कृषि स्टार्टअप से लेकर मोटे अनाज पर जोर सहित कई संदर्भ बजट के फलक थे। ग्रामीण डिजिटलीकरण भी बजट का एक संदर्भ है जिससे उत्पाद, उद्यम और बाजार को बल मिल सकता है। गौरतलब है कि डिजिटल इण्डिया का विस्तार व प्रसार केवल शहरी डिजिटलीकरण तक सीमित होने से काम नहीं चलेगा बल्कि इसके लिए मजबूत आधारभूत संरचना के साथ प्रत्येक ग्रामीण तक इसकी पहुंच बनानी होगी। गौरतलब है कि भारत में साढ़े छ: लाख गांव और ढ़ाई लाख ग्राम पंचायतें हैं जिसमें आंकड़े इशारा करते हैं कि 3 साल पहले करीब आधी ग्राम पंचायतें हाई स्पीड नेटवर्क से जुड़ चुकी थी।
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भारत की अधिकांश ग्रामीण आबादी क्योंकि कृषि गतिविधियों से संलग्न हैं ऐसे में रोजगार और उद्यमशीलता का एक बड़ा क्षेत्र यहां समावेशित दृष्टिकोण के अन्तर्गत कृषि में जांचा और परखा जा सकता है। गांव में भी डिजिटल उद्यमी तैयार हो रहे हैं यह वक्तव्य लाल किले की प्राचीर से 15 अगस्त, 2021 को प्रधानमंत्री ने दिया था। बीते 1 फरवरी को पेश बजट में भी किसानों को डिजिटल ट्रेनिंग देने की बात निहित है। गांव में 8 करोड़ से अधिक महिलाएं जो व्यापक पैमाने पर स्वयं सहायता समूह से जुड़ कर उत्पाद करने का काम कर रही हैं और इन्हें देश-विदेश में बाजार मिले, इसके लिए सरकार ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म तैयार करेगी, उक्त संदर्भ भी उसी वक्तव्य का हिस्सा है।
गौरतलब है कि 30 जून 2021 तक दीनदयाल अन्त्योदय योजना-राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (डीएवाई-एनआरएलएम) के अन्तर्गत देश भर में लगभग 70 लाख महिला स्वयं सहायता समूह का गठन हुआ है जिनमें 8 करोड़ से अधिक महिलाएं जुड़ी हुई हैं। इंटरनेट एण्ड मोबाइल एसोसिएशन की सर्वे आधारित एक रिपोर्ट यह बताती है कि 2020 में गांव में इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों की संख्या 30 करोड़ तक पहुंच चुकी थी। देखा जाए तो औसतन हर तीसरे ग्रामीण के पास इंटरनेट की सुविधा है। खास यह भी है कि इसका इस्तेमाल करने वालों में 42 फीसदी महिलाएं हैं।
उक्त आंकड़े इस बात को समझने में मददगार हैं कि ग्रामीण उत्पाद को डिजिटलीकरण के माध्यम से आॅनलाइन बाजार के लिए मजबूत आधार देना सम्भव है। जाहिर है गांवों में महिलाओं की श्रम शक्ति में हिस्सेदारी बढ़ रही है। कृषि क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी अभी भी 60 प्रतिशत के साथ बढ़त लिये हुए है। इतना ही नहीं, बचत और सकल घरेलू उत्पाद का 33 प्रतिशत इन्हीं से सम्भव है। डेरी उत्पादन में कुल रोजगार का 94 महिलाएं ही हैं साथ ही लघु स्तरीय उद्योगों में कुल श्रमिक संख्या का 54 प्रतिशत महिलाओं की ही उपस्थिति है। बजट में गांव, खेत, खलिहान और किसान को लेकर कई बातें नई भी हैं और दोहराई भी गई हैं।
डिजिटलीकरण एक ऐसा आयाम है जिससे दूरियों के मतलब फासले नहीं है बल्कि उम्मीदों को परवान देना है। साल 2025 तक देश में इंटरनेट की पहुंच 90 करोड़ से अधिक जनसंख्या तक हो जाएगी जो सही मायने में एक व्यापक बाजार को बढ़ावा देने में भी सहायता करेगा। वर्तमान में देश वोकल फॉर लोकल के मंत्र पर भी आगे बढ़ रहा है जिसके लिए डिजिटल प्लेटफॉर्म होना अपरिहार्य है। डिजिटलीकरण के माध्यम से ही स्थानीय उत्पादों को दूर-दराज के क्षेत्रों और विदेशों तक पहुंच बनायी जा सकती है। इतना ही नहीं ग्रामीण डिजिटल उद्यमी को भी इससे एक नई राह मिलेगी। अनुमान तो यह भी है कि वित्त वर्ष 2024-25 में करीब नौ करोड़ ग्रामीण परिवार डीएवाई-एनआरएलएम के दायरे में लाए जाएंगे। वर्तमान में 31 दिसम्बर 2020 तक ऐसे परिवारों की संख्या सवा 7 करोड़ से अधिक पहुंच चुकी है।
