खतरनाक मोड़ पर मध्य-पूर्व का संकट

Eastern crisis

-ईरान की राजनीति में सुलेमानी की अहमियत का अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि जहां एक ओर उनकी मौत के बाद ईरान में तीन दिन का राष्ट्रीय शौक रखा गया है, वहीं दुसरी ओर अमेरिकी राष्ट्रपति ने उनकी मौत को संयुक्त राज्य की जीत मानते हुए संकेत के तौर पर अमेरिका के राष्ट्रीय ध्वज की तस्वीर ट्वीट की। जनरल कासिम का जादू ईरानियों के सिर तब चढ़ कर बोलने लगा जब साल 1980-88 के ईरान-इराक युद्ध के दौरान उन्होंने देश का कुशल नेतृत्व किया। यद्वपि युद्ध बिना किसी परिणाम के खत्म हो गया, लेकिन सुलेमानी देश के नायक के तौर पर उभर कर आए। आज वे ईरान के सुप्रीम लीडर अयोतुल्लाह खमनेई के बाद देश के दूसरे सबसे ताकतवर शख्स के तौर पर जाने जाते थे। खमनेई के खासे करीबी होने के कारण उन्हें ईरान के भावी सुप्रीम के तौर पर भी देखा जाता था।

ईरानी सेना के कंमाडर जनरल कासिम सुलेमानी की मौत के बाद पश्चिम एशिया में एक बार फिर से युद्ध के बादल मंडराने लगे हैं। न केवल ईरान व अमेरिका समर्थक देशों की सेनाएं अलर्ट पर हैं, बल्कि सऊदी अरब और इजरायल ने भी अपनी सीमाओं पर मिसाइलें तैनात कर सेना को तैयार रहने का आदेश दिया है। ईरान सुलेमानी की मौत का बदला लेने का ऐलान कर चुका है। हालांकि अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप का कहना है कि बगदाद एयरपोट पर एयर स्ट्राइक युद्ध छेड़ने के लिए नहीं बल्कि खत्म करने के लिए की गई है, लेकिन दुनिया भर के जानकर यह मान रहे हैं कि सुलेमानी पर हमला सीधे-सीधे ईरान पर हमला है, ऐसा करके अमेरिका ने एक तरह से युद्ध की पहल कर दी है।

ईरान की ओर से हमले की आशंका को देखते हुए अमेरिका ने मध्य-पूर्व में 3000 सैनिक भेजने का ऐलान किया है। इस क्षेत्र में उसके 14000 सैनिक पहले से ही तैनात हंै। दूसरी और इराक की राजधानी बगदाद में अमेरिकी दूतावास पर रॉकेट से हमला किये जाने का समाचार है। बगदाद इंटरनेशल एयरपोर्ट के करीब हुए अमेरिकी ड्रोन हमले में कासिम सुलेमानी के अलावा कताइर हिजबुल्ला के कमांडर अबु महदी अल मुहांदिश के मारे जाने का भी समाचार है। अमेरिकी रक्षा विभाग की ओर से कहा गया है कि विदेशों में स्थित अमेरिकी सैनिकों की सुरक्षा के लिए सुलेमानी बड़ा खतरा था इसलिए राष्ट्रपति ट्रंप के निर्देश पर सुलेमानी को मारने का कदम उठाया गया। पिछले दिनों इराक व अन्य देशों में अमेरिकी सैन्य ठिकानों पर जो हमले हुए अमेरिका उनके पीछे सुलेमानी का हाथ मानता है। उसका कहना है कि ईरानी हमलों को रोकने के लिए सुलेमानी पर हमला किया जाना जरूरी था।

