आने वाली पीढ़ीयों को बीमारियां मुक्त पर्यावरण देने के लिए पराली को न लगाएं आग : किसान | Commendable Effort
- पराली को खेतों में मिलाने से जरूरी तत्वों की कमी हो रही पूरी
- किसान हरमीत सिंह पिछले तीन साल से नहीं लगा रहा पराली को आग
जलालाबाद(सच कहूँ/रजनीश रवी)। धान की पराली व गेहूं के अवशेष को आग लगाने की (Commendable Effort) बजाय इसे अलग -अलग आधुनिक यंत्रों व तरीकों के द्वारा जमीन में ही नष्ट करने से जहां किसान अपने अतिरिक्त खर्च को कम कर सकते हैं वहीं उसको फसल का उत्पादन भी अधिक प्राप्त होता है। उपरोक्त शब्द मुख्य कृषि अधिकारी डा. मनजीत सिंह बराड़ ने कहे। उन्होंने बताया कि गांव चक्क सोहना सांदड़ का प्रगतिशील किसान हरमीत सिंह पराली को आग न लगाकर इसकी संभाल कर रहा है। उन्होंने बताया कि पर्यावरण समर्थकी माहौल पैदा करने में यह किसान अपना बनता महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है।
प्रगतिशील किसान ने कहा कि वह पिछले 10 सालों से खेती कर रहा है। वह कृषि विभाग के विशेषज्ञों की सिफारशों के अनुसार ही खेती करता है। उसने बताया कि विभाग की सलाह को मान कर पिछले 3सालों से धान की पराली व गेहूँ के अवशेष को आग नहीं लगा रहा है। उसने बताया कि इससे उसको फसल का उत्पादन अधिक प्राप्त हुआ है और वह अनावश्यक खर्च करने से बचा है।
हरमीत सिंह ने बताया कि उसने पिछले साल तकरीबन 70 एकड़ में धान की पराली को आग न लगा कर खेत में ही मिला दिया, जिसमें 55 एकड़ में मलचर, चौपर और आरएमबी प्लो और 15 एकड़ में हैपी सिडर की मदद से पराली को जमीन में ही नष्ट कर दिया। उसने बताया कि हैपी सिडर की मदद से गेहूं की बिजाई से खर्च कम होता है वहीं गेहूँ का औसत उत्पादन भी आम बिजाई की अपेक्षा अधिक होता है।
गांव में निजर किसान सेवा केंद्र नामक बनाया ग्रुप| Commendable Effort
- किसान ने बताया कि हैपी सिडर के साथ बीजी गेहूं में घासफूस की मात्रा भी
- आम बिजाई की अपेक्षा कम पाई गई।
- उसने बताया कि पराली को खेत में नष्ट करने से तत्वों की कमी नहीं आती क्योंकि
- धान की पराली में लघु तत्वों की बहुतायत होती है।
- किसान ने बताया कि अन्य किसानों के साथ मिल कर गांव में निजर
- किसान सेवा केंद्र नामक ग्रुप बनाया हुआ है,
- इस ग्रुप ने कृषि विभाग की तरफ से 80 प्रतिशत सब्सिडी पर मुहैया करवाए जाते
- यंत्र जिनमें मलचर, चौपर, आरएमबी प्लो व हैपी सिडर लिए हुए हैं।
- प्रगतिशील किसान ने बताया कि धान की पराली को आग लगाने से पर्यावरण प्रदूषित तो होता ही है,
- इसके साथ-साथ हम खतरनाक बीमारियों को भी न्योता दे रहे हैं,
- इस लिए आने वाली पीढ़ी को शुद्ध और बीमारियां मुक्त पर्यावरण मुहैया करवाने के लिए
- हमें धान की पराली व गेहूं के अवशेष को आग नहीं लगानी चाहिए।
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