वर्तमान में सत्ता विरोधी राजनीतिक दलों के नेता जिस तरह से बयान दे रहे हैं, उसे राजनीतिक भ्रष्टाचार फैलाने वाला निरुपित किया जाए ज्यादा ठीक ही होगा। राजनीति में मतभेद होना कोई नहीं बात नहीं है, लोकतंत्र की स्वस्थ परंपराओं के अंतर्गत मतभेद हो सकते हैं। लेकिन जो मत प्रस्तुत किया जा रहा है, उसकी प्रामाणिकता भी होना चाहिए, इसी से लोकतंत्र को मजबूती मिलती है। अगर तथ्यहीन मत प्रस्तुत किया जाता है तो वह बहुत बड़े भेद का कारण बनता है। इसी प्रकार राष्ट्र के बारे में भी सोचा जाना चाहिए। मतभेद अवश्य हों, लेकिन मनों में भेद नहीं होना चाहिए।
देश की राजनीति भी कुछ ऐसे ही रास्ते पर अपने कदम बढ़ाती हुई दिखाई दे रही है। नए-नए शब्दों को परोसने का खेल खेला जा रहा है, उसके कारण देश ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी भारत की छवि बिगड़ रही है। भारत देश के नागरिक होने के नाते हमें कम से कम इस बात का तो ध्यान रखना ही होगा कि हम अपने देश को मजबूती के साथ विदेशों के सामने लाएं। अगर हम खुद ही अपनी कमजोरियां बताने लगेंगे तो फिर देश को बचाने की कवायद कौन करेगा, यह सोचने का विषय है। आज देश में जो राजनीति का स्वरुप दिखाई दे रहा है, वह अपने मूल उद्देश्य से भटकाव की कहानी प्रदर्शित कर रही है। विरोधी राजनीतिक दल केवल आरोप लगाने वाली राजनीति करने तक ही सीमित रहे गए हैं। अभी हाल ही में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कांग्रेस की डूबती नैया को पार लगाने के लिए जिस प्रकार झूठ का सहारा लिया है, वह उनकी नकारात्मक सोच का ही प्रदर्शन कर रही है। अपने देश की सरकार की विदेशों में जाकर आलोचना करना किसी भी दृष्टि से ठीक नहीं है। राजनीतिक दलों की दृष्टि से केन्द्र सरकार भले ही राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की है, लेकिन विदेश की दृष्टि में वह भारत सरकार है और नरेन्द्र मोदी पूरे भारत के प्रधानमंत्री हैं। विपक्षी दलों को यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि नरेन्द्र मोदी लोकतांत्रिक तरीके से चुनकर आए हैं, इसलिए विरोधी राजनीतिक दलों को कम से कम देश की जनता के निर्णय का सम्मान करना चाहिए, लेकिन देश में ऐसा नहीं हो रहा है।
वर्तमान में विपक्षी राजनीतिक दल ऐसा व्यवहार कर रहे हैं कि देश में सारी समस्याओं की जड़ वर्तमान केन्द्र सरकार है। जबकि सच यह है कि नरेन्द्र मोदी की सरकार ने ईमानदार और भ्रष्टाचार रहित सरकार दी है। विरोधी दल विशेषकर जिस प्रकार से रॉफेल मुद्दे को उठा रही है, वास्तव में उसके मूल में भ्रष्टाचार है ही नहीं, भ्रष्टाचार की कहानी जानना है तो डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार के कार्यकाल को देख लीजिए। कांग्रेस उसका आंकलन कर ले तो संभवत: उसको भी शर्म आ जाए। वैसे कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को कोई भी आरोप लगाने से पहले अपने गिरेबान में झांककर भी देखना चाहिए, तब उन्हें यह स्पष्ट समझ में आ जाएगा कि जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय। कांग्रेसनीत सरकार का यह दस वर्षीय कार्यकाल आज भी भ्रष्टाचार के पर्याय के रुप में जाना जाता है। केन्द्र में मोदी सरकार के आने के बाद प्रादेशिक असफलताओं को भी केन्द्र की कमजोरी बताकर प्रचारित करने का चलन बनता जा रहा है। इसके लिए कांग्रेस और अन्य राजनीतिक दल सुनियोजित तरीके से काम कर रहे हैं। केरल में गाय काटने का काम कांग्रेस के नेता करते हैं और दोषी मोदी सरकार को बताया जाता है, यह कैसी राजनीति है। गौसेवा को आतंकवाद से जोड़ने की कवायद करना उनकी घिनौनी मानसिकता का ही परिचायक है।
केन्द्र में मोदी सरकार के विरोध में अभी और भी प्रयोग किए जा सकते हैं, जिसके लिए हो सकता है कि देश में वामपंथी विचारक और नए शब्द गढ़ने का प्रयास करें। ऐसे सभी प्रयास देश में राजनीतिक अस्थिरता का कारण तो बनेंगे ही साथ ही जनता को गुमराह करने का काम भी करेंगे, इसलिए भारत के राष्ट्रीय दृष्टिकोण रखने वाले चिंतक और विचारकों को अत्यंत सावधानी बरतने की आवश्यकता है। ऐसे वातावरण में हमारी निष्क्रियता देश की बबार्दी का कारण भी बन सकती है।
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