जनरल कासिम सुलेमानी ईरानी इस्लामिक रेवॉल्यूशनरी गार्ड कोर्प्स (आईआरजीसी) की कुद्स फोर्स यूनिट के चीफ थे। कुद्स फोर्स को रेवॉल्यूशनरी गार्ड की विदेशी शाखा माना जाता है, जो देश से बाहर ईरान के सैन्य अभियानों का संचालन करती है। सुलेमानी को पश्चिमी एशिया में ईरानी गतिविधियों का प्रमुख रणनीतिकार माना जाता था। रणनीतिक कुशलता और कूटनीतिक सुझबूझ के दम पर सुलेमानी ने यमन से लेकर सीरिया और इराक से लेकर दूसरे पश्चिमी एशियाई देशों तक ईरान के लिए सैन्य, खुफिया और आर्थिक गतिविधियों का मजबूत नेटवर्क खड़ा कर दिया था। उनका का सबसे बड़ा योगदान इराक और सीरिया में आईएस से मुकाबला करने के लिए क्रुद लड़ाके और शिया मिलिशिया को एक जूट करने का रहा। उन्होंने हिजबुल्ला और हमास जैसे चर्मपंथी संगठनों की मदद की ।

अमेरिका-ईरान के बीच विवाद या तनाव का यह कोई पहला मामला नहीं है। इससे पहले भी दोनों देशों के बीच बयानबाजी का दौर चलता रहा है। लेकिन हाल ही में अमेरिका द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के बाद तनाव इस कदर बढ़ गया कि दोनों देश युद्ध के कगार तक पंहुच गए है। ताजा विवाद उस वक्त उठ खड़ा हुआ जब बीते साल 31 दिसंबर को ईरान समर्थित कुछ प्रदर्शनकारियों ने बगदाद में अमेरिकी दूतावास में तोड़-फोड़ कर आग लगा दी थी। इस पर अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने तल्ख प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि ईरान को इसकी बड़ी कीमत चुकानी होगी।

ट्रंप के इस बयान के महज 48 घंटें के भीतर ही अमेरिकी सेना ने सुलेमानी को मार गिराया। जनरल सुलेमानी की मौत तेहरान के लिए एक बड़े झटके की तरह है। तेहरान इस बात को जानता है कि अगर उसे मध्य-पूर्व में अपना दबदबा कायम रखना है तो बिना देरी किए सुलेमानी की मौत का बदला लेना होगा। ईरान के सुप्रीम लीडर खेमनई ने कहा भी है कि कासिम सुलेमानी पर हमले के अपराधियों को गंभीर परिणाम भुगतने होंगे। खेमनई के बयान का सीधा-सीधा अर्थ यही है कि आने वाले दिनों में अमेरिकी सैन्य ठीकानों पर हमले का खतरा मंडराता रहेगा।

सवाल यह है कि सुलेमानी को दण्डित किये जाने का यही वक्त ट्रंप ने क्यों चुना। कहीं ऐसा तो नहीं कि अमेरिका के आर्थिक प्रतिबंधों के मार्ग में सुलेमानी बाधा बन रहे थे। अमेरिकी प्रतिबंधों के खिलाफ जारी लड़ाई का सुलेमानी ने जिस चतुराई से नेतृत्व किया उसे देखते हुए यह आशंका बेमानी भी नहीं है। इससे पहले अमेरिका खाड़ी में तेल टैंकरों पर हमले, अमरीकी ड्रोन को गिराने व इराक मे अमेरिकी सैन्य कैंप पर किए गए हमलों का आरोप ईरान के सिर मंडता रहा है। यहां तक कि सऊदी अरब के एक बडे़ तेल ठिकाने पर हमले का दोषी भी उसने ईरान को माना है, लेकिन इसके बावजूद अमेरिका की ओर से कोई कड़ी कार्रवाई का संदेश ईरान के लिए नहीं आया।

अब अमेरिकी दुतावास में तोड-फोड की घटना के बाद गुस्साए ट्रंप ने एयर स्ट्राइक कर सुलेमानी को मारा है, इससे अमेरिकी कार्रवाई पर सवाल उठने लगे हैं। सच तो यह है कि देश के भीतर महाभियोग की कार्रवाई में उलझे ट्रंप को इस साल चुनाव का सामना करना हैं। ऐसे में वह अमेरिकी मतदाताओं को राष्ट्रवाद के नाम पर आकर्षित करना चाहते हैं। पहले आईएसआईएस मुखिया अबु बक्र अल-बगदादी और अब जनरल कासिम सुलेमानी की मौत को ट्रंप के चुनावी राष्ट्रवाद से ही जोड़कर देखा जा रहा हैं।

