डोनाल्ड ट्रम्प हमारे लिए न केवल एक मित्र के तौर पर खडेÞ रहे बल्कि हर संकट और हर विपरीत परिस्थिति में भी भारत के साथ सहयोग किया, भारत का समर्थन किया, इसके साथ ही साथ अमेरिका में भारत की समझ को समृद्ध किया और अमेरिकियों को यह बताया कि बदलता हुआ भारत अमेरिका के हितों के लिए बहुत ही जरूरी है। यह अलग बात है कि देश में आतंकी, मजहबी और अति-रक्तरंजित मानवाधिकार की सोच रखने वाले बुद्धिजीवी, राजनीतिज्ञ, कूटनीतिज्ञ और समूह सिर्फ और सिर्फ नकरात्मक सोच रख कर डोनाल्ड ट्रम्प को खलनायक बना कर दिखाने का काम करते रहे हैं। उन्हें इन तथ्यों पर ध्यान देना चाहिए, इन तथ्यों पर निष्पक्ष और भारत हित की कसौटी पर मूल्यांकन, समीक्षा और पड़ताल करना चाहिए।
डोनाल्ड ट्रम्प ने अपनी अंतिम समय में अपनी दुर्गति खुद करायी। डोनाल्ड ट्रम्प के अंतिम समय की मूर्खता का कोई लोकतांत्रिक व्यक्ति समर्थन नहीं कर सकता है, उन पर लोकतांत्रिक मूल्यों के हनन और लोकतांत्रिक ढाचे पर हिंसा के प्रेरित दोष का आरोप है और इस आरोप से डोनाल्ड ट्रम्प जीवन भर मुक्त नही हो सकते हैं। अंतिम समय की करतूत और मूर्खता को छोड़ दिया जाये तो फिर डोनाल्ड ट्रम्प के सभी कार्यो को बुरा नहीं कहा जा सकता है, उनके सभी कार्यो को खारिज नहीं किया जा सकता है। डोनाल्ड ट्रम्प के बहुत ऐसे कार्य हैं जो न केवल अमेरिकी हितों के लिए जरूरी और प्रबलकारी थे बल्कि दुनिया की शांति और सदभाव के लिए भी बहुत जरूरी थे, कई पीड़ित देश भी थे जो अमेरिका की पूर्व शासकों की नासमझ दृष्टिकोण और अति-कथित मानवाधिकार संरक्षण की करतूत के शिकार थे, उन देशों को जरूर राहत मिली, उन्हें अपने दुश्मनों को नियंत्रित करने और उन पर विजयी हासिल करने में सफलता मिली।
ऐसी कई अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं हैं जो दुनिया के गरीब और संघर्षरत देशों के हितों को लांक्षित करते हैं, बदनाम करते हैं, आर्थिक रूप से नुकसान पहुंचाते हैं और चीन-रूस जैसे अराजक और नये उपनिवेशिक मानसिकता के उदाहरणों की पैरवी करते हैं, उनके प्रवक्ता बन बैठे होते हैं को डोनाल्ड ट्रम्प ने न केवल बेपर्द किया, आर्थिक तौर पर दंडित भी किया बल्कि आईना भी दिखाया। वैसे मजहबी समुदाय को भी ललकारा, प्रतिबंध जैसे कदमों से संदेश दिया जो न केवल अराजक हैं, हिंसक हंै बल्कि भस्मासुर बन कर शरण देने वाले देशों को लहूलुहान करते हैं, आतंकवादी हिंसा से पीड़ित करते हैं। आतंकवादी हिंसा के लिए जिम्मेदार मजहब को उन्होंने सरेआम निंदा कर दंडित भी किया।
क्या यह सही नहीं है कि धारा 370 को समाप्त करने की भारत की कार्रवाई का समर्थन डोनाल्ड ट्रम्प ने किया था, क्या यह सही नहीं है कि डोनाल्ड ट्रम्प ने धारा 370 की समाप्ति को भारत का आतंरिक विषय बताया था? क्या यह सही नहीं है कि सीएए जिसके खिलाफ भारत का एक मजहबी समूह आंदोलन ही नहीं दंगे की करतूत पर सक्रिय था को भारत का आतंरिक विषय बता कर समर्थन किया था? क्या यह सही नहीं है कि डोनाल्ड ट्रम्प ने कश्मीर के प्रश्न पर पाकिस्तान के प्रोपेगंडा का खारिज किया था? क्या यह सच नहीं है कि डोनाल्ड ट्रम्प ने पाकिस्तान की आतंकवादी हिंसक सोच की गर्दन पकड़ कर रखी थी?
