महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे जिस प्रकार फिल्मी अभिनेत्री कंगना रनौत के खिलाफ बयानबाजी कर रहे हैं, उससे यही प्रतीत होता है कि मुख्यमंत्री की ड्यूटी केवल एक अभिनेत्री के सवालों का जवाब देना ही है। मुख्यमंत्री ने अभिनेत्री के लिए नमक हराम या हरामखोर शब्द ईस्तेमाल किया, जो निराशाजनक है। करीब दो माह से कंगना रनौत और मुख्यमंत्री के बीच शब्दिक जंग जारी है। किसी अनुभवी राजनेता की खुद पर लगे आरोपों पर सफाई देने की जिम्मेवारी भी बनती है, लेकिन एक-दूसरे को जवाबदेही ईंट का जवाब पत्थरबाजी नहीं होना चाहिए। मुख्यमंत्री का पद संवैधानिक तौर पर और राज्य के करोड़ों लोगों के नेतृत्व के रूप में एक बड़ी जिम्मेदारी वाला होता है। मुख्यमंत्री को ऐसे ब्यान देने से बचना चाहिए। सरकार के लिए कानून ही सबसे बड़ा तरीका है जो भी कानून का उल्लंघन करता है उस पर कार्रवाई करने का प्रावधान है लेकिन जब यह सब अनावश्यक बयानबाजी का हिस्सा बन जाएं तब सरकार की मंशा पर भी सवाल उठना स्वाभाविक हैं।
उद्धव ठाकरे और रनौत के विवाद में क्षेत्रवाद की बू भी आ रही है। यह जंग एक किस्म के मराठों और गैर -मराठों की जंग का रूप धारण कर रही है। पहले भी महाराष्ट्र में क्षेत्रवाद का बोलबाला रहा है। गैर-मराठों के साथ बुरा व्यवहार करने की घटनाएं घटतीं रही हैं, ऐसे में कंगन रनौत का मामला ओर पेचीदा बन गया है। बालीवुड की आंतरिक जंग भी इस घटना को तूल दे रही है। बालीवुड में कंगना विरोधी गुट कंगना और सरकार की लड़ाई को तमाशबीन बनकर देख रहा है या अंदर ही अंदर हंस भी रहा है। भले ही पहली नजर में यह सत्तापक्ष पार्टी और एक अभिनेत्री की लड़ाई है लेकिन नफरत भरी बयानबाजी लंबे समय के लिए मराठों और गैर -मराठों के बीच एक खाई पाट देगी। सद्भावना को कायम रखने की आवश्यकता है। मुख्यमंत्री और अभिनेत्री दोनों के लिए आवश्यक है कि वे संयम बरतें और हठधर्मिता से बचें। समाज में अमन, भाईचारा और सद्भावना को कायम रखना मुख्यमंत्री और अभिनेत्री दोनों की नैतिक जिम्मेदारी है। मुख्यमंत्री अभिनेत्री के साथ उलझने की बजाय राज्य के विकास को प्राथमिकता दें। शब्दों की मर्यादा कायम रखना आवश्यक है।
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