भारत में बीते कुछ वर्षो से प्राकृतिक और मानवजनित आपदाएं-घटनाएं बढ़ी हैं। मानवीय हिमाकत ने पिछले दिनों दिल्ली के अनाज मंडी इलाके में बड़ी घटना को जन्म दिया। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (Disaster training)ने आगजनी को मानवजनित आपदाओं में अव्वल स्थान दिया है। लेकिन आपदा विशेषज्ञों की मानें तो ऐसी घटनाओं को आपदा प्रबंधन प्रशिक्षण से रोका जा सकता है। इस क्षेत्र में एक नाम ऐसा है जो वर्षों से न सिर्फ सरकारी अधिकारियों, बल्कि आमजनों को भी आपदाओं से निपटने का गुर सिखा रही है। डॉ. अंजलि क्वात्रा अंतराष्ट्रीय आपदा प्रबंधन विशेषज्ञ जो स्वयंसेवी संगठन फिलांथ्रोफे की प्रमुख भी हैं। वह कहती हैं कि देश में बाढ़, भूकंप, चक्रवात व भूस्लखन कभी भी दस्तक दे देते हैं। इसलिए स्वंय के जानमाल के बचाव को प्रत्येक इंसान को आपदा प्रबंधन के हुनर सीखने चाहिए। दिल्ली की घटना को ध्यान में रखकर डॉ. अंजलि क्वात्रा से आपदा प्रबंधन मुद्दे पर रमेश ठाकुर की विस्तृत बात हुई। पेश हैं बातचीत के प्रमुख हिस्से।
दिल्ली जैसी अचानक घटने वाली घटनाओं को आपदा प्रबंधन के जरिए कैसे बचाया जा सकता है?
घटना नि:संदेह दर्दनाक थी। लेकिन आगे ऐसी घटनाएं न घटें इसके लिए सबक लेना चाहिए। हमारी टीम पिछले 12 सालों से राष्ट्रीय और अंर्तराष्ट्रीय स्तर पर आपदा प्रबंधन (Disaster training) का प्रशिक्षण दे रही है। आपने पूछा दिल्ली घटना को कैसे टाला जा सकता था। दिल्ली की घटना में फायर ब्रिगेड के एक कर्मी ने अपनी जान जोखिम में डाल कर कईंयों को बचाया। हमें ऐसे ही कर्मियों की संख्या बढ़ानी है। पुलिसकर्मियों के लिए आपदा प्रशिक्षण का ज्ञान अनिवार्य कर देना चाहिए। हमारी संस्था ने कॉमनवेल्थ गेम के समय ऐसे कई वॉलेंटियर तैयार किए थे, दिल्ली, मुंबई और औरंगाबाद के पुलिसकर्मियों को प्रशिक्षण देने के साथ ही हमने पांच सितारा होटल के कर्मचारियों को भी हादसों में क्षति को रोकने का प्रशिक्षण दिया है जिसका रिजल्ट बहुत अच्छा है। घटना के वक्त दोषारोपण के बजाय बचाव के विकल्प खोजने चाहिए।
प्राकृतिक आपदाओं के अलावा मानवजनित घटनाओं में ज्यादा इजाफा हो रहा है। कोलकाता के कोचिंग सेंटर में लगी आग और दिल्ली में शॉर्ट सर्किट होना ताजा उदाहरण है?
देखिए, प्राकृतिक आपदाएं कुदरती होती हैं। पर, मानवजनित आपदाएं रोकी जा सकती हैं। हम छोटी लेकिन बेहद जरूरी बातों को नजरअंदाज करते हैं, जिसका परिणाम बड़े हादसे से चुकाना पड़ता है। घर में यदि बिजली के उपकरण पुराने हो गए हैं, किसी तार से चिंगारी निकल रही है या फिर करंट आ रहा है तो तुरंत सतर्क हो जाना चाहिए। आग अधिकतर शार्ट सर्किट से लगती है जिसपर आसानी से काबू किया जा सकता है। एक अहम बात और भी है लोगों को बचाव करने की जानकारी अधूरी होती है। यूं कहें कि आपदा प्रबंधन का ज्ञान न के बराबर होता है। घटनाओं के वक्त लोग मूकबधिर बनकर तमाशा देखते हैं। हालांकि उस वक्त वह कर भी क्या सकते हैं। कई लोग बिजली से लगी आग में पानी के इस्तेमाल को गलत मानते हैं हम लगभग सभी वर्ग के लोगों में आपदा प्रबंधन की क्लास के समय यही बताते हैं कि शॉट सर्किट के वक्त पानी का इस्तेमाल किया जा सकता है। दिल्ली के कारखाने में जब आग लगी थी तो समय रहते अगर पानी डाला जाता तो धुंआ नहीं निकलता।
कुछ घटनाएं ऐसी जगहों पर घट जाती हैं जहां आपदा के वक्त बचाव कार्य संभंव नहीं हो पाता ?