दरअसल डिजिटलीकरण वित्तीय स्थिति पर निर्भर है और वित्तीय स्थिति उत्पाद की बिकवाली पर निर्भर करती है। ऐसे में बाजार बड़ा बनाने के लिए तकनीक को व्यापक करना होगा और इसके लिए हितकारी कदम सरकार द्वारा उठाने जरूरी हैं। इसमें कोई दुविधा नहीं कि ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ता श्रम और वित्त को लेकर बढ़ते अनुशासन ग्रामीण उद्यमी को व्यापक स्वरूप लेने में मदद कर रहा है जिसका लाभ इनसे संलग्न महिलाओं को मिल रहा है। यह बदलाव आॅनलाइन व्यवस्था के चलते भी सम्भव हुआ है। सवाल यह भी है कि गांव में डिजिटल उद्यमी महिलाओं को बड़ा स्वरूप देने के लिए जरूरी पक्ष और क्या-क्या हैं? क्या ग्रामीणों को वित्त, कौशल और बाजार मात्र मुहैया करा देना ही पर्याप्त है।
यहां दो टूक यह भी है कि आजीविका की कसौटी पर चल रही ग्रामीण व्यवस्थाएं कई गुने ताकत के साथ वक्त के तकाजे को अपनी मुट्ठी में कर रही हैं। क्या इस मामले में सरकार का प्रयास पूरी दृढ़ता और क्षमता से विकसित मान लिया जाए। ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के नारे बुलंद किये जा रहे हैं मगर स्थानीय वस्तुओं की बिकवाली के लिए जो बाजार होना चाहिए वह न तो पूरी तरह उपलब्ध हैं और यदि उपलब्ध भी हैं तो उन्हें बड़े पैमाने पर स्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है। उत्पाद की सही कीमत और उन्हें ब्राण्ड के रूप में प्रसार का रूप देना साथ ही सस्ते और सुलभ दर पर डिजिटल सेवा से जोड़ना आज भी किसी चुनौती से कम नहीं है। कृषि और कृषक भारतीय अर्थव्यवस्था के मूल में है केवल इंटरनेट की कनेक्टिविटी को सभी तक पहुंचाना विकास की पूरी कसौटी नहीं है।
जाहिर है ग्रामीण उद्यमी गांव के बाजार तक सीमित रहने से सक्षम विकास कर पाने में कठिनाई में रहेंगे जबकि डिजिटलीकरण को और सामान्य बनाकर भारत के ढ़ाई लाख पंचायतों और साढ़े छ: लाख गांवों तक पहुंचा दिया जाये तो उत्पादों को प्रसार करने में व्यापक सुविधा मिलेगी। कई कम्पनियां गांवों को आधार बनाकर जिस तरह ग्रामीण अनुकूल उत्पाद बनाकर ग्रामीण बाजार में ही खपत कर देती हैं इसे लेकर के भी ग्रामीण उद्यमी एक नई चुनौती का सामना कर रहे हैं। हालांकि यह बाजार है जो बेहतर होगा वही स्थायी रूप से टिकेगा। वर्षों पहले विश्व बैंक ने कहा था कि भारत की पढ़ी-लिखी महिलाएं यदि कामगार का रूप ले लें तो भारत का विकास दर 4 फीसदी की बढ़त ले लेगी। तथ्य और कथ्य को इस नजर से देखें तो मौजूदा समय में भारत आर्थिक रूप से एक बड़ी छलांग लगाने की फिराक में है।
लक्ष्य है 2024 तक 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था करना। जिसके लिए यह अनुमान पहले ही लगाया जा चुका है कि ऐसी विकास दर के दहाई के आंकड़े से ही सम्भव है और इसमें कोई दो राय नहीं कि यह आंकड़ा बिना महिला श्रम के सम्भव नहीं है। गांव का श्रम सस्ता है लेकिन वित्तीय कठिनाइयों के चलते संसाधन की कमी से जूझते हैं। सुशासन का तकाजा और शासन का उदारवाद यही कहता है कि भारत पर जोर दिया जाए क्योंकि इण्डिया को यह स्वयं आगे बढ़ा देगा। नजरिया इस बात पर भी रखने की आवश्यकता है कि बड़े-बड़े मॉल और बाजार में बड़े-बड़े महंगे ब्राण्ड की खरीदारी करने वाले अपनी जरूरतों को इस ओर भी विस्तार दें तो ग्रामीण उद्यमी वित्तीय रूप से न केवल सशक्त होंगे बल्कि सुशासन की आधी परिभाषा को भी पूरी करने में मददगार सिद्ध होंगे।
वोकल फॉर लोकल का नारा कोरोना काल में तेजी से बुलंद हुआ है। स्थानीय उत्पादों को प्रतिस्पर्धा और वैश्विक बाजार के अनुकूल बनाना फिलहाल चुनौती तो है मगर बेहतर होने का भरोसा घटाया नहीं जा सकता। ग्रामीण उद्यमी जिस प्रकार डिजिटलीकरण की ओर अग्रसर हुए हैं स्पर्धा को भी बौना कर रहे हैं। वस्तु उद्योग से लेकर कलात्मक उत्पादों तक उनकी पहुंच इसी डिजिटलीकरण के चलते जन-जन तक पहुंच रहा है। हालांकि यह एक दुविधपूर्ण प्रश्न है कि क्या ग्रामीण क्षेत्रों के बड़े उपभोक्ता को लक्षित करते हुए विपणन नीति को बड़ा आयाम नहीं दिया जा सकता है। कई ऐसी कम्पनियां हैं जो ग्रामीण उत्पादों को ब्राण्ड के रूप में प्रस्तुत करके बड़ा लाभ कमा रही हैं। (यह लेखक के अपने विचार हैं) डॉ. सुशील कुमार सिंह वरिष्ठ स्तंभकार एवं प्रशासनिक चिंतक
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