सरसा। पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां फरमाते हैं कि मालिक का प्यार उसकी मोहब्बत इन्सान को वो निगाह बख्शती है कि इस मृत्यु लोक में रहता हुआ भी वो सचखंड निजधाम के नजारे लेने शुरू कर सकता है। मालिक के प्यार मोहब्बत में वो नशा होता है, इन्सान एक बार हरि रश रूपी नशे को चख ले तो ये नशा सारे दु:ख दर्द गम बीमारियों को जड़ से खत्म कर देता है और अंदर बाहर से खुशियों से लवरेज रखता है।
सेवा करो
पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि इश्क कमाना बड़ा मुश्किल होता है, खास करके हकीकी इश्क, एक होता है मजाजी और एक हकीकी, मजाजी इश्क जो जिस्मों का सौदा होता है। ज्यादातर या दुनियादारी में इन्सान का इन्सान से, पशु का पशु से वो जो इश्क है मजाजी है पर आत्मा का परमात्मा का से जो इश्क होता है वो हकीकी इश्कत होता है। हकीकत में वास्तव में वो ऐसा इश्क है जिसको लग जाता है उसका तो क्या, परिवार का तो क्या गुजरी हुई और आने वाली कुलो का उद्धार कर देता है। पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि सुमिरन करो, मालिक पे छोड़ दो, अच्छे कर्म सेवा करो, सुमिरन करो और सबका भला मांगते रहो, मालिक बिना कहे आपके अपनो का भला करता चला जाएगा।
हमेशा दूसरों में गुण देखें
इन्सान को किसी को कड़वा, बुरा नहीं बोलना चाहिए बल्कि अपने अंदर की बुराइयों को देखना चाहिए। इन्सान दूसरों के अंदर जो कुछ देखता है वह खुद ग्रहण कर जाता है। इसलिए अगर आप दूसरों की बुराइयां देखोगे तो आपके अंदर बुराइयां आ जाएंगी और गुण देखोगे तो आपके अंदर भी गुण आ जाएंगे। इसलिए दूसरों में हमेशा गुण देखने चाहिए। उक्त वचन पूज्य हजूर पिता संत गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने बुधवार शाम की रूहानी मजलिस के दौरान फरमाए।
पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि हर इन्सान के अंदर कोई न कोई गुण होता है। बस, आप उन गुणों पर निगाह रखो तो आप गुणवान बन जाएंगे और मालिक के प्यारे बन जाएंगे। इन्सान को कभी भी किसी का बुरा नहीं करना चाहिए। कभी भी किसी की निंदा-चुगली, बुराई नहीं गानी चाहिए क्योंकि दूसरों की गाई गई बुराई इन्सान को गुमराह कर देती है। इन्सान खुद की बुराइयां छोड़ दे तो उसके अंत:करण में मालिक का नूर, ज्योति जल जाती है
और वह इन्सान मालिक के दर्श-दीदार के काबिल बन जाता है। आप जी ने फरमाया कि आपसे जितना हो सके, उतना ही सुमिरन करो। नाम का खजाना ऐसा खजाना है जिसे भरने के बाद जितना खर्चोगे उतना ही बढ़ता चला जाता है। एक बार अपने अंत:करण में चढ़ाई करनी पड़ती है, फिर जैसे ही मालिक के दर्श-दीदार होते हैं तो हमेशा के लिए उस पर दया-मेहर, रहमत बरसती रहती है। बाकी रुपयों-पैसों के खजाने का कोई न कोई डर इन्सान को लगा रहता है लेकिन राम का खजाना ऐसा है जिसे चोर चुरा नहीं सकता, हवा उड़ा नहीं सकती, पानी डुबो नहीं सकता, धरती गला-सड़ा नहीं सकती और चिता की अग्नि भी जला नहीं सकती। राम-नाम के धन को जितना इस जन्म में कमाओगे, उतना ही यह जीवन खुशियों से लबरेज हो जाएगा और आगे आत्मा का रास्ता साफ हो जाएगा।
आप जी ने फरमाया कि संत, पीर-फकीर कहते हैं कि सुमिरन करो, सुमिरन के बिना बात नहीं बनती और सुमिरन है तो सब कुछ है। अगर आदमी सुमिरन नहीं करता तो उसके मन का कोई भरोसा नहीं कि कब दगा दे जाए। मन इन्सान को बहका देता है और जैसे-जैसे इन्सान की आयु बढ़ती है तो आदमी काम-वासना, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, मन-माया रूपी आग में सड़ता रहता है। इसलिए मन से लड़ना है तो सुमिरन करना जरूरी है और सुमिरन करने से ही मन रूकता है। इसलिए मालिक का नाम जपो और मालिक की बनाई सृष्टि से नि:स्वार्थ भावना से प्यार करो।
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