डोााल्ड ट्रंप प्रशासन ने हाल ही में पाकिस्तान को चेतावनी दी है कि 26/11 को मुंबई में हुए आतंकवादी (Donald Trump and India-Pak relations )हमलों के दोषी लोगों को दंड़ित करे। इन हमलों में छह अमरीकियों सहित 166 निर्दोष लोगों की मौत हुई थी और अनेक लोग घायल हुए थे। ट्रंप प्रशासन ने इस अपराध के दोषियों को गिरफ्तार करने हेतु सूचना देने वाले या सहायता देने वाले लोगों को न्याय कार्यक्रम के लिए पुरस्कार योजना के अंतर्गत 5 मिलियन डालर के भुगतान की घोषणा भी की है। सभी जानते हैं कि इस हमले में हत्यारे नाव के द्वारा पाकिस्तान से आए थे और उन्हें उनके आका पाकिस्तान में बैठकर फोन से निर्देश दे रहे थे। अमरीकी विदेश मंत्री माइक पोंपियो ने पाकिस्तान को कड़ा संदेश देते हुए कहा यह पीड़ितों के परिवारों के साथ अन्याय है कि मुंबई हमले के दस वर्ष बाद भी इस हमले में शामिल लश्कर-ए-तैयबा और उसके सहयोगियों को दोषी नहीं ठहराया गया है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपतियों के विपरीत राष्ट्रपति ट्रंप ने पाकिस्तान के विरुद्ध कठोर कार्रवाई की है। वे आतंकवाद के बारे में पाकिस्तान के दोगले रूख के बारे में ट्वीट करते रहते हैं।
उन्होने कहा पाकिस्तान झूठ और धोखे के अलावा कुछ नहीं देता है और उन्होंने पाकिस्तान को दी जाने वाली 300 मिलियन ड़ालर की सैनिक सहायता निलंबित कर दी। 19 नवंबर 2017 को उन्होंने ट्वीट किया था हम अब पाकिस्तान को करोड़ों डालर नहीं देंगे क्योंकि वे हमारा पैसा लेंगे अैर बिन लादेन तथा अफगानिस्तान आदि की तरह हमारे लिए कुछ नहीं करेंगे। हमने उन्हें प्रति वर्ष 1.3 बिलियन डालर दिए किंतु उन्होंने हमारे लिए कुछ नहीं किया। ट्रंप प्रशासन ने पाकिस्तान पर आरोप लगाया है कि वह अफगानिस्तान और भारत के विरुद्ध जिहादी समूहों को संरक्षण दे रहे हैं।
यही नहीं अमरीका की सहायता से पाकिस्तान को फाइनेंसियल एक्शन टास्क फोर्स की सूची में डाला गया है जिसके अंतर्गत आतंकवाद को प्रायोजित करने के आरोपी देश को अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों से सहायता नहीं मिलती है। इससे पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था लड़खड़ा गयी है। पाकिस्तान की राजनीति और सेना को अमरीका पैसा देता है। अमरीका ने इस सहायता को बंद कर दिया है और पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था लड़खड़ा गई है और वह सहायता के लिए अन्य देशों का मुंह ताक रहा है। चीन ने भी पाकिस्तान को दी जा रही सहायता को सीमित कर दिया है जिससे पाकिस्तान और चीन के संबंधों में भी कड़वाहट के संकेत दिखायी देने लगे हैं। हाल ही में बलूच लिबरेशन आर्मी ने चीनी वाणिज्य दूतावास पर हमला किया और पाकिस्तान अब हताश है। अमरीका की कठोर कार्यवाही के बाद पाकिस्तान आतंकवाद के बारे में पुनर्विचार करने के लिए बाध्य होगा।
अमरीका के कदमों से भारत को दूसरा लाभ यह मिला कि अमरीका ने चीन पर आर्थिक दृष्टि से अंकुश लगाया है और उसके सैन्य विस्तारवाद को सीमित किया है। भारत चीन पर अकेले दम पर अंकुश नहीं लगा सकता है और यदि अमरीका चीन पर अंकुश लगा देता है तो यह भारत के लिए अच्छा होगा क्योंकि चीन निरंतर भारत को घेर रहा है। टंÑप प्रशासन ने चीन को अपना सबसे बड़ा भू-सामरिक मुद्दा माना है। वह चीन को सबसे बड़ा दीर्घकालिक खतरा मानता है। चीन में शी जिनपिंग के नेतृत्व को स्थायित्व मिलने के बाद चीन अधिक साम्यवादी, दमनकारी और विस्तारवादी बन गया है।
