विधेयक को दोबारा पेश नहीं करने की मांग, मुख्यमंत्री के नाम जिला कलक्टर को सौंपा ज्ञापन
हनुमानगढ़। (सच कहूँ न्यूज) प्रस्तावित राइट टू हेल्थ विधेयक को दोबारा पेश नहीं करने और न ही विधानसभा में पारित करने की मांग को लेकर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन व संयुक्त संघर्ष समिति के बैनर तले चिकित्सकों ने बुधवार को मुख्यमंत्री के नाम जिला कलक्टर रुक्मणि रियार सिहाग को ज्ञापन सौंपा। इस मौके पर आईएमए अध्यक्ष डॉ. भवानीसिंह ऐरन ने बताया कि राजस्थान सरकार ने विधानसभा में स्वास्थ्य का अधिकार विधेयक प्रस्तुत किया है, जो विधानसभा के कई सदस्यों, चिकित्सकों और जनता की ओर से आपत्तियों और आलोचना के कारण समीक्षा के लिए प्रवर समिति को भेजा गया है।
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राज्य सरकार ने स्वास्थ्य के इस अधिकार विधेयक पर डॉक्टरों से आपत्तियां दर्ज करने को कहा है। इसके बाद राज्य सरकार इस विधेयक को फिर से पेश करने और इसे विधानसभा से पारित कराने की योजना बना रही है। डॉ. ऐरन के अनुसार इस प्रस्तावित विधेयक में बहुत सी ऐसी खामियां हैं जिनके चलते राज्य के सभी चिकित्सक एवं अस्पताल इसका विरोध कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि राज्य की जनता को गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध करवाना राज्य सरकार का दायित्व है। राज्य सरकार ऐसी स्वास्थ्य सेवाओं को उपलब्ध करवाने में पूर्णत: सक्षम भी है लेकिन इस बिल के माध्यम से सरकार निजी अस्पतालों से बिना एमरजेंसी को परिभाषित किए एमरजेंसी के नाम पर नि:शुल्क सेवाएं लेना चाहती है।
किसी भी अन्य उद्यम, व्यवसाय, उद्योग अथवा व्यापार की तरह निजी अस्पतालों को अपने स्तर पर ही संसाधन जुटाने होते हैं तथा बिना संसाधनों के कोई भी व्यवसाय अनिश्चित काल तक निशुल्क सेवाएं नहीं दे सकता। ऐसी स्थिति में निजी अस्पतालों को भविष्य में गंभीर आर्थिक संकट का सामना करना पड़ सकता है। बहुत से निजी अस्पताल जो पहले ही गम्भीर आर्थिक संकट से गुजर रहे हैं। इस अतिरिक्त बोझ के कारण बंद हो सकते हैं। इसका खामियाजा अंतत: राज्य की जनता को ही उठाना होगा। डॉ. ऐरन ने बताया कि संयुक्त संघर्ष समिति की मांग है कि जिस तरह राज्य में खाद्य सुरक्षा अधिनियम एवं राइट टू एजुकेशन को लागू करते समय होटल्स, रेस्टोरेंट्स एवं निजी शिक्षण संस्थाओं को निशुल्क भोजन अथवा निशुल्क शिक्षा के लिए बाध्य नहीं किया गया था
उसी तरह राज्य के नागरिकों को स्वास्थ्य का अधिकार देते समय चिकित्सकों व निजी अस्पतालों को निशुल्क सेवाओं के लिए बाध्य न किया जाए। राजकीय अस्पतालों की गुणवत्ता में सुधार किया जाए, आवश्यकतानुसार और अधिक चिकित्सकों व स्वास्थ्य कर्मियों की भर्ती की जाए ताकि राज्य की जनता को राजकीय अस्पतालों में और अच्छी सेवाएं उपलब्ध हों। डॉ. ऐरन ने कहा कि इन तथ्यों से यह स्पष्ट है कि यह केवल एक सतही कानून है जो व्यवहारिक रूप से स्वास्थ्य के संदर्भ में सुरक्षा प्रदान नहीं करता है। यह कानून राज्य के निवासियों के लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं और स्वास्थ्य के निर्धारकों में सुधार के इरादे के बिना (अनुचित नियमों को लागू कर) निजी स्वास्थ्य देखभाल प्रदाताओं को दबाने, नियंत्रित करने और विनियमित करने के लिए तैयार किया गया है।
यह कानून स्वास्थ्य देखभाल स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं से परामर्श किए बिना एकतरफा प्रस्तावित किया जा रहा है। इस बिल का राजस्थान राज्य में गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं के गिरावट और गायब होने का दीर्घकालिक प्रभाव होगा। डॉक्टर-रोगी संबंध और इसके सामंजस्य का गहरा प्रभाव पड़ेगा और अंतत: आम जनता को नुकसान होगा। उन्होंने सरकार से मांग की कि प्रस्तावित राइट टू हेल्थ विधेयक को दोबारा पेश नहीं किया जाना चाहिए। न ही विधानसभा में पारित किया जाना चाहिए। इस मौके पर पूर्व पीएमओ डॉ. एमपी शर्मा सहित आईएमए से जुड़े कई चिकित्सक मौजूद थे।