अर्थव्यवस्था में सुधार: मध्यावधि योजना आवश्यक

Economy

कोरोना महामारी के चलते उपभोक्ता द्वारा व्यय में गिरावट आई। प्रावइेट निवेश प्रभावित हुआ और निर्यात में कमी आई जिसका अर्थव्यवस्था पर व्यापक प्रभाव पड़ा। हालांकि यह संकट अभूतपूर्व था किंतु सरकार के नीति-निर्माता और अर्थशास्त्री इस संकट से बेहतर ढंग से निपट सकते थे और आर्थिक कार्यकलापों को पहले शुरू करने की अनुमति देकर उपचारात्मक कदम उठा सकते थे। बढ़ती बेरोजगारी और महंगाई तथा अर्थव्यवस्था के कुप्रबंधन के कारण सामाजिक सुरक्षा प्रभावित हुई और कोरोना महामारी ने भूख, आवश्यक वस्तुओं की कमी, विस्थापन तथा अनिश्चितता को बढाया।

लोग अपने वर्तमान और भविष्य को लेकर अनिश्चितता की रिूथति में हैं। वस्तुत: इस घातक महामारी के चलते आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों का जीवन बुरी तरह प्रभावित हुआ। राष्टीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा हाल ही में जारी आंकड़ों के अनुसार इस वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में भारतीय अर्थव्यवस्था में 23.9 प्रतिशत की गिरावट आयी और यह बताता है कि आने वाला समय और भी कठिन है। 1996 में राष्टीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा सकल घरेल उत्पाद के तिमाही के आधार पर मापन के बाद यह सबसे बड़ी गिरावट है। वैश्विक संदर्भ में यह गिरावट और भी बड़ी है क्योंकि इससे अधिक गिरावट केवल पेरू और मकाउ के सकल घरेलू उत्पाद में आयी है।

वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद में चालू वित्त वर्ष में 7.3 प्रतिशत की गिरावट आने की संभावना है। कुछ अर्थशास्त्रियों का कहना है कि यह गिरावट 6-7 प्रतिशत से अधिक नहीं होगी किंतु राष्टीय सांख्यिकी कार्यालय के वर्तमान आंकड़ों के अनुसार यह गिरावट 9 प्रतिशत तक रह सकती है। भारतीय अर्थव्यवस्था में इससे पूर्व ऐसी गिरावट 1979 में देखने को मिली जब सकल घरेलू उत्पाद में 5 प्रतिशत की गिरावट आयी और इसका कारण देश के कुछ भागों में भीषण सूखा और कुछ भागों में भयंकर बाढ थी। वर्तमान परिदृश्य में अंतर्राष्टीय मुद्रा कोष का कहना है कि जी-20 देशों द्वारा अर्थव्यवस्था को दिया जाने वाला प्रोत्साहन पैकेज सकल घरेल उत्पाद का 12.1 प्रतिशत है जो वैश्विक वित्तीय संकट के समय से कई गुना अधिक है। भारत ने भी प्रोत्साहन पैकेज की घोषणा की है जो सकल घरेलू उत्पाद के लगभग 10 प्रतिशत के बराबर है किंतु स्वतंत्र विश्लेषकों का कहना है कि यह लगभग 4 प्रतिशत या उससे कम है।

देश के निर्यात में भी गिरावट आ रही है। विकसित बाजारों से उभरते बाजारों द्वारा उत्पादित माल की मांग कम हुई है। निर्यात में कमी के कारण पिछले तीन तिमाहियों में निवेश वृद्धि में भी गिरावट आयी है। हालांकि पिछले 6 वर्षां में प्रावइेट खपत में 7 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। किंतु घरेलू बचत में गिरावट आयी है और ऋणग्रस्तता बढ़ी है। 2019-20 के अंतिम तिमारी के बाद इस स्थिति में कछ बदलाव आया है। आय में गिरावट और बैंकों के अशोध्य ऋणों में वृद्धि के कारण आसानी से ऋण मिलना बंद हो गया जिसके चलते चालू वित्त वर्ष की पहली दो तिमाही में प्राइवेट खपत में गिरावट आयी है। ऐसी नाजुक स्थिति में जहां एक और निजी निवेश में गिरावट आयी है तो सरकार द्वारा किए जाने वाला व्यय भी पर्याप्त नहीं है। विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे समय में सरकार को अधिक व्यय करना चाहिए था।

केन्द्र द्वारा स्वास्थ्य क्षेत्र में अधिक निवेश किया जाना चाहिए था किंतु पिछले चार-पांच महीनों में जो निवेश किया गया है वह ऋण ग्रस्त राज्यों द्वारा किया गया। कुल मिलाकर इस आर्थिक संकट के निवारण के लिए जो कछ भी कदम उठाए गए वे पर्याप्त नहीं थे। अर्थव्यवस्था केन्द्रीयकृत बनती जा रही है किंतु इसके अनुरूप केन्द्र द्वारा व्यय में वृद्धि नही हुई है। यदि केन्द्र राज्यों को विकास कार्यों तथा आपदा प्रबंधन के लिए अधिक वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराता तो स्थिति कुछ भिन्न होती। इसके अलावा लंबे समय तक लॉकडाउन के बजाय आर्थिक कार्यकलापों को पहले शुरू किया जाना चाहिए था।

