प्रतिक्रिया एक ऐसा शब्द है जो जीवन भर हर कर्म और विचार में समाया रहता है। कर्मयोग की विभिन्न धाराओं और उपधाराओं में प्रतिक्रिया न हो तो कई सारे अच्छे-बुरे कामों को अपने आप विराम लग जाए। अधिकांश लोगों का हर कर्म प्रतिक्रिया जानने और करने के लिए हुआ करता है। प्रतिक्रिया का हमारे जीवन में कोई स्थान ही नहीं हो तो बहुत सारे फालतू के काम बच जाएं, खूब सारा पैसा बच जाए और अशांन्ति, अतृप्ति व असन्तोष का तो खात्मा ही हो जाए। हममें से अधिसंख्य लोग उन कामों को करते हैं जो किसी की नकल हुआ करते हैं अथवा औरों की देखा देखी।
हमारे प्रत्येक कर्म में अब आत्मा और आत्म शान्ति की बजाय पराये लोग और परायी प्रतिक्रिया ही मुख्य तत्व होकर रह गई है। हमारा अपना कुछ रहा ही नहीं, जो कुछ है वह औरों पर निर्भर है। हमारे जीवन की रोजमर्रा दिनचर्या ही दूसरों की प्रतिक्रिया और नजरों पर निर्भर रहने लगी है। हम वही सब कुछ करने में विश्वास रखते हैं जो कि औरों को अच्छा लगता है और तारीफ होती है। भले ही यह तारीफ हमें भरमाने के लिए सौ फीसद झूठी ही क्यों न हो। पर हम हैं कि अच्छाइयों और अच्छे कामों से खुश होने की बजाय हमारी झूठी वाहवाही और लोकप्रियता को ही जीवन का ध्येय मानकर चलने लगे हैं और हम उन्हीं कर्मों की धाराओं को अपनाने लगे हैं जिनमें हमारी वाहवाही और झूठ की प्रतिष्ठा हो। चंद लोग ही ऐसे हुआ करते हैं जिन्हें अपने काम से मतलब है, अपने कर्मयोग को उच्चतम शिखर प्रदान करने से ही सरोकार है। उन्हें इस बात से कोई मतलब नहीं है कि उनकी गतिविधियों या कर्मों की क्या और कैसी प्रतिक्रियाएं होंंगी अथवा हो रही हैं।
ये लोग अपने कर्म के प्रति निष्ठावान और समर्पित होते हैं और ऐसे लोगों का प्रत्येक कर्म या तो स्वयं की प्रसन्नता और सुकून के लिए होता है अथवा ईश्वरार्पण। ऐसे में इन लोगों पर अपने कर्म, व्यवहार और हलचलों के बारे में होने वाली प्रतिक्रियाओं का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। इन लोगों की हर हरकत के पीछे कोई न कोई प्रतिक्रिया उपजाने, सुनने या करने.कराने के भाव छिपे हुए होते हैं। प्रतिक्रियाओं पर और कोई ध्यान न भी दे तब भी ये अपने हर शुभाशुभ कर्म की प्रतिक्रिया जानना चाहते हैं और प्रतिक्रियाओं के स्वरूप तथा घनत्व के आधार पर ही इनके भावी कर्मों की बुनियाद टिकी हुई होती है।
इन लोगों के लिए यह कहा जाए कि इनका जन्म ही प्रतिक्रियाओें की प्राप्ति के लिए क्रियाओं को करने तथा प्रतिक्रियाओं को जानने भर के लिए ही हुआ है। तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। जीवन में कर्मयोग में सफलता पाने की कामना रखने वाले लोगों को चाहिए कि वे न कभी प्रतिक्रियाएं करें, न इन पर कोई ध्यान दें क्योंकि प्रतिक्रियाएं व्यक्ति को खोखला करती हैं और जो लोग प्रतिक्रियाओं के भरोसे चलते हैं वे जिन्दगी के महान लक्ष्यों से भटक कर रह जाते हैं प्रतिक्रियाओं के मकड़जाल में ही उलझ कर रह जाते हैं। जो इंसान किसी भी हुनर में दक्ष नहीं है, भौन्दू या मूर्ख है। परिश्रम से जी चुराता है, बिना मेहनत किए दुनिया का सारा वैभव पा लेने को उतावला है, अज्ञान और आसुरी वृत्तियों से परिपूर्ण है, जिनके पास कमाने-खाने और जीवन निर्वाह का कोई दूसरा हुनर नहीं है। उन सभी लोगों की पूरी की पूरी जिन्दगी प्रतिक्रियाओं में गुजरती है और ऐसे ही लोग समाज में अफवाही व्यक्तित्व और असामाजिक तत्वों के रूप में जाने-पहचाने जाते हैं और सामाजिक शान्ति और सद्भाव को बिगाड़ते हुए विध्वसंक की भूमिका में अपने आपको पाते हैं।
जो लोग प्रतिक्रियाएं करते हैं या प्रतिक्रियाओं को जानना करना या कराना चाहते हैं उन लोगों को यही अभीप्सित होता है कि जो लोग प्रतिक्रियाओं के भंवर में फंस जाते हैं उनकी जिन्दगी की रफ्तार को थाम ली जाए और उन्हें ऐसा नकारा कर दिया जाए कि वे जिन्दगी भर क्रियाओं और प्रतिक्रियाओं के बीच पेण्डुलम की तरह बने रहें और आगे नहीं बढ़ सकें। जो भी व्यक्ति एक बार प्रतिक्रियाओं में रस लेने लग जाता है वह अपने उद्देश्यों में भटक कर रह जाता है और प्रतिक्रियावादियों के हाथों की कठपुतली बना हुआ जीवन के अमूल्य क्षणों की हत्या कर देता है। जीवन में तरक्की पाना चाहें तो न प्रतिक्रिया करें, न अपनी किसी क्रिया के बारे में औरों की प्रतिक्रिया जानने का कभी प्रयास करें। अपने स्व कर्म में निरन्तर रमे रहते हुए हम जो भी प्राप्त करना चाहें उसे आसानी से पा सकते हैं।
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