सच कहूँ/राजू, ओढां। कैंसर(Cancer) को लाईलाज बीमारी कहा जाता है। लोग इसका नाम लेना भी ठीक नहीं समझते। इस बीमारी से पीड़ित व्यक्ति जहां स्वयं शारीरिक दु:ख भोगता है तो वहीं कई बार उसके परिजन भी आर्थिक रूप से काफी पिछड़ जाते हैं। अगर आंकड़ों पर गौर की जाए तो पिछले कुछ वर्षों से इस लाईलाज बीमारी से पीड़ितों का ग्राफ बढ़ा है। अनेक पीड़ित तो इस बीमारी से जूझकर मृत्यु का शिकार हो गए, लेकिन काफी लोग ऐसे भी हैं जिन्होंने विकट परिस्थितियों में हौंसला न खोते हुए इस लाईलाज बीमारी को मात दे दी। विश्व कैंसर दिवस पर जब उक्त लोगों से संवाददाता राजू ओढां ने बातचीत की तो पीड़ित गुजरे हुए उस खौफनाक दौर में वापस चले गए। उन्होंने कहा कि वो समय काफी कष्टदायक व बुरा था।
मेरी उम्र करीब 66 वर्ष है। कुछ वर्ष पूर्व मुझे गले में कुछ परेशानी महसूस हुई। जांच करवाई तो पता चला कि मुझे गले का कैंसर है और वो भी दूसरी स्टेज का। मैंने उपचार के साथ-साथ हौंसले को ढाल बनाया। हौंसले व दवा के चलते मैंने करीब 3 माह में इस बीमारी को मात दे दी। इन विकट परिस्थितियों में मुझे काफी शारीरिक परेशानियां को झेलना पड़ा।
छाजूराम साईं, नुहियांवाली।
मेरी उम्र करीब 60 वर्ष है। बीकानेर में जांच के दौरान मुझे कैंसर(Cancer) बता दिया गया। ये बीमारी उस समय प्रथम स्टेज की थी। हालांकि मेरे परिवार के सारे लोग चिंतित हो गए थे, लेकिन उल्टा मैंने उन्हें हौसला देते हुए कहा कि जिंदगी और मौत ईश्वर के हाथ में है। जो होना है, उसे कोई नहीं रोक सकता। इस विकट परिस्थिति में मेरे परिवार ने मेरा बहुत साथ दिया। मैंने करीब 2 माह तक अस्पताल में रहकर उपचार करवाया। इस दौरान मैं अन्य पीड़ितों को भी गांव में जा-जाकर हौंसला देती रही। 6 माह के उपचार के बाद अब मैं बिल्कुल स्वस्थ हूं। रेशमी देवी, नुहियांवाली।
मेरी उम्र 51 वर्ष है। पानी पीते समय मुझे दांतों में काफी दर्द होता था। जब मैंने जांच करवाई तो मुझे बीमारी का पता चला। मैंने ईलाज के साथ-साथ सुबह की सैर व हौसले को ढाल बनाया और नियमित रूप से उपचार लिया। मुझे 2 माह तक अस्पताल में भी रहना पड़ा। 7 माह में मेरी रिपोर्ट बिल्कुल नॉर्मल आ गई। मैं पीड़ितों से यही कहना चाहूंगा कि विकट परिस्थितियों के सामने घुटने न टेकते हुए समय-समय पर जांच जरूर करवाते रहें। स्वास्थ्य के प्रति कोई कोताही न बरतें।
हरि सिंह साईं, नुहियांवाली।
मेरी उम्र 70 वर्ष है। मुझे छाती का कैंसर(Cancer) था। मैंने 2 माह तक हॉस्पिटल में रहकर उपचार करवाया। इस दौरान मुझे मेरे पति रूली सिंह का बहुत सहारा रहा। उन्होंने मुझे न केवल हौसला दिया अपितु विकट परिस्थितियों में मेरा साथ नहीं छोड़ा। अब मैं बिल्कुल स्वस्थ हूं। कई बार पीड़ित बीमारी का नाम सुनकर काफी डर जाते हैं और हौसला छोड़ देते हैं। ये बीमारी बस यही चाहती है। मैं यही कहना चाहूंगी कि हौसला न खोएं, समय पर उपचार करवाएं, परहेज जरूर रखें। सोना देवी, नुहियांवाली।
वर्ष 2014 में मुझे स्तन कैंसर(Cancer) हो गया था। बीमारी का पता चलते ही हमनेें समय नहीं गंवाया और उच्च संस्थान में जाकर ईलाज करवाया। मेरे पति सुरेश कुमार ने मुझे हौंसला दिया। इसी हौंसले की बदौलत मैं आज जीवित व स्वस्थ हूं। मुझे इस स्थिति से निकलने के लिए 6 माह लग गए थे। मैं समय-समय पर अपना चैकअप करवाती रहती हूं। मेरी रिपोर्ट बिल्कुल ठीक है।
सावित्री देवी, नुहियांवाली।
भठिंडा से कैंसर स्पेशेलिस्ट डॉ. संजीव बंसल बताते हैं कि कैंसर अब एक सामान्य सा रोग हो गया है। भारत में हर 10 लोगों में से 1 को कैंसर होने की संभावना है। ये बीमारी किसी भी उम्र में हो सकती है। परंतु यदि रोग का निदान व उपचार प्रारंभिक अवस्थाओं में किया जाए तो इसका पूर्ण उपचार संभव है। डॉ. बंसल के मुताबिक उनके पास कैंसर पीड़ितों की हर माह करीब 500 के आसपास ओपीडी होती है। 20 से 25 प्रतिशत मरीज तो समय पर उपचार करवाने व जागरूकता होने से ठीक हो जाते हैं।
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