अमेरिका के इंडियाना पोलिस में एक हमले में चार भारतीय लोगों की मौत हो गई। इस घटना से प्रवासी भारतीय सदमे में हैं। बाइडेन प्रशासन में यह पहली बड़ी घटना है। प्रवासी भारतीयों के मन में इस बात का भय बन रहा है कि कहीं रिपब्लिकन राज्य की तरह डेमोक्रेटिक राज्य में भी नस्लीय हिंसा को अनदेखा न कर दिया जाए। भारतीयों की सुरक्षा के संबंध में राष्ट्रपति कार्यालय से अब तक कोई संतोषजनक ब्यान नहीं आया है।
इस कारण भारत ही नहीं वैश्विक समाज और सरकारें चिंतित हैं। इससे लगता है कि अमेरिका इस नस्लीय हिंसा से लगभग बेपरवाह है। राष्ट्रपति जो बाइडेन ने इस घटना पर दुख प्रकट करते हुए इसे राष्ट्रीय आघात करार दिया है। वास्तव में बराक ओबामा प्रशासन के कार्यकाल में नस्लीय हिंसा को गंभीरता से लिया जाता था, यही कारण था कि दूसरी बार राष्ट्रपति बनने पर ओबामा को 39 फीसदी गैर अमेरिकियों के वोट मिले थे। इनमें अफ्रीकी और एशियाई मुल्कों के लोग थे। मूल अमेरिकियों के केवल 20 फीसदी वोट ही मिले थे। उनके कार्यकाल में एक भी प्रवासी की हत्या पर पूरे देश में शोक मनाया जाता था, लेकिन ट्रम्प प्रशासन में अनगिनत नस्लीय हमलों को अनदेखा किया गया।
9/11 के हमलों के बाद अमेरिका में नस्लीय हिंसा आक्रामक हुई थी, जिसमें कई भारतीय लोग मारे गए थे। तब अमेरिका ने यह तथ्य स्थापित करने की कोशिश की थी कि हमलावरों ने उन्हें भूलवश अरब नागरिक मान लिया था। यही बात श्रीनिवास की हत्या के बाद दोहराई गई। किंतु अब स्पष्ट हो रहा है कि श्वेत वर्चस्ववादी भारतीय और एशियाई मूल के लोगों को जानबूझकर निशाना बना रहे हैं। भारतीय मूल के लोगों की बेरहमी से हत्या को भुलाया जाता रहा, परिणामस्वरूप ट्रंप प्रशासन को नस्लीय हिंसाओं की अनदेखी का खमियाजा भी भुगतना पड़ा और उन्हें चुनावों में करारी शिकस्त मिली। अश्वेत फ्लॉइड की मौत ट्रम्प के खिलाफ लहर बन गई।
राष्ट्रपति जो बाइडेन ने पद संभालते ही यह वायदा किया था कि नफरत व आपसी दूरियां छोड़कर नए अमेरिका का निर्माण करेंगे। अपनी टीम में कई भारतीय मूल के लोगों को जगह देकर नस्लीय और धार्मिक भेदभाव से ऊपर उठने का बाइडेन संदेश दे चुके हैं। अब आवश्यकता है सरकार प्रवासियों के दिलों में पैदा हुई अनिश्चितता को दूर करने के लिए न केवल उनकी सुरक्षा का प्रबंध किया जाए, बल्कि नस्लीय हिंसा के लिए जिम्मेवार लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई हो।
भले ही भारतीय प्रवासियों की गिनती आटे में नमक के बराबर है, फिर भी अमेरिका के विकास में भारतीय लोगों के योगदान को कम नहीं आंका जा सकता। अमेरिका को कनाडा की परम्परा से सीख लेनी चाहिए, इस मुल्क ने विकास का आधार ही सांस्कृतिक भिन्नताओं को माना है। यूं भी अमेरिका में हथियारों की हद से ज्यादा छूट अमेरिकी मूल की नई पीढ़ी को गलत रास्ते पर लेकर जा रही है। अमेरिका को नस्लीय भेदभाव से बाहर निकालने के साथ-साथ हथियारों में छूट पर पाबंदियां लगाने की आवश्यकता है। सहनशीलता व मानवीय स्वतंत्रता अमेरिका का मूल सिद्धांत है। अमेरिका को अब्राहम लिंकन की विरासत को संभालने की आवश्यकता है जो समानता को इंसानियत की सबसे बड़ी विशेषता मानते हैं।
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