शिक्षा नीति बनाम विवाद नीति

Education Policy vs. Dispute Policy

हिंदी भाषा के मामले में केंद्र सरकार की नई शिक्षा नीति का ड्राफ्ट फिर विवादों में घिर गया है। दक्षिणी राज्यों के विरोध के बाद मानवीय संसाधन मंत्रालय को हिंदी को अनिवार्य करने का निर्णय वापिस ले लिया है। ऐसा ही विवाद 2014 में एनडीए सरकार के बनते ही सुर्खियों में आया था, जब राज्य सरकारों को पूरा रिकार्ड हिंदी में रखने के लिए कहा गया। तब भी दक्षिणी क्षेत्र के विरोध के बाद केंद्र सरकार ने यह कहकर पल्ला झाड़ लिया था कि सबंधित आदेश केवल हिंदी भाषी राज्यों के लिए थे। चिंता का विषय है कि स्वतंत्रता के करीब 72 साल बाद भी कोई र्स्वमान्य शिक्षा नीति नहीं बन सकी।

शिक्षा जैसे गंभीर मुद्दों पर राजनीति होवी हो जाती है। ऐसा माहौल क्यों नहीं बनाया गया कि दक्षिणी भारतीय लोग हिंदी से घृणा करने की बजाय उसे स्वीकार करें। हिंदी को दक्षिणी राज्यों पर मढ़ने की बजाय इसके प्रचार-प्रसार के लिए कोई ठोस रणनीति बनाई जाती। दक्षिण भारतीय हिन्दी को राष्टÑ की संपर्क की भाषा के तौर पर अपनाना चाहिए। केन्द्र सरकार सिर्फ फैसला बदलकर अपनी जिम्मेदारी से मुक्त नहीं हो सकती। त्रैभाषा फार्मूला अच्छा एक वैज्ञानिक निर्णय था जिसे ईमानदारी से लागू नहीं किया गया। दरअसल शिक्षा नीति में शिक्षा ढांचे की खामियों पर ध्यान नहीं दिया जाता।

दरअसल शिक्षा नीति को लेकर जितने दावे व शोर-शराबा होता है, शिक्षा को महत्व उससे कहीं कम दिया जाता है। आज हालात ये हैं कि सरकारी स्कूलों में अध्यापकों, इमारतें व साजो-सामान की कमी है। पिछले तीन दशकों से सरकारी स्कूल पिछड़े हुए हैं। निजी स्कूलों के मुकाबले सरकारी स्कूलों के परिणाम 50 प्रतिशत तक पहुंच गए थे। कोई एकाध राज्य में सरकारी स्कूलों में सुधार हुआ है। शिक्षा नीति विवाद नीति नहीं बननी चाहिए, बल्कि इसका उद्देश्य शिक्षा में निम्न स्तर तक सुधार करने की आवश्यकता है। आज मेडिकल, इंजीनियरिंग में दाखिला लेने में सफल होने वाले विद्यार्थी बड़ी संख्या में निजी स्कूलों से सबंधित हैं।

केंद्र को अध्यापकों के वेतन संंबंधी समानता लाने के लिए कानून लाने की आवश्यकता है। आज एक ही सरकारी स्कूल में पढ़ा रहे अलग-अलग अध्यापकों का वेतन 40 हजार से ज्यादा अंतर है। कोई दस हजार ले रहा है और कोई 50 हजार। ग्रामीण क्षेत्र में स्कूल की दशा दयनीय है। मुफ्त व अनिवार्य शिक्षा कानून फिर ही फलदायक साबित होगा यदि राज्य सरकार अध्यापकों-प्रिंसिपल की भर्ती यकीनी बनाने और पुस्तकालय, प्रयोगशलाओं के लिए अपेक्षित फंड मुहैया करवाए।

 

Hindi News से जुडे अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और Twitter पर फॉलो करें।