ध्यान यह रखना चाहिए कि हमारे पास वीटो का अधिकार नहीं है। हमारे पास वीटो का अधिकार नहीं रहने के कारण हम संयुक्त राष्ट्रसंघ में अपने हितों का न तो संरक्षण कर सकते हैं और न ही दुश्मन देशों के प्रोपगंडा को खारिज कर सकते हैं। हमारे दुश्मन देश चीन के पास वीटो का अधिकार है। पाकिस्तान का चीन मित्र है, यह कौन नहीं जानता है? पाकिस्तान की हर आतंकवादी कार्रवाइयों और अतंराष्ट्रीय प्रोपगंडा का चीन समर्थन करते रहा है। कभी सोवियत संघ के वीटो के सहारे हम पाकिस्तान के खिलाफ लड़ते रहे थे। आधुनिक रूस ब्लैकमैलिंग की नीति पर चलता है। ऐसे में संयुक्त राष्ट्रसंघ में हम हमेशा वीटोधारी अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस की ओर मुंह ताकते हैं। थोडे देर के लिए यह समझिये कि संयुक्त राष्ट्र संघ में धारा 370 के खिलाफ लाये गये पाकिस्तान के प्रोपगेंडा प्रस्तावों को अमेरिका समर्थन कर देता तो फिर भारत के सामने कैसी विपरीत परिस्थिति होती, यह कल्पना की जा सकती है।
भारत को संयुक्त राष्ट्रसंघ के प्रतिबंधों का सामना करना पड़ता, भारत को धारा 370 पर फिर से विचार करना पड़ता। चीन के सहयोग से कई बार पाकिस्तान ने धारा 370 हटाने के खिलाफ प्रस्ताव लाया था। कश्मीर पर जब पाकिस्तान अमेरिका की ओर देखने की कोशिश करता था तब डोनाल्ड ट्रम्प ने झिड़की पर झिड़की पिलायी। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान दंडवत करते रहे पर डोनाल्ड ट्रम्प ने खूब तरसाया, मुलाकात की अवसर तो दिया पर डोनाल्ड ट्रम्प ने अपनी भारत नीति नहीं बदली। अगर डोनाल्ड ट्रम्प ने पाकिस्तान की आतंकवादी नीति की गर्दन जोर से पकड़ कर नहीं रखी होती तो फिर पाकिस्तान परस्त आतंकवाद का भारत पूर्व की तरह ही आसान शिकार बना होता। सबसे बड़ी भारत की उपलब्धि अमेरिकी समझ को प्रतिकूल बनाने की है। पहले अमेरिकियों की भारत के प्रति उतनी सकारात्मक सोच नहीं थी जितनी सकारात्मक सोच डोनाल्ड ट्रम्प के कार्यकाल में विकसित हुई।
अमेरिकियों की समझ बढ़ी कि भारतीय मूल के लोग संप्रभुत्ता हंता नहीं है, भारतीय मूल के लोग भस्ममासुर नहीं है, अन्य मजहबी समूहों की तरह हिन्दुत्व में विश्वास करने वाले भारतीय मूल के लोग हिंसक नहीं है, भारतीय मूल के लोग अनपढ़, गंवार और हिंसक नहीं हैं, भारतीय मूल के लोग ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ दखल रखने वाले लोग हैं, भारतीय मूल के लोग अमेरिका के विकास और उन्नति में सर्वश्रेष्ठ भूमिका निभा रहे हैं। ऐसी समझ निश्चित तौर पर डोनाल्ड ट्रम्प की सकारात्मक सोच की उपज मानी जानी चाहिए।
याद कीजिये मोदी के अमेरिका में भारतीय मूल के लोगों को संबोधित करने के कार्यक्रम को। ‘हाउडी मोदी ’ कार्यक्रम में कोई एक-दो हजार नहीं बल्कि 50 हजार से अधिक भारतीय मूल के लोगों की भीड़ जमा हुई थी, हयूस्टन शहर का वह स्टेडियम खचा खच भरा हुआ था, पैर रखने की जगह नहीं थी, हजारों भारतीय मूल के लोग जगह नहीं होने के कारण शामिल होने से वंचित हो गये थे। ‘हाउडी मोदी’ कार्यक्रम में डोनाल्ड ट्रम्प ने उपस्थित होकर भारत का गान किया था, मोदी को दुनिया का सर्वश्रेष्ठ शासक और अमेरिका ‘मित्र बताया था। फिर डोनाल्ड ट्रम्प ने भारत आकर अहमदाबाद में भी भारत का गान करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी।
अरब जगत की इजरायल के प्रति सोच को उन्होंने रातोरात बदल कर रख दिया। अरब जगत इज्ररायल को अछूत ही मानते थे, इजरायल के साथ कोई कूटनीति संबंध नहीं रखते थे। डोनाल्ड ट्रम्प की वीरता का सुखद परिणाम है कि आज कई अरब देशों का कूटनीतिक संबंध इजरायल के साथ कायम हो चुका है। सउदी अरब भी ईरान के निशाने पर रहा है। निश्चित तौर पर डोनाल्ड ट्रम्प के कार्यकाल में भारत को अपने अंतर्राष्ट्रीय सामरिक, आर्थिक, कूटनीतिक शक्ति और वर्चस्व को बढ़ाने का अवसर मिला है, इसके साथ ही साथ चीन और पाकिस्तान जैसे दुश्मनों को भी नियंत्रित करने में भारत को अवसर प्राप्त हुआ है। उपर्युक्त मूल्यांकन के आधार पर डोनाल्ड ट्रम्प हमारे लिए तो मित्र के रूप में खडे रहे थे।
-विष्णुगुप्त
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