सेंट्रल विस्टा पर हल्ला, भला ये भी कोई बात हुई

Central Vista

देश में जनप्रतिनिधियों के भारी भरकम वेतन उन्हें दिए जा रहे भत्ते, एक बाद एक पेंशन दिया जाना, फिजूल खर्च है। सरकार द्वारा उद्योगपतियों को पहले केन्द्रीय बैंकों से आसान शर्तों पर हजारों करोड़ के ऋण देना फिर उन्हें माफ कर देना ये धन की घनघोर बर्बादी है।

ट्रल विस्टा प्रोजेक्ट पर विपक्षी दलों की राजनीति एवं मीडिया में शोर-शराबा बेवजह है। भारत 130 करोड़ लोगों का देश हो गया है, जिसके आने वाले वक्त में जनप्रतिनिधियों के बैठने के लिए ढंग की जगह होना जरूरी है। हालांकि वर्तमान संसद भवन बहुत अच्छा है अगर देश की आबादी 30-40 करोड़ होती व जनप्रतिनिधि लोकसभा एवं राज्यसभा में बढ़ाने की नौबत न हो। देश के हजारों-लाखों स्कूल, कॉलेज, हॉस्पिटल, जिला मुख्यालय, सड़कें, रेलवे स्टेशन बड़े किए जा सकते हैं तब देश की संसद के भवन को नया व बड़ा बनाया जा रहा है तो कौन सी नई बात है। विपक्षी दलों की सोच कितनी छोटी हो गई है ये सोच सेंट्रल विस्टा पर हो रहे विरोध से साफ देखी जा सकती है।

क्या विरोध में रहने के लिए ही नाराजगी दिखाना राजनीति का काम रह गया है? नए सेंट्रल विस्टा में यहां 900 के करीब संसद सदस्य बैठ सकेंगे वहीं देश के सारे मंत्रालय भी एक ही स्थान पर आ जाएंगे, जिससे कि कई सौ करोड़ रुपये की बचत हर वर्ष होगी जोकि सरकार अब अलग-अलग जगहों पर किराए या मेंटनेस पर खर्च करती है। सेंट्रल विस्टा से सरकार व प्रशासन का काम भी सुगमता से होगा। देश में राज्यों ने नई राजधानियां या नए विधानसभा भवन, सचिवालय बनाए हैं फिर उनका विस्तार भी होता ही रहता है, ये कामकाज भी विकास का ही हिस्सा है। देश को जनसंख्या के हिसाब से प्रशासित किया जाए अब कई नए राज्यों की, नए संसदीय क्षेत्रों की बेहद ज्यादा जरूरत है। उत्तर प्रदेश, महाराष्टÑ, कर्नाटक, राजस्थान, पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में जनसंख्या भार इतना ज्यादा है कि राज्य सरकारों से समस्याओं का हल ही नहीं हो पा रहा।

आम नागरिक के लिए राज्य सरकार तक अपनी आवाज पहुंचाना तो दूर की बात जिला स्तर पर बात करने के लिए भी उसका नंबर नहीं आता। सेंट्रल विस्टा का बजट 20 हजार करोड़ रुपये रखा गया है, ये भारत जैसे देश के लिए कोई बहुत बड़ा बजट नहीं है। देशवासियों को खुश होना चाहिए कि उनके लोकसभा व राज्यसभा में जनप्रतिनिधि बढ़ेंगे, इससे केंद्रीय संसद में आम नागरिक की पहुंच और ज्यादा आसान होगी। एक लोकतांत्रिक देश में सरकार व जनता के बीच न्यूनतम दूरी ही उसकी खूबसूरती है। सरकार के अच्छे कार्यों की प्रशंसा की जानी चाहिए। सरकार धार्मिक, दिखावटी या अनुत्पादक कार्यों में ज्यादा पैसा बर्बाद करे तब उसकी जितनी आलोचना की जाए कम है। देश में जनप्रतिनिधियों के भारी भरकम वेतन उन्हें दिए जा रहे भत्ते, एक बाद एक पेंशन दिया जाना, फिजूल खर्च है। सरकार द्वारा उद्योगपतियों को पहले केन्द्रीय बैंकों से आसान शर्तों पर हजारों करोड़ के ऋण देना फिर उन्हें माफ कर देना ये धन की घनघोर बर्बादी है, जिस पर कि देश को चैन से नहीं बैठना चाहिए। सेंट्रल विस्टा क्यों बन रहा है, 20 हजार करोड़ का खर्च, इस पर हल्ला, भला ये भी कोई बात हुई।

 

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