चीनी अर्थव्यवस्था बाजार अर्थव्यवस्था के स्थान पर नियंत्रित अर्थव्यवस्था बन गयी है। अमरीका का मानना है कि चीन उनकी प्रौद्योगिकी की चोरी करता है, बौद्धिक संपदा के रूप में अरबों ड़ालर की चोरी करता है। ट्रंप ने घोषणा की कि जब से चीन विश्व व्यापार संगठन में शामिल हुआ अमरीका में 70 हजार फैक्टरियां बंद हो गयी हैं। अमरीका की उदार व्यापारिक नीति का अनुचित लाभ चीन ने उठाया और इसे ट्रंप एट वार नामक फिल्म में बखूबी दशार्या गया है। अमरीका जानता है कि चीन दक्षिण चीन सागर और हिन्द महासागर के कुछ हिस्सों का सैन्यकरण कर रहा है। दक्षिणी चीन सागर से प्रति वर्ष लगभग 5 ट्रिलयन डालर का व्यापार होता है। चीन ने अपनी 500 नौकाओं को सैनिक नौकाओं में बदल दिया है और उन्हें दक्षिण चीन सागर में छोड़ दिया है।
माउत्से तुंग की तरह शी जिनपिंग भी अपना असली रंग दिखाने लगे हैं। वे भी एक अबोध व्यक्ति की तरह नेतृत्व में आग बढे किंतु अब महत्वाकांक्षाएं सामने आने लगी हैं। उन्होंने चीन को पुलिस राज्य में बदल दिया है। अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति चीन की व्यापारिक और सैनिक महत्वाकांक्षाओं को नहीं समझ पाए और उनका मानना था कि चीन के साथ सामान्य व्यापार से उसके व्यवहार में बदलाव आएगा किंतु वे गलत साबित हुए और ट्रंप ऐसे पहले राष्ट्रपति हैं जिन्होंने चीन से खतरे को स्वीकार किया। अब अमरीकी मानते हैं कि चीन यह मानने लगा है कि भविष्य उसका है और वे अमरीका को पीछे छोड़ने की दौड़ में शामिल है। चीन का मानना है कि अमरीका पतनोन्मुखी शक्ति है और स्वतंत्र लोग तथा पूंजीाद विफल होगा।
चीन अमरीका से बड़ी शक्ति बनना चाहता है। वह दक्षिण एशिया मे भारत तथा अन्य शक्तियों को घेर रहा है। वह ऐसी परियोजनओं के लिए पैसा उधार दे रहा है जिनकी आवश्यकता ही नहीं है और इससे ऋण लेने वाले देश ऋण जाल में फंस रहे हैं। चीन के पास तेल नहीं है इसलिए वह मध्य-पूर्व में पैर जमाने की कोशिश कर रहा है। चीन अन्य देशों के भूभाग पर दावा करने वाला एकमात्र देश है और आज वह अनेक दशों के लिए खतरा बन गया है तथा केवल अमरीका ही उसका मुकाबला करने के लिए गंभीर है। भारत की विदेश नीति के जानकार कुछ लोगों का कहना है कि अमरीका द्वारा चीन पर अंकुश लगाने का कारण स्वयं को विश्व की एकमात्र महाशक्ति के रूप में स्थापित करना है। ऐसा हो सकता है किंतु इससे भारत को लाभ नहीं होगा। अतीत में चीन भारत के विरुद्ध युद्ध कर चुका है और हाल के वर्षों में ड़ोकलाम सहित दोनों देशों के बीच छिटपुट सैनिक झड़पें हुई हैं।
भारत को खतरा पैदा करने वाली धुरी चीन और पाकिस्तान के प्रति अमरीका के टकराव की नीति से ट्रंप भारत का सर्वोत्तम मित्र बन गया है। भारत सरकार और प्रधानमंत्री मोदी अमरीका के घनिष्ठ सहयोगियों इजराइल और जापान के साथ घनष्ठि मैत्री बनाने में सफल हुए हैं। अभी वे ट्रंप को उतना प्रभावित नहीं कर पाए हैं। समय आ गया है कि भारत अपनी सुरक्षा के लिए टंज्प के योगदान को स्वीकार करे चाहे वह योगदान परोक्ष रूप से ही क्यों न किया गया हो। टंज्प एक व्यवसायी हैं और वह अमरीका के हितों को सर्वोपरि रखते हैं। मोदी भी गुजराती हैं जिनके खून में व्यवसाय है। इसलिए वे ट्रंप के साथ अच्छा तालमेल बना सकते हैं और मोदी की व्यावसायिक प्राथमिकताएं भारत की सुरक्षा और समृद्धि होनी चाहिए। भारत द्वारा रूस से एस 400 खरीद समझौता करने के बाद उसे लगा कि टंज्प प्रशासन भारत पर प्रतिबंध लगा सकता है। उदाहरण के लिए ट्रंप ने गणतंत्र दिवस समारोह में मुख्य अतिथि होने का भारत का निमंत्रण अस्वीकार किया। भारत को अमरीका को विश्वास दिलाना चाहिए था कि यह सौदा उसके लिए अत्यावश्यक है। तथापि भारत रूस के साथ इस सौदे का विकल्प तलाश कर सकता था और अलग सुरक्षा रणनीति अपना सकता था। कुल मिलाकर भारत को अपने दीर्घकालिक सुरक्षा हितों के बारे में पुनर्विचार करना चाहिए और इस बारे में अमरीका से खुलकर बातचीत करनी चाहिए।
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