देश में संसाधनों की कमी हो सकती है किंतु भारत का विदेशी ऋण कम है इसलिए अवसरंचना विकास तथा विनिर्माण के लिए विदेशी सहायता ली जानी चाहिए थी। भारत में श्रम शक्ति कुशल है और इसकी लागत अपेक्षाकृत कम है और अधिकतर राज्यों द्वारा इस संभावना को तलाशना चाहिए और इस दिशा में कुछ राज्यों ने कुछ प्रगति भी की है। तथापि कोरोना महामारी से चाहे विनिर्माण क्षेत्र हो या सेवा क्षेत्र छोटे व्यवसायी अधिक प्रभावित हुए हैं। मांग की कमी और वित्तीय संसाधनों की कमी के चलते उनकी आय प्रभावित हुई है और इसके कारण इन इकाइयों में कार्य कर रहे कामगार भी प्रभावित हुए।

केन्द्र सरकार ने प्रवासी श्रमिकों के बारे में भी उदासीनता बरती जो सरकार द्वारा यकायक लाकडाउन की घोषणा से प्रभावित हुए और उन्हें एक लंबी अवधि तक कोई आय प्राप्त नहंी हुई और इसके चलते जनसंख्या के एक बड़े वर्ग पर दुष्प्रभाव पड़ा। आर्थिक कार्य विभाग की हाल की रिपोर्ट में कहा गया है कि अर्थव्यवस्था में सुधार शुरू हो गया है। भारत इस संकट की स्थिति से उबर रहा है इसलिए हमारी नीति आर्थिक पुनर्निर्माण की होनी चाहिए। इस रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि विद्युत, इस्पात, आटो और पूंजी निवेश तथा निर्यात में सुधार आया है और अवसंरचना, स्वास्थ्य देखभाल, कौशल प्रशिक्षण, स्टार्ट अप आदि क्षेत्रों पर ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है।

मैकेंजी ग्लोबल इंस्टिट्यूट की रिपोर्ट में भविष्यवाणी की गयी है कि भारत में वर्ष 2000 की तरह रोजगार में 1.5 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि के लिए उत्पादकता में 6.4 से 7 प्रतिशत तक की वृद्धि होनी चाहिए। सुधारों पर बल देते हुए तथा निजीकरण का समर्थन करते हुए इस रिपोर्ट में कहा गया है कि घरेलू बचतों को पूंजी बाजार में लगााने, ऋण की लागत में 3.5 प्रतिशत तक की कमी करने तथा विकासोन्मुखी निवेश में 1.7 प्रतिशत की वृद्धि करने के लिए वित्तीय संसाधन उपब्लध कराए जाने चाहिए। विशेषज्ञों का माना है कि इस संबंध में मध्यावधि और दीर्घकालीन रणनीति बनायी जानी चाहिए ताकि वर्ष 2021-22 के मध्य तक अर्थव्यवस्था में सुधार हो।

वर्तमान आर्थिक संकट ने मध्यावधि रणनीति बनाने का अवसर दिया है और इसके साथ ही प्राथमिक सेक्टर को प्रोत्साहन पैकेज दिया जाना चाहिए। इस संबंध में कृषि क्षेत्र पर अधिक ध्यान दिया जाना चाहिए। इस क्षेत्र में कुछ अच्छी प्रगति दिखायी दी है। कृषि क्षेत्र पर बल देने से जनसंख्या के 50 प्रतिशत हिस्से की आजीविका सुनिश्चित होगी। ठोस अवसंरचना का निर्माण करना होगा और प्रोत्साहन पैकेज के रूप में पिछड़े जिलों में सड़क, भवन आदि निर्माण कार्यों के लिए अणिक संसाधन आवंटित करने होंगे।

पर्यावरण संरक्षण को बल देने के लिए वनों की कटाई, मरूस्थलीकरण को रोकने और वन वाली भूमि के सरंक्षण पर बल दिया जाना चाहिए। कुशल तथा पर्यावरण अनुकूल व्यवसायों के विकास के लिए स्थानीय और छोटे व्यवसाईयों को सहायता दी जानी चाहिए। उन्हें प्रोत्साहन और अनुसंधान तथा विकास सहायता उपलब्ध करायी जानी चाहिए। एक नई उर्जा नीति बनायी जानी चाहिए जिसमें अक्षय उर्जा, बैटरी स्टोरेज, स्मार्ट ग्रिड और विद्युत वितरण में सुधार पर बल दिया जाए। एक वैश्विक शक्ति के रूप में उभरने के लिए आवश्यक है कि भविष्य में आर्थिक स्थिति में सुधार आए। स्थिति में बदलाव के लिए लक्षित निवेश की आवश्यकता है तभी अर्थव्यवस्था में सुधार हो पाएगा। यदि सरकार के संसाधनों को सही दिशा में लगाया गया तो इससे अर्थव्यवस्था में वांछित निवेश होगा और अर्थव्यवस्था में सुधार आएगा।

                                                                                                                -धुर्जति मुखर्जी

 

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