डॉ. धीरेंद्र ने की खोज से सस्ती होगी रोग प्रतिरोधक दवाइयां

Dr. Dhirendra's discovery will lead to cheaper disease-resistant medicines

इस उपलब्धि पर सीबीएलयू के कुलपति प्रोफेसर राजकुमार मित्तल ने किया सम्मानित

भिवानी(सच कहूँ न्यूज)। चौधरी बंसी लाल विश्वविद्यालय में सहायक अध्यापक के पद पर कार्यरत व युवा वैज्ञानिक पुरस्कार से सम्मानित डॉ. धीरेंद्र कुमार के शोध से रोग प्रतिरोधक दवाइयां सस्ती होने का रास्ता प्रशस्त होगा। इन्होंने कैंसर के त्वचा संबंधित रोग, मलेरिया, पेट के कृमि के उपचार में प्रयोग होने वाले तत्व को सस्ता बनाने की विधि खोजी है।

इससे बाजार में उपस्थित कीमत से कई गुना सस्ती कीमत में बनाने की विधि का पेटेंट प्राप्त किया है। इस प्राकृतिक तत्व का नाम बैतूलिनिक एसिड है। यह तत्व मूलत: पहाड़ों पर पाए जाने वाले पेड़ पौधों से प्राप्त किया जाता रहा है। कालांतर में रासायनिक विधियों द्वारा इसको बनाने में सफलता प्राप्त हुई। इसकी 10 मिलीग्राम की कीमत 12 से 15 हजार रुपये होने से इसका व्यापक रूप से प्रयोग संभव नहीं हो सका।

डा. धीरेंद्र ने इस सेकेंडरी मेटाबॉलिट्स को प्राकृतिक तरीकों से प्राप्त कर कई गुना सस्ती कीमत पर उपलब्ध कराने की विधि के बारे में पेटेंट प्राप्त किया। इस विधि के बाजार में आने के बाद रोगियों को सस्ती कीमत में दवा उपलब्ध हो जाएगी।

भारत सरकार ने दिया इस विधि का पेटेंट

डॉ. धीरेंद्र ने महर्षि दयानंद यूनिवर्सिटी रोहतक में अपने मार्गदर्शक प्रो. कश्यप दूबे के साथ शोध करते हुए अपने कार्य को सफलतापूर्वक संपन्न किया। इसके फलस्वरूप अपने कार्य को संपादित करते हुए बौद्धिक संपदा, जिसे पेटेंट कहते हैं, के लिए अप्लाई किया। इसे अभी कुछ दिन पहले ही स्वीकृत मिली है। इन्हें इस शोध कार्य के ऊपर इस प्रकार से प्राकृतिक तत्वों की सस्ती विधि से प्राप्त करने की विधि के ऊपर भारत सरकार द्वारा पेटेंट प्रदान किया गया।

इन बीमारियों में होता है दवा का प्रयोग

इस नई विधि से कैंसर, एड्स, पेट के कृमि, त्वचा संबंधित रोग और करोना जैसी वायरल बीमारियों से संबंधित दवाइयों में प्रयोग होने वाले बैतूलिनिक एसिड की कीमत पर सस्ता होने की दिशा में चल रहा प्रयास सफल माना जा रहा है।

सहायक प्राध्यापक डॉ. धीरेंद्र की इस उपलब्धि पर चौधरी बंसी लाल विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर राजकुमार मित्तल एवं कुलसचिव डॉ. जितेंद्र भारद्वाज ने उनको बधाई देते हुए बड़ी उपलब्धि बताया और कहा कि इस प्रकार की वैज्ञानिक उपलब्धि से न केवल उनका खुद का अपितु विश्वविद्यालय का भी नाम विज्ञान के क्षेत्र में सुनहरी अक्षरों में होगा।

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