हमारा देश आरोपों, जांचों, लटकते मामलों व घोटालों का देश बन गया है।
देश के विकास पर चर्चा होती नहीं दिख रही, क्योंकि (Discussion of allegations and scams in elections) हमारा देश आरोपों, जांचों, लटकते मामलों व घोटालों का देश बन गया है। देश की राजनैतिक पार्टियां इन मुद्दों पर बुरी तरह उलझी हुई हैं, अब आम जनता का ध्यान विकास की तरफ से हटकर इन पार्टियों में से कौन ठीक व कौन गलत है, की माथापच्ची करने में लग गया है। सभी नेता एक दूसरी पार्टी पर कीचड़ उछालकर एक-दूसरे को नीचा दिखाने में मस्त हैं। महानगरों के आलीशान घरों से लेकर गांवों की झुग्गियों तक पार्टियों के एक-दूसरे पर आरोपों की चर्चा हो रही है।
पहले भाजपा ने कांग्रेस के खिलाफ बोफोर्स मुद्दे की तोप चलाई
पहले भाजपा ने कांग्रेस के खिलाफ बोफोर्स मुद्दे की तोप चलाई। एक दशक से अधिक चले इस मामले की जांच पर खर्च, घोटाले की राशि से भी अधिक हो गया। बोफोर्स सौदा 130 करोड़ का था लेकिन जांच पर 250 करोड़ रुपए खर्च किए गए फिर भाजपा रक्षा सौदों के आरोपों में घिर गई। कांग्रेस ने राफेल का मुद्दा उठाकर भाजपा को घेर लिया और भाजपा ने कांग्रेस को फंसाने के लिए अगस्ता वेस्टलैंड का मुद्दा उठा लिया। कोयला घोटाले मामले में मंत्री बरी हो गए, अधिकारी फंस गए। संसद की हजारों करोड़ों रुपए से चलने वाली कार्रवाई केवल आरोप लगाने तक सिमटकर रह जाती है।
देश में कौन ईमानदार व कौन बेईमान है, इस असमंजस में पड़ी जनता
देश में कौन ईमानदार व कौन बेईमान है, इस असमंजस में पड़ी जनता किसानों की मांगें, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी जैसे मुद्दे भूल गई है। राजनेता समय, पैसा व ऊर्जा इन्हीं पैंतरो में बर्बाद कर रहे हैं। यह बात बेहद दुखद है कि देश में धरने-प्रदर्शन के नाम पर दंगे हो रहे हैं। फिर भी वरिष्ठ नेता धरने के नाम पर भड़काऊ भाषण देने से परहेज नहीं करते। राजनीति केवल चुनाव का नाम बनकर रह गई है जहां आम आदमी की भावनाओं को नजरअंदाज कर उसे मशीनी वोटर मान लिया गया है।इस दौर में सबसे बुरा यह हो रहा कि राजनीति के बाद देश को बदलने की ताकत न्यायपालिका व मीडिया के पास है परन्तु उक्त दोनों संस्थाओं में एक मामलों के बोझ से दबकर रह गई है दूसरी संस्था मीडिया का हाल नेताओं से भी गया गुजरा हो गया है।
- उसे महज टीआरपी, सरकारी विज्ञापनों के जुगाड़ से ही फुर्सत नहीं है।
- देश व आवाम ऐसे चौराहे पर अटक गया महसूस कर रहे हैं
- यहां चारों ओर अंधेरा पसरा हुआ है और सही रास्ता नजर नहीं आ रहा।
- फिर भी देशवासियों को हार नहीं माननी चाहिए।
- चुनावों में नए चेहरों व नई पार्टियों पर दांव लगाने की शुरूआत करनी होगी।
- दिल्ली में देश यह करके देख चुका है।
- अन्य राज्यों में भी बदलाव के लिए नए चेहरे खोजे जाएं जो देश ही नहीं पूरी व्यवस्था को ठीक करें ताकि भविष्य में देश फिर ऐसे लाचार न हो।
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