नक्सली समस्या को हल्के में लेने की भूल न करें

Do not forget to take the Naxalite problem lightly
  •  मुल्क की अंदरूनी समस्या पर सरकारें काबू पाने का दावा तो करती हैं, लेकिन घटनाएं लगातार जारी हैं? चूक कहां हो रही है?

दरअसल, ऐसा सोचना हमारी बड़ी भूल होगी, कि हमने नक्सल समस्या पर काबू पा लिया। नक्सली बड़े मौकों की फिराक में रहते हैं। मौका मिलते ही अपने मंसूबों का परिचय दे देते हैं। नक्सलियों को हल्के में लेने वालों के लिए बक्सर और गढ़चिरौली की घटनाएं ताजा उदाहरण हंै। सन् 2012 में तत्कालीन गृह मंत्री पी चिदंबरम ने नक्सलियों से निपटने के लिए एक कार्ययोजना बनाई थी। नक्सल प्रभावित सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों से बात कर आंतरिक सुरक्षा को लेकर प्लानिंग की गई थी। उसके बाद से कोई योजना नहीं बनाई गई। नई सरकार अपने हिसाब से काम कर रही है। मैं हमेशा से कहता रहा हूं कि बाहरी सुरक्षा के बजाय हमें अपनी आंतरिक सुरक्षा पर ध्यान देने की जरूरत है। कई सालों से राज्यों में पुलिस फोर्स और पुलिस स्टेशनों की भारी कमी है। सुरक्षाकर्मियों के पास आधुनिक हथियारों की कमी है। नक्सल प्रभावित क्षेत्रों की सड़के जर्जर स्थिति में हैं जिसका फायदा नक्सली उठा रहे हैं।

  •  आपके हिसाब से कमी कहां हो रही है?

विगत कुछ वर्षों से हमारा सुरक्षातंत्र नक्सलियों को हल्के में लेने लगा है जिसका वह फायदा उठा रहे हैं। कुछ माह पहले उन्होंने सरेआम एक विधायक को विस्फोट से उड़ा दिया। उसके बाद सीआरपीएफ की टुकड़ी को निशाना बनाया। अभी हाल में महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले के दादापुर रोड पर सुरंग बनाकर आईईडी ब्लास्ट कर दर्जनों जवानों को मार डाला। कुल मिलाकर उनका खूनी कारनामा बदस्तूर जारी है। नक्सलियों से लड़ने के लिए ठोस नीति बनाए जाने की दरकार है। इनके कुचक्र को भेदने के लिए विशेष दस्ते की जरूरत है। सात-आठ वर्ष पूर्व केंद्र और राज्यों ने मिलकर नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के लिए जो विशेष विकास योजना तैयार की थी वह उन क्षेत्रों में प्रशासनिक व्यवस्था की कम मौजूदगी या गैर मौजूदगी की वजह से लागू नहीं हो पाई थी। लेकिन अब ऐसी जरूरतें महसूस होने लगी हैं।

  •  नक्सलियों की मूल समस्या क्या है? क्यों अपनों का ही खून बहाने में लगे है?

देखिए, भारत में जब सबसे पहले नक्सलियों ने दस्तक दी थी। तो उस वक्त मेरा इनसे सीधे मुकाबला हुआ था। इनकी एक चाहत रही है कि अगले पचास सालों में ये लोग अपनी हुकूमत भारत पर कायम करेंगे। कमोबेश, ठीक उसी तरह जैसे तालिबानियों ने अफगानिस्तान में खून बहाकर सत्ता काबिज की थी। हालांकि उनका सपना कभी पूरा नहीं होगा। ये वह पिछड़े लोग हैं जो विकास की मुख्यधारा से कभी जुड़ नहीं पाए। इनको लगता है सरकारों ने इनके साथ सौतेला व्यवहार किया है। मैंने देखा था जब कुछ नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया, तो उन्होंने सुरक्षा एजेंसियों के साथ पूछताछ में यही बताया कि वह भी औरों की तरह देश के भागीदार बनना चाहते थे लेकिन उनको दरकिनार किया गया। मजबूरन उनको हथियार उठाकर हिंसक होना पड़ा। लेकिन जब इन्होंने घटना दर घटना को अंजाम देना शुरू किया, तो इनके और सरकारों के बीच और लंबी खाई बन गई। सरकार की नजरों में आज ये आतंकी हैं। क्योंकि इनके कृत्य ही कुछ ऐसे ही हैं।

  •  रक्षामंत्री राजनाथ ने वर्ष 2014 में कहा था कि नक्सली भटके हुए हमारे भाई हैं इनको सही रास्ते पर लाएंगे?

बिल्कुल कहा था। पर, असर इसलिए नहीं हुआ, नक्सली तब तक बहुत आगे निकल चुके थे। उनको पता था कि अगर एक बार सरकार के चुंगल में फंस गए तो उनकी खैर नहीं? इस वक्त कई नक्सली संगठन बन चुके हैं। कुछ सही रास्तों पर आ भी गए हैं। लेकिन ज्यादातर संगठन अब भी छद्म लड़ाई में ही विश्वास कर रहे हैं। नक्सलवाद के विचारधारात्मक विचलन की सबसे बड़ी मार आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ, उड़ीसा, झारखंड और बिहार को झेलनी पड़ रही है। अब इनकी शाखाएं घीरे-धीरे दूसरी जगहों पर भी फैलनी शुरू हो गई हैं। ये सच है कि हिंदुस्तान में नक्सलियों के समर्थकों की संख्या कम नहीं है? वह अलग बात है खुलकर उनका कोई समर्थन नहीं करता?

  • ‘ग्रीनहंट अभियान’ व ‘प्रहार’ नामक दो अभियान चलाए गए थे। आपको नहीें लगता कुछ ऐसे और अभियानों की जरूरत है जिससे नक्सल समस्या काबू में आ सके?

वक्त की मांग है। नक्सल विरोधी अभियान ग्रीनहंट को काफी सफलता मिली थी जो 2009 में चलाया गया था जिसमें पैरामिलेट्री बल के जवान और राज्य के पुलिसकर्मी शामिल थे। संयुक्त अभियान ने छत्तीसगढ़, झारखंड, आंध्र प्रदेश तथा महाराष्ट्र में फैले नक्सलियों के दांत खट्टे कर दिए थे। प्रहार को वर्ष 2017 में छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले में चलाया गया था। इस अभियान में सीआरपीएफ, कोबरा कमांडो, छत्तीसगढ़ पुलिस, डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड व इंडियन एयरफोर्स के एंटी नक्सल टास्क फोर्स के विशेष दस्ते शामिल थे। समय की दरकार ऐसे ही अभियानों की तरफ इशारा करती है। क्योंकि जब तक इनके साथ सख्ती से पेश नहीं आया जाएगा, इनके हौसले पस्त नहीं होंगे। पाकिस्तान जैसी सर्जिकल स्ट्राइक नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में भी करने की जरूरत है। समय रहते अगर इनके नापाक मंसूबों को नहीं रोका गया तो गढ़चिरौली जैसी आंखमिचैली नक्सली आगे भी खेलते रहेंगे।

 

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