निसंदेह मध्यपूर्व में अचानक हुई इस अमेरिकी कार्रवाई से वैश्विक जगत अछूता नहीं रहने वाला है। सुलेमानी की मौत के तुंरत बाद तेल की कीमतों में चार फीसद का बड़ा ईजाफा हो गया तथा अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोने और चांदी की कीमतें भी बढ़ गयी। अमेरिका से बढ़ते सैन्य तनाव के बीच अगर ईरान दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण तेल मार्ग कहे जाने वाले हॉर्मूज जलडमरूमध्य को बंद कर देता है, तो वैश्विक तेल निर्यात में करीब 30 फीसदी की गिरावट आ जाएगी जिससे दुनियाभर में तेल के लिए हाहाकार मच जाएगा। इस मार्ग से प्रतिदिन करीब 15 मिलियन बैरल्स तेल की सप्लाई होती है। यदि यह बंद होता है तो यूएस, यूके समेत कई देशों में तेल की किल्लत हो जाएगी। इससे तेल के दाम तो बढेगे ही साथ ही खाड़ी देशों में हालात बिगड़ेगे। यदि ऐसा होता है तो भारत और चीन के लिए मुश्किल खड़ी हो सकती है। दूसरी ओर ईरान ने भी युद्ध का ऐलान कर दिया है।

शनिवार सुबह ईरान ने अपनी सबसे पवित्र जामकरन मस्जिद के ऊपर खून और शहादत के प्रतीक कहे जाने वाले लाल झंडे को फहराकर ईरानी नागरिकों को युद्ध के लिए तैयार रहने को कहा है। आधुनिक ईरान के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है, जबकि मस्जिद पर लाल झंडा फहराया गया हो। ईरान-इराक युद्ध के समय भी इस तरह का झंडा नहीं फहराया गया था। इससे पहले कर्बला युद्ध के दौरान इमाम हुसैन ने याजीद की सेना के विरूद मोर्चा लेने के लिए मस्जिद के ऊपर लाल झंडा फहराया था। हुसैन का झंडा कर्बला के ऐतिहासिक युद्ध की ताकत का प्रतीक है।

सुलेमानी की मौत के बाद जिस तरह की प्रतिक्रियाए आ रही हैं उसे देखते हुए कहा जा सकता है कि आने वाले दिनों में वैश्विक स्तर पर खतरनाक मोर्चंेबंदी का दौर तो शुरू होगा ही दुनिया में तीसरे विश्व युद्ध की आहट भी सुनाई देने लगी है। जहां एक ओर सऊदी अरब और इजरायल अमेरिका का साथ देगे वहीं ईरान के साथ सीरिया, यमन और लेबनान मोर्चें पर आ डटेंगे। आशंका यह भी है कि युद्ध के दौरान ईरान और उसके समर्थित संगठन अमेरिका और इजरायल के खिलाफ बड़े हमले कर सकते हैं। जहां तक भारत का सवाल है ट्रंप ने यह कहकर भारत को दुविधा में डाल दिया है कि सुलेमानी ने दिल्ली से लेकर लंदन तक आतंकी साजिशों को अंजाम देने में मदद की है।

माना जा रहा है कि ट्रंप का इशारा 2012 में नई दिल्ली में इजरायली राजनयिक की पत्नी पर हुए हमले की ओर है। इस हमले में ईरान का नाम सामने आया था। हालांकी इन पंक्तियों को लिखे जाने तक ट्रंप के दावे पर भारत की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई थी। ऐसे में अगर वह दावे के पक्ष में बोलता है तो ईरान से संबंध खराब होने का खतरा है, दूसरी ओर अगर वह अमेरिकी दावे को खारीज करता है तो अमेरिका से संबंध बिगड़ सकते हैं। भारत के ईरान के साथ अच्छे संबंध है। भारत अपनी तेल जरूरतों के काफी हद तक ईरान पर निर्भर करता है। जाहिर है अगर विश्व के देश मौजूदा तनाव को कम करने के लिए तत्काल पहलकदमी नहीं करते हैं, तो पहले से ही अस्थिर मध्य पूर्व का यह संकट दुनिया के लिए बड़ा खतरा बन सकता है।

एन.के.सोमानी

 

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