लोकसभा के नए स्पीकर ओम बिड़ला जिस प्रकार सांसदों की मनमानियों व नियमों के प्रति अन्जान समझने वालों को टोक रहे हैं, उसके अनुसार संसद में एक नए दौर की शुरूआत हुई है। राजनीतिक निष्पक्षता को कायम रखते हुए विपक्षी दल के नेताओं के साथ-साथ स्पीकर ने मंत्रियों को नियमों का उल्लंघन नहीं करने दिया, बल्कि उनकी तकनीकी खामियों को भी उजागर किया। केन्द्र में फूड प्रोसैसिंग मंत्री हरसिमरत कौर बादल ने पंजाब का मुख्यमंत्री को रवनीत बिट्टू के मुख्यमंत्री कहने पर स्पीकर ने कहा कि इनके नहीं बल्कि पूरे पंजाब के मुख्यमंत्री कहिए। इसी तरह उन्होंने केन्द्रीय मंत्रियों को राज्य सरकारों के साथ भावुक होकर नाराज न रहने की सलाह दी। स्पीकर मंत्रियों की चतुराई को बहुत जल्दी समझ रहे हैं व तुरंत टोकते भी हैं।
उन्होंने आप सांसद भगवंत मान को उस वक्त टोक दिया, जब मान ने स्पीकर की आज्ञा के बिना ही अपना बोलने का विषय बदल लिया। स्पीकर ने सख्ती से कहा कि वह बिना आज्ञा के अपने विषय नहीं बदल सकते। इसके अलावा स्पीकर ने एक सांसद को बैठे-बैठे ही सवाल करने पर भी लताड़ा। नि:संदेह स्पीकर ने सदन के नियमों की पालना में मनमर्जी करने पर सदन की मर्यादा को भंग करने वाले सांसदों के लिए मुसीबत खड़ी कर दी है। पिछले लंबे समय से सांसदों ने सोमनाथा चेटर्जी सहित कई अन्य स्पीकरों की नरमी का नजायज फायदा उठाते हुए सदन की मर्यादा भंग कर संसद की कार्रवाई में बाधा डालने की रीत चला रखी है। यह स्पीकर बिड़ला की विशेषता है कि उन्होंने अपनी दमदार आवाज से हंगामा करने वाले कई बड़े नेताओं को चुप करवा दिया। नि:संदेह संसद देश की सबसे बड़ी पंचायत व सम्मानजनक सदन है, जहां जनता कल्याण एवं देश के विकास के लिए कानून बनते हैं।
पिछले लंबे समय से सांसदों के घटिया व्यवहार ने संसद को शोर-शराबा करने की जगह बना दी थी, जिसके कई व्यंग भी बन चुके थे। स्पीकर सदन का प्रमुख होता है लेकिन उसकी कोई सुनता ही नहीं। संसद विचारधाराओं को मूर्त रूप देने का स्थान है न की जोर-अजमाईश करने का स्थान। यदि सांसद नियमों के अनुसार व्यवहार करें तब सदन के उद्देश्यों की पूर्ति की जा सकती है। अनुशासन के बिना कोई भी सफलता प्राप्त नहीं हो सकती। संसद सदस्य के लिए संसद के नियमों की पालना करना अति आवश्यक है। यूं भी बिड़ला की यह उपलब्धि है कि प्रत्येक पार्टी के नए सांसद को सदन में जनता के मुद्दे उठाने के लिए भाषण देने के लिए प्रेरित किया है। सदस्यों का चुप बैठना व जरूरत से ज्यादा बोलना दोनों बातें ही उचित नहीं। उम्मीद है कि बिड़ला परंपरा को बदलने में सफल होंगे।
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