32 देशों के 239 वैज्ञानिकों द्वारा कोरोना वायरस के हवा के माध्यम से फैलने को लेकर की गई रिसर्च विश्व भर के देशों की सरकारों व आम आदमी के लिए मुश्किल व दुविधा वाली स्थिति पैदा कर दी है। संयुक्त राष्ट्र ने इस रिसर्च की सूचना पर अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। कोरोना वायरस के फैलने की शुरूआत में संयुक्त राष्ट्र ने इस बात को खारिज किया था कि वायरस हवा के द्वारा फैलता है लेकिन जिस तरह लाकडाऊन के बावजूद वायरस का संक्रमण बढ़ा है उसके अनुसार वैज्ञानिकों की ताजा रिसर्च के दावे को समर्थन मिलना स्वाभाविक है। जिस प्रकार लॉकडाउन की शुरूआत में भारत में केवल 550 मरीज थे जो अब सात लाख से पार हो गए हैं। भारत सबसे अधिक प्रभावित देशों की संख्या में दसवें स्थान पर था जो अब तीसरे स्थान चल रहे रूस को भी पीछे छोड़ गया है।
भले ही केंद्र सरकार कोरोना वायरस के सामाजिक फैलाव से इन्कार कर रही है लेकिन स्वास्थ्य विभाग के लिए एक चुनौती भी बनी हुई है कि हजारों मरीजों के संक्रमण स्रोत का ही पता नहीं लग रहा। इसी तरह बिना लक्षण वाले, किसी भी प्रकार की यात्रा न करने वाले और किसी भी मरीज के संपर्क में न रहने वाले व्यक्तियों के पीड़ित होने की रिपोर्टें संदेह पैदा करती हैं। 32 देशों के वैज्ञानिकों के दावों के मद्देनजर सरकार की चिंता बढ़ गई है। भले ही आईसीएमआर ने 15 अगस्त तक वैक्सीन विकसित करने की घोषणा की है लेकिन देश में वैक्सीन आने से पूर्व कितने मामले बढ़ जाएंगे और वैक्सीन पहुंचने की सामर्थ्य भी अपने आप में कई चुनौतियों भरी हैं इसी लिए यह संयुक्त राष्ट्र की ही जिम्मेदारी है कि वह वैज्ञानिकों की नई रिसर्च संबंधी दावों का समय पर अध्ययन कर स्थिति स्पष्ट करे। यदि वैज्ञानिकों के दावों में वास्तव में दम निकला तब बीमारी की रोकथाम के लिए मजबूत नीतियां और रणनीतियां बनानी होंगी। फिर भी आम जनता को चाहिए कि रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के उपाय करें और तनाव से बचें
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