इस सदी की भीषण मंदी से जूझ रही भारत की अर्थव्यवस्था को एक बार फिर जोर का झटका लगा है। वैश्विक क्रेडिट रेटिंग एजेंसी मूडीज इन्वेस्टर्स सर्विस ने शक्रवार को वर्ष 2020 में भारत की आर्थिक वृद्धि दर के अपने पहले के अनुमान को घटा कर 2.5 फीसदी कर दिया है। पहले उसने इसके 5.3 फीसदी रहने का अनुमान जताया था। कोरोना वायरस और उसके चलते देश दुनिया में आवागमन पर रोक के मद्देनजर आर्थिक लागत बढ़ी और इसी वहज से देश की वृद्धि दर घटने का अनुमान है। वर्ष 2019 में वृद्धि पांच फीसदी रहने का आकलन है। वैश्विक महामारी कोरोना से निपटने के लिए पूरे देश में 14 अप्रैल तक पूर्ण लॉकडाउन की घोषणा की गई है।
अर्थव्यवस्था की भारी तबाही से देश के लाखों लोगों की करोड़ों अरबों रुपयों की धन राशि डूबत खाते में दर्ज हो गयी है जिससे सर्वत्र त्राहि त्राहि मची हुई है। एजेंसी ने कहा कि, भारत में बैंकों और गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के पास नकद धन की भारी कमी के चलते भारत में कर्ज हासिल करने को लेकर पहले से ही बड़ी बाधा चल रही है। हालाँकि केंद्र की मोदी सरकार ने गरीबों के लिए 1 लाख 70 हजार करोड़ रुपये के राहत पैकेज का ऐलान किया है। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत इस राहत पैकेज की घोषणा की गई है। वित्त मंत्री ने कहा कि लॉकडाउन से प्रभावित गरीबों की मदद की जाएगी। इस राशि से गरीबों के लिए कैश ट्रांसफर भी किए जाएंगे। इसके अलावा कोरोना वारियर्स के लिए मेडिकल इंश्योरेंस उपलब्ध कराया जाएगा। आर्थिक विशेषज्ञों ने इस सहायता पैकेज का स्वागत करते हुए इसे नाकाफी बताया है।
भारत की अर्थव्यवस्था विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। आजादी से पूर्व भारत सोने की चिडिया कहलाता था। दसवीं सदी तक भारत की अर्थव्यवस्था विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था थी। पहली सदी में भारत का सकल घरेलू उत्पाद विश्व के कुल जीडीपी का 32.9 प्रतिशत था। वर्ष 2003 में भारत ने 8. 4 प्रतिशत की विकास दर प्राप्त की जो दुनिया की अर्थव्यवस्था में सबसे तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था का एक संकेत समझा गया। यही नहीं 2005-06 और 2007-08 के बीच लगातार तीन वर्षों तक 9 प्रतिशत से अधिक की अभूतपूर्व विकास दर प्राप्त की। कुल मिलाकर 2004-05 से 2011-12 के दौरान भारत की वार्षिक विकास दर औसतन 8.3 प्रतिशत रही किंतु वैश्विक मंदी की मार के चलते 2012-13 और 2013-14 में 4.6 प्रतिशत की औसत पर पहुंच गई। लगातार दो वर्षों तक 5 प्रतिशत से कम की विकास दर, अंतिम बार 25 वर्ष पहले 1986-87 और 1987-88 में देखी गई थी। अर्थव्यवस्था में सुस्ती को देखते हुए केंद्र सरकार ने चालू वित्त वर्ष में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की विकास दर पांच फीसदी तक बढ़ने का अनुमान जताया है। पिछले वित्तीय वर्ष में इसकी विकास दर 6.8 फीसदी थी।
इससे पहले आरबीआई ने भी देश की विकास दर के अपने अनुमान को घटाकर पांच फीसदी कर दिया। इससे देश में बेकारी बढ़ी और महंगाई आसमान को छूने लगी। कोरोना लॉकडाउन के बीच देश की इकोनॉमी को बूस्ट देने के लिए सरकार की ओर से लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। इसी के तहत रिजर्व बैंक ने भी राहत के दरवाजे खोल दिए हैं। आरबीआई ने रेपो रेट में 75 बेसिस प्वाइंट की कटौती की है। इस कटौती के बाद रेपो रेट 5.15 से घटकर 4.45 फीसदी पर आ गई है। आरबीआई की रेपो रेट कटौती का फैसला ऐतिहासिक है। यह कटौती आरबीआई इतिहास की सबसे बड़ी है। अब यह तो भविष्य ही तय करेगा की अर्थव्यवस्था को इससे कितना लाभ मिलता है। इसके साथ ही आरबीआई ने रिवर्स रेपो रेट में भी 90 बेसिस प्वाइंट कटौती करते हुए 4 फीसदी कर दी है। बहरहाल अर्थव्यवस्था सबसे बुरी हालत में है। देश की अर्थव्यवस्था में मंदी के संकेत गहराने लगे हैं। कोरोना के असर से कारोबार प्रभावित हो रहा है। एयरलाइंस, रेलवे और ट्रांसपोर्ट भी प्रभावित हुआ है। कंपनियां कर्मचारियों को बिना वेतन 1 से 2 महीने की छुट्टी पर भेज चुकी हैं या वेतन में कटौती कर रही हें। शेयर बाजार लगभग 30 फीसदी गिर चुका है। अंतरराष्ट्रीय उड़ानों के एक सप्ताह तक भारत आने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। पर्यटन उद्योग लगभग ठप हो चुका है। मॉल खाली पड़े हैं, सिनेमाघर बंद हैं। चारोओर अर्थव्यवस्था चैपट हो रही है।
कुछ लोगों का मानना है यह वैश्विक मंदी है और खतरे के बादल शीघ्र छटेंगे। फिलहाल लोग मुश्किल वक्त से गुजर रहे है जिससे बाहर निकलना देश के हित में होगा। दूसरी तरफ प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने आरबीआई के फैसले को इकोनॉमी के लिए काफी अहम बताया है। उन्होंने कहा कि आरबीआई ने हमारी अर्थव्यवस्था को कोरोनावायरस के प्रभाव से बचाने के लिए बड़े कदम उठाए हैं। इन घोषणाओं से तरलता में सुधार होगा, बचत होगी साथ ही मध्यम वर्ग और कारोबारी वर्ग को मदद मिलेगी।
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