जी आप भी तो मेरे पास आते हैं। तो तुम पाप से कैसे मुक्त हो। तुम भी पापी हो। यदि ये महात्मा मेरा उद्धार करना चाहते हैं तो तुम्हें कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिये।

नगर का सेठ चुप हो गया और बौद्ध भिक्षु गुरू बुद्ध के पास अनुमति लेने लौट गया। गुरू के पास पहुँच कर उसने अपने साथ हुई घटना के बारे में अपने गुरू को जानकारी दी। गुरू के सभी चेले ये बातें सुन रहे थे और सोच रहे थे कि अब गुरू क्या कहेंगे। कुछ चेले सोच रहे थे कि अनुमति नहीं मिलनी चाहिए और कुछेक ऐसे चेले भी थे जो चाहते थे कि अनुमति मिले ताकि वे भी कल को किसी ऐसे स्थान पर रह कर कुछ समय बिता सकें।

गुरू ने सब कुछ सुन कर कहा कि जाओ और उस औरत का भला करो। आज्ञा पाकर भिक्षु लौट गया। और कुछ महीने बाद उसी औरत (वेश्या) के साथ लौट आया। उसे औरत के साथ आया देख सभी चेले आपस में कहने लगे कि देखा संगत का असर! आखिरकार इस औरत ने अपना जादू चला ही डाला। और अच्छे भले भिक्षु को सांसारिक जीवन जीने वाला बना कर अब शायद विवाह की अनुमति लेने आई है। लेकिन गुरू को पता था अपने चेले का इसलिये गुरू उन्हें आता देख मुस्कुरा रहे थे।

भिक्षु ने अपने गुरू के पैर पकड़े और कहा कि हे गुरूजी मैंने इस औरत का उद्धार कर दिया है। अब ये एकदम शुद्ध आत्मा बन चुकी है। अत: इसे भी अपना शिष्य स्वीकार करें। ये सब सुन कर सभी भिक्षु आश्चर्य में पड़ गए कि ये कैसे हुआ? चरित्र तो हमेशा बुरे के साथ रह कर अच्छे का खराब होता है। हमें बचपन में यही सिखाया जाता है कि बुरे के साथ रह कर तुम भी बुरे बन जाओगे। तब गुरू ने कहा कि देखो इस भिक्षु को जिसने मेरी आशा के अनुरूप कार्य किया। इस औरत के चरित्र को अपने चरित्र जैसा बना दिया न कि खुद को बदलने दिया। ये ठीक उसी प्रकार है जैसे कमल कीचड़ में रह कर भी कीचड़ जैसा नहीं होता।

इसलिए मैं इस कहानी के माध्यम से ये कहना चाहूँगा कि आप के अंदर यदि बुरे विचार आते हैं तो अपनी संगत बदल डालिये। अच्छे लोगों के साथ ही आप अपने आपको ढालने की कोशिश करें। जैसे आप बुरे विचारों का स्वागत करते हैं वैसे ही अच्छे विचारों को भी अंदर आने दें उनका विरोध न करें। जैसे ही आप अच्छे विचारों के लिये अपने मन के द्वार खोल देंगे आप पाएँगे कि आप एक अच्छे इंसान बन चुके हैं।

अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और TwitterInstagramLinkedIn , YouTube  पर फॉलो करें।