इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के आह्वान पर देश के एलोपैथी चिकित्सकों ने 12 घंटों की हड़ताल की। एलोपैथी चिकित्सकों ने आयुर्वेदिक डॉक्टरों को 58 प्रकार की सर्जरी करने की अनुमति देने के खिलाफ यह हड़ताल की। उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में मरीजों को हड़ताल के कारण भारी समस्याओं से जूझना पड़ा। यह बेहद दुख की बात है कि कई अस्पताल, जहां ओपीडी के लिए सैकड़ों मरीज कतार में लगे थे डॉक्टर नेता ने ओपीडी बंद करवाई और मरीज निराश होकर वापिस लौट गए। भले ही एलोपैथी चिकित्सकों का कोई भी तर्क हो लेकिन कोविड -19 महामारी के दौर में हड़ताल करना, उन मरीजों के प्रति असंवेदनशीलता है जो अस्पतालों में जिंदगी और मौत की लड़ाई लड़ रहे हैं।
जब अस्पतालों में ओपीडी ही नहीं होगी तब कोविड के कारण सांस लेने में जिन मरीजों को तकलीफ हो रही है, वह कहां जाएंगे। यह कहना भी गलत नहीं होगा कि विगत नौ माह से एलोपैथी डॉक्टरों और पैरामेडिकल स्टाफ के समर्पण, लग्न व इंसानियत की भावना का ही परिणाम है कि कोरोना पीड़ित लाखों मरीज स्वस्थ होकर अपने घरों को लौट रहे हैं। मृत्यु दर के मामले में हमारे देश का रिकार्ड अमेरिका जैसे देशों की अपेक्षा कहीं बेहतर है। सेवाओं के दौरान कई चिकित्सकों व पैरा-मेडिकल स्टाफ ने अपनी जान गंवा दी। इन परिस्थितियों में चिकित्सकों को अपनी मांगों को लेकर हड़ताल की रणनीति को बदलने की आवश्यकता थी। सामान्य दिनों में सभी समस्याओं व मुद्दों पर मंथन कर समाधान निकाला जा सकता है, तब भी मुकम्मल हड़ताल की आवश्यकता नहीं।
यह भी तथ्य है कि राज्य सरकारों ने कोविड-19 महामारी के दौरान नए चिकित्सकों की भर्ती की, जो निरंतर जारी है। आज भी देश में जरूरत के अनुसार चिकित्सक नहीं हैं, तो ऐसे में महामारी के दौर में हड़ताल से हालात किस तरह के होंगे इसका अंदाजा लगाना कठिन नहीं। एक घंटें की हड़ताल भी मरीजों पर भारी पड़ सकती है। चिकित्सा एक पवित्र पेशा है जिसे बरकरार रखने के लिए हड़ताल व धरने-प्रदर्शनों से बचा जाना चाहिए। फिलहाल कोरोना बीमारी लाइलाज है और वैक्सीन इसी माह में आने की उम्मीद दिख रही है, तब कहीं जाकर राहत मिलेगी। केंद्र सरकार को भी इस मामले में संज्ञान लेने की आवश्यकता है, ताकि हड़ताल की स्थिति पैदा ही न हो। संकट में स्वास्थ्य सेवाओं को रोकना उचित नहीं।
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