बहन दविंदर कौर इन्सां पत्नी प्रेमी जसवीर सिंह इन्सां पुत्र प्रेमी जीवन राम इन्सां, निवासी गाँव बनूड़, तहसील राजपुरा, जिला पटियाला (पंजाब) ने स्वयं पर हुए पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के पावन रहमो-करम को इस प्रकार बयान करती है-
सन् 2013 की बात है। मुझे बहुत दर्द होता था। मैंने चेकअप करवाया तो डॉक्टरों ने बताया कि बच्चेदानी मेंं रसोली है। तीन डॉक्टरों से अलग-अलग चेकअप करवाया, सभी की एक ही राय थी कि बच्चेदानी में रसोली है और इसका आॅपरेशन करवाना पड़ेगा। इसके अलावा अन्य कोई इलाज नहीं है। उस दौरान मेरे पति जिस कंपनी में ड्राइवर की नौकरी करत थे, उस कंपनी ने किसी और के पैसे देने थे। मेरे पति दो लाख रुपए का घी लेकर अमृतसर में देने गए। जिस व्यक्ति ने वो घी लेना था और उसके बदले में दो लाख रुपए देने थे, उन्होंने घी अपनी गाड़ी में लोड करवाया और बिना पैसे दिए ही वहां से भाग निकले। इस दो लाख रुपए का इल्जाम मेरे पति पर लग गया। कंपनी ने मेरे घर वाले पर केस कर दिया कि इन्होंने दो लाख रुपए की गड़बड़ी की है। उस झगड़े में मेरे पति कभी कहीं जाते, कभी कहीं। इसी चक्कर में हमारे पास जो भी थोड़ी-बहुत पूंजी थी, वो सारी खत्म हो गई। हम कंगाल हो गए।
उस समय मैं अपनी बीमारी, पति के झगड़े और गरीबी की वजह से बहुत ही परेशान थी। मैं अपने सतगुरु परम पूजनीय हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां को अपना दु:ख दूर करने के लिए विनती करने वास्ते 29 अप्रैल 2013 को डेरा सच्चा सौदा, सरसा दरबार में चली गई। उस दिन डेरा सच्चा सौदा में ‘रूहानी स्थापना दिवस’ व ‘जाम-ए-इन्सां गुरु का’ की वर्षगांठ के उपलक्ष में पावन भंडारे का कार्यक्रम था। मैं शाही स्टेज के बिल्कुल नजदीक जाकर बैठ गई। सत्संग शुरू हो गया। पूज्य गुरु जी सत्संग फरमाने के लिए शाही स्टेज पर विराज हुए। पूज्य गुरु जी के दर्शन करके मुझे वैराग्य आ गया। मुझे इतना रोना आया जिसको शब्दों में लिखा नहीं जा सकता। मैंने पिता जी के चरण-कमलों में विनती की कि हे दीनदयाल पिता जी! मेरे दोनों बच्चे बड़े आॅपरेशन से हुए हैं, इसलिए मैं आॅपरेशन नहीं करवा सकती। आपको तो मेरी हालत का पता ही है। मेरे पास इलाज के लिए पैसे भी नहीं हैं। अगर मैं बगैर इलाज के मर गई, तो मेरे बच्चे रुल जाएंगे। इन्हें माँ नहीं मिलेगी। पिता जी, मुझको आपने ही ठीक करना है। मैंने आॅपरेशन नहीं करवाना। मुझ पर रहमत करो। पिता जी, मुझे आप जी ने ही ठीक करना है।
पूजनीय पिता ने शाही स्टेज से वचन फरमाया कि जो मरीज हैं, उन्होंने 10 नंबर कमरे से दवाई लेनी है और आधा घंटा सुमिरन करके दवाई खानी है। मैं 10 नंबर कमरे से दवाई ले आई। वहां वैद्य जी ने मुझे एक महीने की दवाई दी। दवाई लेकर मैं अपने घर आ गई। एक रात को प्यारे सतगुरु जी ने मुझे सपने में दर्शन दिए। पूज्य पिता जी कुर्सी पर विराजमान थे और मैं पिता जी के चरण-कमलों में बैठी थी। पिता जी ने मेरे सिर पर हाथ रखा और वचन फरमाया कि ‘बेटा, अल्ट्रासाउंड करवाओ।’ उस समय मुझे जो खुशी हुई, उसका लिख-बोलकर वर्णन नहीं हो सकता। पिता जी ने तो उसी रात मेरा कष्ट काट दिया था, परन्तु मैंने वैद्य जी के कहे अनुसार महीनाभर दवाई खाई और उसके बद जब अल्ट्रासाउंड करवाया तो उसमें कुछ भी नहीं आया। यानि कि बिना आॅपरेशन करवाए ही मेरे मुर्शिद दाता प्यारे पिता जी ने मेरी उस रसौली का खात्मा कर दिया।
सतगुरु जी ने मुझ पर इतना बड़ा उपकार किया कि अगर मैं लाखों जन्म ले लूं तो भी अपने सतगुरु का देन नहीं दे सकती। मेरे पति ने तब तक रूहानी जाम नहीं पीया था। जब उनको मुझ पर हुई सतगुरु जी की रहमत का पता चला, तो उन्हें भी सतगुरु जी पर पूर्ण विश्वास हो गया। अगले सत्संग पर उन्होंने भी रूहानी जाम पी लिया। मेरे पति द्वारा जाम पीने पर सतगुरु जी की रहमत शुरू हो गई। जो व्यक्ति दो लाख रुपए का घी लेकर भागा था, वह अपने आप ही पेश हो गया और इस तरह हमारा वो केस भी निपट गया।
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