एक बार की बात है गौतम बुद्ध किसी नगर में घूम रहे थे। तभी बुद्ध ने सुना कि उस नगर में रहने वाले कुछ लोग बुद्ध को बुरा-भला कह रहे हैं और बद्दुआएं दे रहे हैं। (Motivational Story) दरअसल, उस नगर में रहने वाले बुद्ध के कुछ विरोधियों ने आम नागरिकों के मन में यह बात बिठा दी थी कि गौतम बुद्ध एक ढोंगी व्यक्ति हैं और ये उनके धर्म को भ्रष्ट कर रहे हैं। इस वजह से उस नगर में रहने वाले लोग बुद्ध को पसंद नहीं करते थे और उनको अपना दुश्मन मानते थे। गौतम बुद्ध ने जब नगरवासियों के इन उलाहनों को सुना तो वे एक कोने में शांति से खड़े हो गए और उनकी बुरी बातों को आराम से सुनते रहे। बुद्ध ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।
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कुछ देर बाद जब नगरवासी उन्हें बुरा-भला कहते थक गए और चुप हो गए तो गौतम बुद्ध ने उन नगरवासियों से कहा, क्षमा चाहता हूं लेकिन अगर आप लोगों की बातें खत्म हो गई हों तो मैं यहां से जाऊं? यह सुनकर उनको बुरा कहने वाले लोग बहुत आश्चर्यचकित हुए। तभी वहां मौजूद लोगों में से एक व्यक्ति बोला, ‘हम लोग तुम्हारा गुणगान नहीं कर रहे हैं, तुमको उलाहने दे रहे हैं और तुम्हें बुरा बोल रहे हैं, क्या तुम पर इन बातों का कोई असर नहीं हो रहा?’ उस व्यक्ति की बात का जवाब देते हुए गौतम बुद्ध ने कहा, आप सब चाहें मुझे कितना भी भला-बुरा कहें, मैं इन्हें खुद पर नहीं लूंगा क्योंकि मैं जानता हूं कि मैं कुछ गलत नहीं कर रहा, इसलिए इन बातों को जब तक मैं स्वीकार नहीं करता, तब तक इनका मुझ पर कोई असर नहीं पड़ सकता।
गौतम बुद्ध ने आगे कहा, जब मैं इन बुराइयों को अपने ऊपर लूंगा ही नहीं तो ये निश्चित तौर पर आपके पास ही रह जाएंगी और मुझ पर असर नहीं करेंगी। (Motivational Story) गौतम बुद्ध का ये प्रेरक प्रसंग हमें यह शिक्षा देता है और इस बात के लिए प्रेरित करता है कि जब आप गलत नहीं हैं तो किसी की गलत और निगेटिव बातों का असर कभी भी खुद पर न लें, क्योंकि इससे आप अपने ही दुखों की वजह स्वयं बन सकते हैं।