अगर आप किसी और की जान नहीं भी बचा पा रहे तो ऐसे हादसे में सबसे जरूरी है खुद को सुरक्षित रखें। हमने बीते कुछ सालों से ऐसी संकरी बस्तियों में भी शिविर लगाए हंै। अभी दक्षिण दिल्ली के कुछ इलाकों में रोजाना आपदा प्रबंधन प्रशिक्षण कैंप का आयोजन किया जा रहा है, जिससे यदि संबंधित अधिकारी या अग्निशमन दल को पहुंचने में देर हो तो पहला प्रयास खुद किया जा सके। आग लगने में सबसे अधिक मौत दम घुटने की वजह से होती हैं, ऐसे में लिफ्ट का प्रयोग बिल्कुल न करें, आग की लपटे क्योंकि नीचे से ऊपर की ओर उठती हैं, इसलिए सीढ़ियों से नीचे उतरने का प्रयास करें, यदि किसी को एफेक्सियां या सांस लेने में तकलीफ तो बाहर निकलने के बाद तुरंत उसे सीपीआर दें, जिससे सांस को तुरंत वापस लाया जा सकता है। इसमें हथेली के बल से मरीज की पसली पर पांच से दस मिनट तक दबाना होता है यह बहुत आसान प्रक्रिया है, जिसे हर कोई कर सकता है।
घरेलू स्तर पर छोटी आपदाओं से लोग कैसे अपना बचाव कर सकते हैं?
देखिए, हम किसी बड़ी घटना की बात न भी करें, तो हमारी जानकारी घरों में रोज होने वाली ऐसी घटनाओं के बारे में बहुत कम होती है, उदाहरण के लिए किसी की सांस नली में खाना अटक गया या फिर गाड़ी पानी में फंस गई, घरों में बच्चे अकसर बर्तन सिर में फंसा लेते हैं। ऐसे में सही जानकारी नहीं होने पर जान तक जा सकती है। सांस नली में खाना फंसने पर व्यक्ति के पीछे से कमर के हिस्से से नाभि पर मुठ्ठी रखकर उसे दो से दिन बार झटके के साथ दबाना है, जिससे तुरंत सांस नली में फंसा हुआ खाना बाहर आ जाएगा। इसी तरह चाकू से यदि हाथ कट गया है तो जिस तरफ खून का बहाव होता है उस तरफ हाथ सीधा न करके विपरित दिशा में किया जा जाए तो खून की क्षति को रोका जा सकता है।
सरकारी स्तर पर आपदा प्रबंधन के लिए किए जा रहे प्रयासों से आप कितना संतुष्ट हैं ?
आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में प्रशिक्षण के लिए अभी देश में बहुत कुछ किया जाना बाकी है, दिल्ली या सूरत या कहीं भी ऐसे हादसे न हों इसके लिए आपदा प्रबंधन के साथ ही बेसिक लाइफ सपोर्ट कोर्स भी कराया जाना चाहिए। ऐसे किसी भी हादसे में क्षति को कम करना और अपनी जान बचाना यह दो काम प्रमुख होते हैं, हालांकि विदेशी में इमारतों का निर्माण इस तरह किया जाता है कि आपात स्थिति में अधिक से अधिक लोगों को आपातकालीन मार्ग से निकाला जा सकता है, इसके लिए कई आधुनिक उपकरणों का प्रयोग किया जा रहा है, जहां वॉटर केनिन नहीं पहुंच सकते वहां वॉटर बॉल या पानी के बड़े गोलों का इस्तेमाल किया जाता है, इसके साथ ही कई ऐसी अग्निरोधक चीजों का प्रयोग आपदा प्रबंधन के लिए किया जा रहा है। इमारतों का नक्शा पास करते हुए इस बात पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए कि इमारत में आपदा से बचाव के पर्याप्त इंतजाम हों, इसके साथ ही सुरक्षा संयंत्र भी मानकों के अनुसार लगाए जाने चाहिए।
आप इस बात को मानती हो, इस क्षेत्र में हमारी तैयारियां अभी भी काफी कमजोर हैं?
सरकार को आपदा प्रबंधन के प्रति जागरूक मुहिम चलानी चाहिए, जिससे प्रत्येक व्यक्ति आपदा प्रबंधन प्रशिक्षण प्राप्त करें, ताकी समय पड़ने पर किसी की जान बचा सकें, हम अपने प्रशिक्षण शिविर में बेहद सामान्य तरीकों को समझाते हैं, जिससे जरूरत पड़ने पर कोई भी किसी और को भी यह सिखा सकता है। पिछले कई सालों में हमने मेडिकल इमरजेंसी जैसे हृदयघात या सड़क दुर्घटना आदि में इसका प्रयोग अधिक देखा है अब लोग जागरुक हो रहे हैं उन्हें अपने साथ ही दूसरों की जान की परवाह होती है। लेकिन सरकारी एजेंसियों को भी अपना काम जिम्मेदारी से करना होगा, जिससे हादसे ही न हों।
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